एक टीचर की बेटी से लेकर ताकतवर चेहरा बनने तक का सफर
सरोज पांडेय इस वक्त भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही महाराष्ट्र की प्रभारी भी हैं. उम्र करीब 51 साल है और छत्तीसगढ़ के रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से उन्होंने पीएचडी की है. सरोज पांडेय की राजनीति छात्र नेता के तौर पर शुरू हुई. वे दुर्ग के शासकीय महिला महाविद्यालय में थी और वहीं से उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा.
सरोज पांडेय के पिता शिक्षक रहे हैं और परिवार गैर राजनीतिक रहा है, लेकिन सरोज पांडेय खोज एक ही वक्त में मेयर, विधायक और सांसदरहने का रिकॉर्ड बना चुकी हैं.
एक नजर राजनीतिक सफर पर
सबसे पहले साल 2000 में सरोज पांडेय दुर्ग नगर निगम की महापौर चुनी गईं. साल 2005 में दोबारा जीत दर्ज की. सरोज बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व की गुड बुक में थीं. 2008 में भाजपा की टिकट पर सरोज पांडेय ने वैशाली नगर सीट से विधानसभा का चुनाव जीता और उसके अगले ही साल 2009 में दुर्ग से लोकसभा सांसद चुनी गईं. हर जीत के साथ सरोज पांडेय का कद बड़ा होता गया और उन्हें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर देखा जाने लगा. कई बार अपने बयान से सरोज पांडेय ने भी यह बात जाहिर की हालांकि सरोज पांडेय मुख्यमंत्री तो नहीं बन पाईं, लेकिन छत्तीसगढ़ के नेताओं में और दिल्ली दरबार में उनका कद बढ़ता गया.
सरोज पांडेय अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे नेताओं की गुड बुक में हैं. वहीं संघ का बड़ा चेहरा सौदान सिंह का नाम भी उनके साथ जुड़ा हुआ है. ऐसे में कई बार यह बातें भी सामने आई कि सरोज पांडेय को उनकी ही पार्टी में हराने की कोशिश की. 2017 में सरोज पांडेय छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद चुनी गईं. हालांकि उस वक्त भी ये बातें सुर्खियां बनीं कि पार्टी के विधायक उन्हें राज्यसभा में भेजने के लिए अपनी इच्छा से वोट नहीं कर रहे हैं.
जब एक थप्पड़ बना सरोज पांडेय के हार की वजह
एक ही वक्त में मेयर, विधायक और सांसद की कुर्सी संभालने वाली सरोज पांडेय के राजनीतिक करियर में एक दौर वो भी आया जब, उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हार की वजह बनी एक थप्पड़. बेहद चर्चित थप्पड़ कांड की वजह से सरोज पांडेय को साल 2014 की लोकसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा.
और हार गईं सरोज पांडेय
हुआ ये था कि साजा में साहू समाज के कार्यक्रम में सरोज पांडेय मौजूद थीं. जहां एक व्यक्ति को उन्होंने थप्पड़ मार दिया. बताया यह जाता है कि उस व्यक्ति की इसी बात से या किसी हरकत से नाराज होकर सरोज पांडेय ने थप्पड़ मारा था लेकिन साहू समाज ने एक थप्पड़ को व्यक्तिगत तौर पर लिया और थप्पड़ सरोज पांडेयकी हार की वजह बनी.
सरोज पांडेय 2014 में लोकसभा चुनाव में हार गईं. कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ने उन्हें हराया था. उस वक्त सरोज पांडेय की हार के कई कारणों में से एक साहू समाज की नाराजगी भी थी कहा जाता है कि साहू समाज सरोज पांडेय से नाराज था. वहीं उनके मुकाबले में ताराचंद साहू, साहू समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. साहू समाज छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बड़ा वोट बैंक हैं. हालांकि इस हार का सरोज पांडेय के राजनीतिक करियर पर नकारात्मक असर नहीं पड़ा, बल्कि इसके उलट उन्हें महाराष्ट्र का प्रभार दिया गया और महाराष्ट्र में भाजपा की जीत ने एक बार फिर सरोज पांडे का कद बड़ा कर दिया.
बयानों से सुर्खियों में रहती हैं सरोज
सरोज पांडेय का कई विवादों से नाता रहा है. अपने राजनीतिक बयान और परिवार को लेकर अक्सर चर्चा में रहती हैं. सरोज पांडेय के कई बयानों ने विवाद खड़ा किया. चाहे राहुल गांधी को 'मंदबुद्धि' कहने वाला बयान हो या केरल में हुई हिंसा को लेकर 'घर में घुसकर आंखें निकाल लेने' वाला बयान.
सरोज पांडेय मुख्यमंत्री भले ही न बन पाई हों, लेकिन उनका कद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में लगातार बढ़ा है.