रायपुर: साल 2020 विदा हो रहा है. राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में इस साल भी कांग्रेस को मजबूती मिली है. साल के शुरुआत में नगरीय निकाय चुनाव इसके बाद त्रीस्तरीय पंचायत में कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली. इसके अलावा भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष जरूर मिला लेकिन पार्टी बड़े मुद्दों में सरकार को घेरने में उतनी कामयाब नजर नहीं आई. कोरोन काल में भी पार्टी के नेता केन्द्र सरकार द्वारा किए प्रयासों के आधार पर ही बयानबाजी करते नजर आए, आम जनता से उस तरह की जुड़ाव नजर नहीं आया जिसकी उम्मीद सहज की जा सकती है. वहीं तीसरी ताकत जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के लिए ये साल बेहद बुरा अनुभव वाला साबित हुआ.
कांग्रेस को और मजबूत कर गया साल 2020-
भले ही देश के दूसरे स्थान में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर हो लेकिन छत्तीसगढ़ इसका अपवाद है. यहां कांग्रेस बेहद मजबूत स्थिति में है छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद कभी भी पार्टी इस स्थिति में नहीं थी जिस स्थिति में आज नजर आ रही है. साल 2020 में कांग्रेस ने सभी महत्वपूर्ण नगरीय निकायों में अपना जमाने के साथ ही जिला पंचायतों में बड़ी सफलता हासिल की.
![political-happening-in-chhattisgarh-at-2020](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10044879_ert.jpg)
पढ़ें : SPECIAL: आखिर क्यों छत्तीसगढ़ में अफसरों के लिए भिड़ गए वर्तमान और पूर्व सीएम ?
कांग्रेस विधायकों की संख्या 70 पहुंची
कोरोना महामारी के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार का प्रबंधन सराहनीय रहा इसका लाभ पार्टी की छवि आम लोगों के बीच और बेहतर हुई. दिवाली के बाद मरवाही में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बड़ी अंतर से जीत दर्ज कर जोगी के गढ़ पर कब्जा जमा लिया और विधानसभा में अपने विधायकों की संख्या भी 70 पहुंचा दिया. इस तरह देखा जाए तो 2020 का साल कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में और ताकतवर बनाने वाला साबित हुआ.
![political-happening-in-chhattisgarh-at-2020](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10044879_yterlpi.jpg)
सीएम बघेल का कद बढ़ा
सीएम भूपेश बघेल के लिए साल 2020 सियासी रूप से कद बढ़ाने वाला साबित हुआ. कांग्रेस आलाकमान ने भूपेश बघेल को स्टार प्रचारक के रूप में बिहार चुनाव और मध्यप्रदेश में हुए उप चुनाव में उतारा. इससे राष्ट्रीय स्तर पर उनकी शाख और मजबूत हुई. नरवा-गरवा-घुरवा-बारी के बाद गोबर खरीदी के फैसले ने पूरे देश में भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ के नाम को एक सकारात्मक चर्चा में शामिल कर दिया. इस तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 2020 में विरोधियों पर भारी पड़ी.
आम जनता के मुद्दों से दूर नजर आई भाजपा-
साल 2020 ने जहां मानव जाति के सामने कई चुनौती पेश की वहीं कई संभावनाएं भी नजर आईं. सियासत के नजरिए से देखा जाए तो इस महामारी के काल में आम जनता के साथ नेताओं को खड़े होने का अच्छा अवसर था. लेकिन भाजपा न तो सड़कों पर मजदूरों के दर्द कम करती नजर आई, न ही उस वर्ग के लिए कुछ करने में रूचि दिखाई जिसकी पार्टी होने का ठप्पा पार्टी पर लगता है. जी हां इशारा व्यापारी और उद्योगपतियों के तरफ है. लॉकडाउन के दौरन छत्तीसगढ़ में व्यापार और उद्योग पर असर पड़ा लेकिन ऐसी तस्वीर नजर नहीं आई जब छोटे दुकानदार या बाजार के लिए भाजपा नेता सड़क पर उतरते. नई व्यवस्था स्थापित करने में मदद करते.
![political-happening-in-chhattisgarh-at-2020](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10044879_wqr.jpg)
पढ़ें : सिंहदेव की सियासी ढाई चाल में उलझे सीएम भूपेश, दोनों ने हाईकमान पर छोड़ा फैसला !
कुछ बड़े नेताओं ने केन्द्र सरकार द्वारा जारी पैकेज पर वाहवाही लेने के लिए बयानबाजी कर अपना कर्त्वयों से इतिश्री कर ली. अगर यही हालात रहे तो पार्टी को अपने प्रदेश नेतृत्व पर और विचार करना होगा. पार्टी को इस दौरान विक्रम उसेंडी के स्थान पर नए प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय जरूर मिले. लेकिन वे भी 2018 के चुनाव में मिली करारी हार से पार्टी को उबारने में अब तक कामयाब नजर नहीं आ रहे हैं.
जेसीसीजे के अस्तित्व बचाने के संघर्ष वाला साबित हुआ साल-
2018 के विधानसभा चुनाव में जो पार्टी किंग मेकर बनने का दावा कर रही थी, भले ही किंग मेकर न बनी हो लेकिन अपने पहले ही चुनाव में 5 सीट जीतक एक सम्मानजनक स्थिति में थी, लेकिन 2020 में पार्टी बिखराव के कागार पर खड़ी हो गई है. इसकी सबसे बड़ी वजह पार्टी के सुप्रीमो अजीत जोगी का अकास्मिक निधन रही. उनके निधन के बाद कई जमीनी नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया. कई ने अमित जोगी के कार्य प्रणाली पर खुलकर प्रश्नचिन्ह लगाया. अजीत जोगी के निधन के बाद खाली हुए मरवाही में हुए उपचुनाव में जेसीसीजे चुनावी मैदान में भी नहीं उतर पाई.
![political-happening-in-chhattisgarh-at-2020](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10044879_yter.jpg)
जेसीसी (जे) के लिए बेकार गुजरा साल
अमित जोगी उनकी पत्नी ऋचा जोगी जाति मामलों में उलझकर रह गए. हालात कुछ इस तरह बने के कभी कट्टर विरोधी रहे भाजपा के साथ उन्हें चुनाव में हाथ मिलाना पड़ा लेकिन इसके बाद भी उपचुनाव में अपना गढ़ नहीं बचा पाए. जहां पार्टी विरोधियों से सियासी कुरूक्षेत्र में पिट रही थी उसी दौरान घर के भीतर भी महाभारत शुरू हो गया. पार्टी के दो विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा ने खुलकर बगावत कर दी और कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही. दोनों विधायकों ने अजीत जोगी के नहीं रहने पर इस पार्टी के वजूद और औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए. इस तरह जेसीसीजे के लिए साल 2020 बेहद खराब गुजरा. पार्टी ने संगठन स्थर पर काफी बदलाव किए हैं उम्मीद है कि 2021 में नई उम्मीदों के साथ सियासी मैदान में नजर आएगी.
![political-happening-in-chhattisgarh-at-2020](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10044879_uy.jpg)
पढ़ें : SPECIAL: अंतागढ़ के जिन्न ने इस बार रमन और जोगी को जमकर लपेटा है, क्या होगा असर
जांजगीर-चांपा में बसपा नेता रहे सक्रिय
इस तरह तीन प्रमुख पार्टियों के लिए अलग अलग तस्वीर और समीकरण पैदा करने वाला साबित हुआ. साल 2020 इसके अलावा चौथी पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी जांजगीर जिले में अपना काम करती नजर आई. पार्टी के विधायक विधानसभा में जरूर काफी सक्रिय नजर आए. लेकिन प्रदेश संगठन के तौर पर नई ताकत से उभरने का कोई तैयारी नजर नहीं आई.
2021 के लिए चुनौती
राजनीति में चुनौती और संभावना कभी खत्म नहीं होती. साल 2021 में भी राजनेताओं के पास कई ऐसे मुद्दे रहेंगे फिर वो किसानों का मुद्दा हो या फिर बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दे हों जो पार्टी या नेता आम लोगों के साथ नजर आएगे उसे भविष्य़ में सियासी माइलेज जरूर मिलेगा.