रायपुर: छत्तीसगढ़ में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. हर पार्टी वोटरों को अपने पाले में लेने के प्रयास में हैं. प्रदेश की दो प्रमुख पार्टी कांग्रेस और बीजेपी चुनाव में वोटरों को साधने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. इस बार के चुनाव में पार्टियों ने आदिवासी वोट बैंक के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. इस बार चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा आदिवासी ही है.
आइए आपको हम बताते हैं कि छत्तीगढ़ की सियासत में आदिवासी वोट बैंक ही क्यों खास है? क्यों आदिवासियों को अपने पाले में करने के प्रयास में पार्टी लुभावने वायदे करती है?
जानिए आदिवासी वोट का गुणा गणित: छत्तीसगढ़ में 34 फीसद आदिवासी मतदाता हैं. सबसे अधिक आदिवासी बस्तर और सरगुजा में हैं. यही कारण है कि बस्तर और सरगुजा पर पार्टियों का खास फोकस रहता है. छत्तीसगढ़ में साल 2011 के जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या में 30 प्रतिशत आदिवासी थे. छत्तीसगढ़ विधानसभा में कुल 90 सीटें है, जिसमें से 39 सीट आरक्षित है. इसमें से 29 सीट अनुसूचित जनजाति और 10 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो इन सीटों पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. वहीं, सरगुजा संभाग के भी 14 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा है. कुल मिलाकर 29 में से 2 सीटें ही बीजेपी के पास है. बाकी 27 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के कब्जा है.
सर्वआदिवासी समाज बड़ी चुनौती: यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस लगातार इन दिनों आदिवासियों के हित में बातें कर रहे हैं. भाजपा परिवर्तन यात्रा के माध्यम से लोगों के बीच जा रही है. तो सीएम बघेल भी भेंट मुलाकात कर रहे हैं. कांग्रेस के कार्यकर्ता भी अलग-अलग कैंपेन के माध्यम से जनता के बीच रही है. दोनों ही पार्टियों का खास फोकस बस्तर और सरगुजा संभाग पर है. इस बीच सर्वआदिवासी समाज दोनों ही पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है. क्योंकि ये पार्टी सिर्फ आदिवासियों के हित के लिए ही बनाई गई है. इस पार्टी को सिर्फ आदिवासियों का ही वोट मिलेगा.
आदिवासियों के हित में बाधक रही है भाजपा: आदिवासियों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने बीजेपी का आदिवासियों के हित में बाधक बताया है. उन्होंने कहा है कि, "भाजपा ने 15 साल सत्ता में रहते हुए आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया. उनके अधिकारों, आर्थिक शैक्षणिक सामाजिक उन्नति को बंधक बनाकर रखा. यही कारण है कि आदिवासियों ने बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. भाजपा परिवर्तन यात्रा के जरिए आदिवासियों को साधने की कोशिश में जुटी हुई है. लेकिन भाजपा को तो आदिवासी समाज से उनके शोषण के लिए माफी मांगनी चाहिए. कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के हित में कई काम किया है. बीजेपी कुछ भी कर ले आदिवासी उनको वोट नहीं देने वाले हैं."
जो आरक्षण बिल विधानसभा में पारित कर राज भवन भेजा गया था, वह आज भी केंद्र सरकार के इशारे पर राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए लंबित है. ये भाजपा का आदिवासी विरोधी चरित्र को बताता है.- सुशील आनंद शुक्ला, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस मीडिया विभाग
कांग्रेस ने बस्तर के नौजवानों के नहीं दिया रोजगार: आदिवासियों को लेकर भाजपा नेता व पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने कहा कि "देश में जाति, धर्म, समाज के नाम पर कांग्रेस राजनीति करती है. कल का बस्तर क्या था और आज का बस्तर क्या है? साढ़े चार साल में बस्तर में एक भी बड़ा काम नहीं हुआ है. बस्तर को एक नई पहचान भाजपा ने दी थी. कांग्रेस के लोगों ने आदिवासियों को लंगोटी पहनने के आगे कुछ नहीं करने दिया. बस्तर के नौजवानों को रोजगार नहीं मिला. वहां के लोगों को मुख्य धारा में मिलने के लिए कोई काम नहीं किया गया. भाजपा के 15 साल में जो काम हुआ, उसकी कल्पना भी कांग्रेस नहीं कर सकती. कांग्रेस पार्टी यदि कुछ करना चाहती है तो मैं कांग्रेस के मुखिया से आग्रह करना चाहता हूं कि झीरम घाटी के दस्तावेज सार्वजनिक करें. जो झीरम कांड में शहीद हुए, क्या वो कांग्रेस और छत्तीसगढ़ के नेता नहीं थे?
मुख्यमंत्री कहते थे कि मेरे पास झीरम घाटी के दस्तावेज है. कांग्रेस शहीदों के नाम पर राजनीति करती है. लेकिन आज तक कुछ कर नहीं पाई. आप मुख्यमंत्री हो आपको निर्णय लेना है कि वे कांग्रेस पार्टी के नेता और छत्तीसगढ़ महतारी के बेटे शहीद हुए हैं. उनको न्याय नहीं दिला पा रहे हैं. खाली राजनीतिक रोटी सेंक रहे हो. उनके नाम पर एक शहीद स्मारक बनाया गया है. वह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया. उसकी भी पापड़ी निकल रही है.- राजेश मूणत, पूर्व मंत्री
जानिए पॉलिटिकल एक्सपर्ट की राय: आदिवासी वोट बैंक को लेकर ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट व्यास पाठक से बातचीत की. उन्होंने कहा कि, "छत्तीसगढ़ में भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित हर पार्टी आदिवासियों को साधने में लगी हुई है. हर किसी के लिए आदिवासी वोट बैंक महत्वपूर्ण है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी ही निर्धारित करते हैं कि यहां किसकी सरकार बनेगी. हालांकि आज के समय में आदिवासी वर्ग, पिछड़ा अन्य समाज सहित सभी वर्ग के लोग जागरूक हो गए हैं. जो पार्टी उन्हें ज्यादा बेनिफिट देगी, वह उस पार्टी का साथ देंगे. ऐसे में आने वाले समय में पार्टियों के घोषणापत्र के पता चलेगा कि कौन सी पार्टी आदिवासियों को साधने में कामयाब होगी. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी अपने आप को आदिवासियों का हितैषी बता रही है. आम आदमी पार्टी कहती है कि इन दोनों ही दलों ने आदिवासियों के लिए आज तक कुछ नहीं किया,. इस बीच चुनावी मुकाबला काफी रोमांचक होने वाले हैं. क्योंकि इस बार के विधानसभा चुनाव में सर्व आदिवासी समाज अपने उम्मीदवार उतार रहा है. ऐसे में उनकी रणनीति और घोषणा पत्र भी आदिवासी वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है."
छत्तीसगढ़ में सत्ता पाने के लिए उत्तर और दक्षिण छत्तीसगढ़ की सीटें काफी महत्वपूर्ण है. इन सीटों को जिसने जीत लिया, सत्ता उसकी हो जाती है. भाजपा की परिवर्तन यात्रा जो दंतेवाड़ा से शुरू की गई थी, जिसमें अमित शाह और स्मृति ईरानी आने वाले थे. लेकिन वह नहीं आए. जिस कारण से यह शुरुआत धमाकेदार नहीं रही. यही कारण है कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान को भी अच्छा मैसेज नहीं मिला है. लेकिन इसके बाद पीएम मोदी की सभा हुई. जेपी नड्डा छत्तीसगढ़ आए तो इससे लग रहा है कि परिवर्तन यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत अच्छी रही है.-सुधीर पांडेय, पॉलिटिकल एक्सपर्ट
सरकार और आदिवासियों के बीच सामंजस्य नहीं हो सका स्थापित: वहीं, इस बारे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट मनीष गुप्ता ने कहा कि, बीजेपी बस्तर, सरगुजा को साधने की कोशिश कर रही है क्योंकि इन जगहों पर बीजेपी का जन आधार तेजी से गिरा है. ऐसे आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश बीजेपी कर रही है. क्योंकि भाजपा के पास इन क्षेत्रों में खोने के लिए कुछ नहीं है. बस्तर की 12 में से 12 विधानसभा सिटे कांग्रेस के पास है. यदि भाजपा अपनी कोशिश में कामयाब रही तो कुछ सीटें जरूर वह हासिल कर सकती है. वहीं, जिन क्षेत्र में धर्मांतरण नक्सली का मुद्दा हावी रहा है. इस मुद्दे को लेकर सरकार और आदिवासियों के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं हो सका. ऐसे में बीजेपी इसमें अपनी जगह तलशने की कोशिश कर रही है."
बता दें कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की संख्या काफी अधिक है. खासकर बस्तर और सरगुजा संभाग में पार्टियों का खास फोकस है. बस्तर संभाग आदिवासियों का गढ़ है. कहा जाता है कि जिस पार्टी का बस्तर पर कब्जा होता है वो सत्ता को पा लेता है. बात अगर मौजूदा समय की करें तो बस्तर संभाग के सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. बस्तर और सरगुजा संभाग के कुल 29 विधानसभा सीटों में से 2 सीटों पर ही भाजपा का कब्जा है. बाकि 27 सीटों पर कांग्रेस काबिज है. इस बीच चुनाव में सर्वआदिवासी समाज के साथ ही आम आदमी पार्टी के लुभावने वादों के बीच कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनाव जीतना बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. कहीं न कहीं सर्व आदिवासी समाज और आम आदमी पार्टी दोनों प्रमुख पार्टियों के समीकरण को बिगाड़ सकती है.