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ग्रामीणों और किसानों का खास पर्व है पोला, जानें महत्व

प्रदेशभर में आज पोला का त्योहार मनाया जा रहा है. पोला-पिठोरा मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है. इस दिन किसान अपने बैलों को अच्छे से नहला कर कौड़ियों आदी से सजाते हैं और उन्हें खाने के लिए अच्छा व्यंजन परोसते हैं. पोला पर्व के पीछे एक पौराणिक महत्व भी बताया जाता है.

पोला पर्व के लिए सजाया गया बैल
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Published : Aug 30, 2019, 9:56 AM IST

Updated : Aug 30, 2019, 1:32 PM IST

रायपुर : कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में पोला एक प्रमुख त्योहार है. पोला किसानों के लिए बहुत ही खास होता है. कहा जाता है कि इन्हीं दिनों में धान की बालियों में दूध भरना शुरू होता है, इसी पर लोगों की मान्यता है कि अन्न की देवी इन्हीं दिनों गर्भवती होती हैं, यानी धान की बाली पुष्ट होना प्रारंभ करती हैं, इसलिए पोला का प्रदेश के किसानों के लिए खासा महत्व है. इस दिन बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा की जाती है. पोला-पिठोरा मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है.

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मिट्टी के खिलौने

इस दिन मिट्टी के बने खिलौनों और बैलों की पूजा की जाती है और घर में ठेठरी, खुरमी जैसे पकवान बनाए जाते हैं. कुम्हार परिवार मिट्टी के खिलौने और बैल बनाकर बाजार में अपनी दुकानें सजाए बैठे हैं. इस दिन किसान अपने बैलों को अच्छे से नहला कर कौड़ियों आदी से सजाते हैं और उन्हें खाने के लिए अच्छा व्यंजन परोसते हैं. इस तरह किसान अपने बैलों के प्रति स्नेह और सम्मान दिखाते हैं.

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बैलों की दौड़

पोला पर्व का पौराणिक महत्व
पोला पर्व के पीछे एक पौराणिक महत्व भी है. बताया जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण को उनके मामा कंस मारना चाहते थे. कंस ने कई राक्षसों से कृष्ण पर हमला कराया, लेकिन सभी नाकाम रहे. इन्ही में एक राक्षस था पोलासुर, जिसका भगवान कृष्ण ने वध कर दिया था और इसी के बाद से भी भादो आमवस्या को पोला के नाम से जाना जाने लगा.

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पूजा को लिए सजाए गए बैल

इस तरह मनाया जाता है पोला

  • पोला के दिन छत्तीसगढ़ में मिट्टी के बैलों की पूजा करने की खास परंपरा है. बच्चे इस पूजा के बाद मिट्टी के बैलों से खेलते हैं.
  • इस दिन बच्चियों के लिए रसोई और गृहस्थी से जुड़े खिलौने भी लाए जाते हैं. इनकी पूजा के बाद बच्चियां इन खिलौने से खेलते हैं.
  • इस पर्व के जरिए ग्रामीण अपने बच्चों को कम उम्र में ही कृषि और गृहस्थी की बारकियों से जोड़ते हैं.
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    मिट्टी के बैल
  • पोला के त्योहार में कुछ जगहों पर बैलों को सजाकर उनके बीच दौड़ भी कराई जाती है. ये खेल ग्रामीण इलाके में पोला के दिन बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है.
  • कई गांवों में पोला के दिन कई तरह की खेल प्रतियोगिता मसलन कबड्डी, खो-खो, दौड़ आदि का भी आयोजन किया जाता है.
  • पोला के दिन छत्तीसगढ़ की परंपरागत व्यंजन ठेठरी-खुरमी का लुत्फ भी उठाया जाता है.

रायपुर : कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में पोला एक प्रमुख त्योहार है. पोला किसानों के लिए बहुत ही खास होता है. कहा जाता है कि इन्हीं दिनों में धान की बालियों में दूध भरना शुरू होता है, इसी पर लोगों की मान्यता है कि अन्न की देवी इन्हीं दिनों गर्भवती होती हैं, यानी धान की बाली पुष्ट होना प्रारंभ करती हैं, इसलिए पोला का प्रदेश के किसानों के लिए खासा महत्व है. इस दिन बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा की जाती है. पोला-पिठोरा मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है.

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मिट्टी के खिलौने

इस दिन मिट्टी के बने खिलौनों और बैलों की पूजा की जाती है और घर में ठेठरी, खुरमी जैसे पकवान बनाए जाते हैं. कुम्हार परिवार मिट्टी के खिलौने और बैल बनाकर बाजार में अपनी दुकानें सजाए बैठे हैं. इस दिन किसान अपने बैलों को अच्छे से नहला कर कौड़ियों आदी से सजाते हैं और उन्हें खाने के लिए अच्छा व्यंजन परोसते हैं. इस तरह किसान अपने बैलों के प्रति स्नेह और सम्मान दिखाते हैं.

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बैलों की दौड़

पोला पर्व का पौराणिक महत्व
पोला पर्व के पीछे एक पौराणिक महत्व भी है. बताया जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण को उनके मामा कंस मारना चाहते थे. कंस ने कई राक्षसों से कृष्ण पर हमला कराया, लेकिन सभी नाकाम रहे. इन्ही में एक राक्षस था पोलासुर, जिसका भगवान कृष्ण ने वध कर दिया था और इसी के बाद से भी भादो आमवस्या को पोला के नाम से जाना जाने लगा.

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पूजा को लिए सजाए गए बैल

इस तरह मनाया जाता है पोला

  • पोला के दिन छत्तीसगढ़ में मिट्टी के बैलों की पूजा करने की खास परंपरा है. बच्चे इस पूजा के बाद मिट्टी के बैलों से खेलते हैं.
  • इस दिन बच्चियों के लिए रसोई और गृहस्थी से जुड़े खिलौने भी लाए जाते हैं. इनकी पूजा के बाद बच्चियां इन खिलौने से खेलते हैं.
  • इस पर्व के जरिए ग्रामीण अपने बच्चों को कम उम्र में ही कृषि और गृहस्थी की बारकियों से जोड़ते हैं.
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    मिट्टी के बैल
  • पोला के त्योहार में कुछ जगहों पर बैलों को सजाकर उनके बीच दौड़ भी कराई जाती है. ये खेल ग्रामीण इलाके में पोला के दिन बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है.
  • कई गांवों में पोला के दिन कई तरह की खेल प्रतियोगिता मसलन कबड्डी, खो-खो, दौड़ आदि का भी आयोजन किया जाता है.
  • पोला के दिन छत्तीसगढ़ की परंपरागत व्यंजन ठेठरी-खुरमी का लुत्फ भी उठाया जाता है.
Intro:कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ राज्य में पोला या पोरा एक प्रमुख त्योहार है। पोला के दिन किसान बैलों के प्रति अपना स्नेह और श्रद्धा व्यक्त करता है. धान के किसान इस दौरान खेती हार्डकोर काम से मुक्त रहता है इन दिनों वो अपनी फसल की देखभाल करता है. लगातार मेहनत कर बैल भी इस दौरान थोड़ी आराम के मुद्रा में होता है। इन्ही परिस्थिति के मद्देनजर इस त्योहार को मनाने की परंपरा है. किसान के इस दौरान उत्साह मनाने का एक बड़ा कारण और भी होता है. दरअसल इन्ही दिनों धान की बालियों में दूध भरना शुरू होता है… कहा जाता कि अन्न देवी इन्हीं दिनों गर्भवती होती हैं, यानी धान की बाली पुष्ट होना प्रारंभ करती हैं. इसलिए भी पोला का प्रदेश के किसानों के लिए खास महत्व है।
Body:कैसे मनाते हैं –
पोला का त्योहार हर साल भादौ मास के आमवस्या को मनाया जाता है। इस दिन किसान अपने बैलों की पूजा करता है. उन्हें अच्छे से नहलाने के बाद कौड़ियों आदी से सजाया जाता है. फिर उसे खाने के लिए भी अच्छा व्यंजन परोसा जाता है. इस तरह किसान अपने बैलों के प्रति स्नेह और सम्मान प्रकट करता है। पोला के दिन छत्तीसगढ़ में मिट्टी के बैलों की पूजा करने की खास परंपरा है। बच्चे इस पूजा के बाद मिट्टी के बैलों से खेलते हैं. वहीं बच्चियों के लिए रसोई और गृहस्थी से जुड़े खिलौने भी इस दिन लाए जाते हैं इनकी पूजा के बाद बच्चियां इन खिलौने से खेलते हैं. इस तरह इस पर्व के माध्यम से ग्रामीण अपने बच्चों में कम उम्र में ही कृषि और गृहस्थी की बारकियों से जोड़ते हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र के विदर्भ और मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में पोला पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. कुछ जगहों पर बैलों को सजाकर उनके बीच दौड़ भी कराया जाता है। ये खेल ग्रामीण इलाकों में पोला के दिन बड़े पैमाने पर आयोजित की जाती रही हैं. कई गांवों में पोला के दिन कई तरह की खेल प्रतियोगिता मसलन कबड्डी, खो-खो, दौड़ आदि का भी आयोजन किया जाता है. पोला के दिन छत्तीसगढ़ की परंपरागत व्यंजन ठेठरी-खुरमी का लुत्फ भी उठाया जाता है.
Conclusion:पौराणिक महत्व-
भगवान कृष्ण को उनके मामा कंस मारना चाहता था, कंस कई राक्षसों से कृष्ण पर हमला कराता है लेकिन सभी नाकाम रहते हैं. इन्ही में एक राक्षस था पोलासुर जिसका भगवान कृष्ण वध कर देते हैं. इसलिए भी भादौं आमवस्या को पोला के नाम से जाने जाने लगा ।
Last Updated : Aug 30, 2019, 1:32 PM IST
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