रायपुर : मोहर्रम की दसवीं तारीख 30 अगस्त को पड़ रही है. हर साल मोहर्रम पर शहर के अलग-अलग इलाकों से मातमी जुलूस और ताजिया निकाली जाती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान इस बार ताजिया और मातमी जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी गई है. परंपरा के तौर पर इस साल मोहर्रम पर मस्जिदों में चंद लोगों की मौजूदगी में ही कर्बला के शहीदों को याद किया जाएगा.
कोरोना संक्रमण के कारण मोहर्रम के जुलूस पर रोक
हर साल मोहर्रम की आखिरी तारीख में बड़ा जुलुस निकला जाता था, जिसमें हजारों की तादाद में लोग शामिल होते थे. रायपुर में यह जुलूस शहर के मुख्य स्थानों से होता हुआ कर्बला तलाब में ताजियों को विसर्जन किया जाता था, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए प्रशासन की ओर से अनुमति प्रदान नहीं की गई है.
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प्रशासन के साथ बैठक
मोहर्रम के अंतिम तारीख को लेकर मुस्लिम समाज के लोगों और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच बैठक रखी गई है. बैठक में तमाम दिशा में लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत करेंगे.
मोहर्रम शहादत की याद में मनाया जाता है
मौलाना जलाल हैदर नकवी ने बताया मोहर्रम शहादत की याद में मनाया जाता है. पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला के मैदान में 1400 साल पहले उनके घर वालों के साथ शहीद कर दिया गया था. इमाम हुसैन ने अपनी शहादत से पूरी दुनिया को यह पैगाम दिया कि कभी भी जुल्म के सामने सिर झुकाने की जरूरत नहीं है.
शोक मनाने का महीना
हजरत इमाम हुसैन का शोक दो महीने आठ दिन तक मनाया जाता है, जबकि मोहर्रम महीने के शुरू के 10 दिन तक मनाया जाता है. इसे अशरा-ए-मोहर्रम कहा जाता है.हजरत इमाम हुसैन की शहादत मोहर्रम की दसवीं तारीख को हुई है, इसलिए एक मोहर्रम से लेकर 10 मोहर्रम तक मातम, मजलिस और जुलूस का सिलसिला जारी रहता है. अधिकतर लोग मोहर्रम को त्योहार समझते हैं, बता दें कि मोहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि इमाम हुसैन की शहादत का मातम और शोक मनाने का महीना है.