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छत्तीसगढ़ी परंपरा के लिए मशहूर गढ़कलेवा अपनी परंपरा से हुआ दूर, जिनकी थी ये कल्पना उन्होंने ही उठाए ये सवाल

रायपुर :  छत्तीसगढ़ी व्यंजन के लिए मशहूर गढ़कलेवा में छत्तीसगढ़ी परंपरा खत्म होते देख इसकी परिकल्पना करने वाले अशोक तिवारी ने गढ़कलेवा संचालक पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि गढ़कलेवा छत्तीसगढ़ी व्यंजन के लिए फेमस है. यदि परंपरा ही खत्म हो जाएगी, तो यह गढ़कलेवा बाकियों से अलग क्यों कहलाएगा.

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Published : Mar 3, 2019, 3:12 PM IST

जिनकी थी ये कल्पना उन्होंने ही उठाए ये सवाल

रायपुर का गढ़कलेवा छत्तीसगढ़ी पकवानों को ठेठ देसी अंदाज में लोगों तक पहुंचाने के लिए शुरू किया गया था. अब इसको लेकर कई विवाद सामने आ रहे हैं. गढ़कलेवा की परिकल्पना देने वाले अशोक तिवारी ने परंपरा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि गढ़कलेवा को जिस परंपरा के साथ शुरू किया गया था, आज वैसा नहीं रह गया है. इसे पारंपरिक अंदाज में संचालित किया जाना था, जिसमें भोजन को परोसने से लेकर व्यंजन और मेहमाननवाजी सब कुछ छत्तीसगढ़ी अंदाज में किया जाना था, लेकिन आज परंपरा में बदलाव आ गया है.

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तिवारी के आरोपों का जवाब देते हुए गढ़कलेवा संचालक सरिता शर्मा ने कहा कि बुनियादी समस्या की कमी की वजह से उन्हें छत्तीसगढ़ी परंपरा में पूरी तरह खरे नहीं उतर पा रहे हैं. उनका कहना है कि लोगों के आवाजाही के अनुसार पर्याप्त मात्रा में कासा के बर्तन, दोना, पत्तल अन्य छत्तीसगढ़ी वस्तु उपलब्ध नहीं हो पा रही है, जिसके कारण कुछ परंपरा को निभाने से वे चूक जा रहे हैं. वहीं उन्होंने शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि जब वस्तुएं उपलब्ध थीं, तब परंपरा को निभाया जा रहा था.

रायपुर का गढ़कलेवा छत्तीसगढ़ी पकवानों को ठेठ देसी अंदाज में लोगों तक पहुंचाने के लिए शुरू किया गया था. अब इसको लेकर कई विवाद सामने आ रहे हैं. गढ़कलेवा की परिकल्पना देने वाले अशोक तिवारी ने परंपरा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि गढ़कलेवा को जिस परंपरा के साथ शुरू किया गया था, आज वैसा नहीं रह गया है. इसे पारंपरिक अंदाज में संचालित किया जाना था, जिसमें भोजन को परोसने से लेकर व्यंजन और मेहमाननवाजी सब कुछ छत्तीसगढ़ी अंदाज में किया जाना था, लेकिन आज परंपरा में बदलाव आ गया है.

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तिवारी के आरोपों का जवाब देते हुए गढ़कलेवा संचालक सरिता शर्मा ने कहा कि बुनियादी समस्या की कमी की वजह से उन्हें छत्तीसगढ़ी परंपरा में पूरी तरह खरे नहीं उतर पा रहे हैं. उनका कहना है कि लोगों के आवाजाही के अनुसार पर्याप्त मात्रा में कासा के बर्तन, दोना, पत्तल अन्य छत्तीसगढ़ी वस्तु उपलब्ध नहीं हो पा रही है, जिसके कारण कुछ परंपरा को निभाने से वे चूक जा रहे हैं. वहीं उन्होंने शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि जब वस्तुएं उपलब्ध थीं, तब परंपरा को निभाया जा रहा था.

Intro:छत्तीसगढ़ी व्यंजन के लिए मशहूर गढ़ कलेवा को लेकर विवाद,जिनकी थी परिकल्पना उन्होंने ही उठाए कई गम्भीर सवाल


Body:रायपुर का गढ़ कलेवा छत्तीसगढ़ी व्यंजन के लिए काफी मशहूर है अपनी तरह का अनोखा प्रयोग था जिसे छत्तीसगढ़ के पकवानों को छत्तीसगढ़ी अंदाज़ में लोगों तक पहुंचाने के लिए शुरू किया गया अब इस गढ़ कलेवा को लेकर कई विवाद सामने आ रहे हैं,
गढ़ कलेवा की परिकल्पना देने वाले अशोक तिवारी ने भी कई सवाल खड़े किए हैं, अभी कहां है की शुरूआती वक्त में जैसा संचालन करने का निर्णय लिया गया था वैसा नहीं किया जा रहा है डॉ अशोक तिवारी ने बताया की गढ़ कलेवा को पारंपरिक अंदाज में संचालित किया जाना था भोजन से लेकर भोजन परोसने तक सब कुछ ठेठ छत्तीसगढ़ी तरीके से होना था पर अब उसने काफी बदलाव आ गया है


Conclusion:बाइट-डॉ अशोक तिवारी,परिकल्पना
बाइट-सरिता शर्मा,संचालक, गढ़ कलेवा
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