रायपुर का गढ़कलेवा छत्तीसगढ़ी पकवानों को ठेठ देसी अंदाज में लोगों तक पहुंचाने के लिए शुरू किया गया था. अब इसको लेकर कई विवाद सामने आ रहे हैं. गढ़कलेवा की परिकल्पना देने वाले अशोक तिवारी ने परंपरा को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि गढ़कलेवा को जिस परंपरा के साथ शुरू किया गया था, आज वैसा नहीं रह गया है. इसे पारंपरिक अंदाज में संचालित किया जाना था, जिसमें भोजन को परोसने से लेकर व्यंजन और मेहमाननवाजी सब कुछ छत्तीसगढ़ी अंदाज में किया जाना था, लेकिन आज परंपरा में बदलाव आ गया है.
तिवारी के आरोपों का जवाब देते हुए गढ़कलेवा संचालक सरिता शर्मा ने कहा कि बुनियादी समस्या की कमी की वजह से उन्हें छत्तीसगढ़ी परंपरा में पूरी तरह खरे नहीं उतर पा रहे हैं. उनका कहना है कि लोगों के आवाजाही के अनुसार पर्याप्त मात्रा में कासा के बर्तन, दोना, पत्तल अन्य छत्तीसगढ़ी वस्तु उपलब्ध नहीं हो पा रही है, जिसके कारण कुछ परंपरा को निभाने से वे चूक जा रहे हैं. वहीं उन्होंने शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि जब वस्तुएं उपलब्ध थीं, तब परंपरा को निभाया जा रहा था.