रायपुर: छत्तीसगढ़ को बने लगभग 22 साल हो गए हैं. बावजूद यहां पर अब तक कार्बन डेटिंग जांच लैब की स्थापना नहीं की गई है, जिस वजह से यहां प्राचीन काल की मूर्तियां, बर्तन के अवशेष के वर्ष को जानने में दिक्कत होती है. इतना ही नहीं लिपि की पहचान के लिए भी अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है. कार्बन डेटिंग लैब में होने से पुरातत्व विभाग को अवशेष समय निर्धारण और इतिहास सहित अन्य जानकारी पता करने में परेशानी होती है.
छत्तीसगढ़ में पुरातत्व अवशेषों (Archaeological remains in Chhattisgarh) का भंडार है. यहां कई सारे ऐतिहासिक एवं प्राचीन धरोहर छुपे हुए हैं, जिसका पता लगाने के लिए पुरातत्व विभाग के द्वारा समय-समय पर खुदाई भी की जाती है, लेकिन खुदाई के बाद उन अवशेषों के बारे में विस्तृत इतिहास जानकारी के लिए विभाग को दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है. खुदाई में मिल रहे अवशेष व बर्तनों की सही उम्र पता लगाने के लिए हमारे प्रदेश में कोई लैब ही नही हैं, जिसके कारण महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में स्थित लैब का सहारा लेना पड़ता है. इसकी जांच रिपोर्ट आने में एक माह से छह माह लग जाता है.
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अभी प्रदेश के ऐतिहासिक स्थलों रीवा, जमराव और तरीघाट में खुदाई की जा रही है. इसमें कई ऐसे वस्तु, जीवाश्म, मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जिसके थर्मोल्यूमिनिसेंस डेटिंग, कार्बन डेटिंग के साथ सिक्के में लिखे लिपि का पता लगाने के लिए यहां पर कोई लैब नहीं होने के कारण इन सबको बाहर भेजा जाता है. इसमें समय भी लगता हैं और कई प्रकार की दिक्कत भी आती है.
क्या है कार्बन डेटिंग: पुरातत्ववेत्ता जी.आर. भगत ने ईटीवी भारत को बताया कि खुदाई में मिले जीवाश्म के साथ कंकाल का कार्बन डेटिंग को रेडियो एक्टिव पदार्थों की आयु में सीमा निर्धारण करने में कार्बन-12 व 14 के माध्यम से प्रयोग किया जाता है. कार्बन काल विधि के माध्यम से समय निर्धारण होने पर इतिहास और वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है. अब तक पुरातत्व चीजों की सही उम्र पता लगाने के लिए विधि ही उपयोग में लाई जाती थी.
लखनऊ में है प्रयोगशाला: पुरातत्ववेत्ता जी.आर. भगत की मानें तो प्रयोगशाला लखनऊ के बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान में है. प्रयोगशाला खुदाई के दौरान मिले मानव और पशु के अवशेष की जांच करने के लिए आधुनिक और प्राचीन डीएनए डेटासेट को एक साथ लाया जाता है.
थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि से मिट्टी के बर्तन के काल का लगाया जाता है पता: पुरातत्ववेत्ता जे आर भगत बताते हैं कि, कार्बन डेटिंग विधि का उपयोग जैविक चीजों में होता है, जबकि थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि का उपयोग पुरातत्व खुदाई में मिट्टी के बर्तनों का काल पता लगया जाता है. जैसे मिट्टी के बर्तनों, इमारत की नींव की दीवार, हड्डियां, उपकरण, ईंट, मोर्टार पीले और कृषि क्षेत्र जैसी थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि का उपयोग करके सही काल का पता लगाया जाता है.
लिपि की जानकारी के लिए भेजा जाता है नागपुर: पुरातत्ववेत्ता जे आर भगत बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में खुदाई में मिले सिक्के व पहाड़ पर मिले ब्राम्ही व ताम्रपत्र में लेख को विभाग के अधिकारी व कर्मचारी पढ़ लेते हैं, लेकिन ऊर्दू व पारसी लेख के लिए नागपुर जाना पड़ता है.
छत्तीसगढ़ में नहीं है कार्बन डेटिंग लैब: पुरातत्ववेत्ता जे आर भगत बताते हैं कि अभी तक छत्तीसगढ़ में कार्बन डेटिंग लैब नहीं बनाया गया है, जिस वजह से यहां खुदाई में मिलने वाली चीजों को अन्य राज्यों में कार्बन डेटिंग अन्य जानकारी पता करने को भेजा जाता है.