रायपुर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgrah) की राजधानी रायपुर (Raipur) में लावारिश लाशों (Unclaimed corpses) का कफन(Kafan) और दफन (Dafan) दोनों जवानों (soldiers) के लिए बड़ी समस्या बन गई है. सालों से पुलिस (Police) के जवान खुद से मोक्ष संस्था (Moksh sanstha) के सहयोग से लावारिश शवों का दाह-संस्कार (Cremation of dead bodies) करते आ रहे हैं. लावारिश लाशों के कफन दफन के लिए कोई बजट नहीं होने से पुलिस जवानों के हजारों रुपये फंस गए हैं. जवान पैसों को लेकर लगातार अधिकारियों (Officers) के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन, उन्हें बजट (Budget) नहीं होने का हवाला देकर लौटा दिया जा रहा है.
ETV भारत की टीम ने पड़ताल की, तो पाया गया कि राजधानी के आसपास के थाना क्षेत्र में औद्योगिक संस्थान होने से दूसरे राज्यों से रोजी-रोटी कमाने आने वालों की किसी कारण से मौत होने पर उनकी पहचान नहीं हो पाती है. ऐसी स्थिति में अज्ञात व्यक्ति का मर्ग कायम करने और पंचनामा कार्रवाई के बाद जवानों को ही कफन और दफन की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. वहीं, इस सत्र में लावारिश लाशों के कफन-दफन के लिए किसी तरह का कोई बजट नहीं है. जिसके कारण जवानों के पैसे अटके हुए हैं.
पेशी के लिए रायपुर जिला कोर्ट आया हत्या का आरोपी फरार
जवानों को अपनानी होती है यह प्रक्रिया
पड़ताल में जवानों ने बताया कि लावारिश शवों का पोस्टमार्टम कराने और पंचनामा के बाद कफन दफन के लिए ले जाने वाहन बुलाना पड़ता है. जिसके बाद शव दफनाने के लिए गड्ढा खोदने और उसका कफन-दफन के बाद किए गए हर खर्चे की पक्की रसीद देनी होती है.इसके साथ आवेदन करके उसे एसपी ऑफिस में जमा करना होता है. फिर एसपी आफिस से लेटर कलेक्ट्रेट में जाता है. जिसके बाद एक शव का 2 हजार रुपये का भुगतान किया जाता है.
तीन से चार माह बाद होता है भुगतान
इस साल एक भी रुपये का भुगतान नहीं हो पाया है. कई बार SP आफिस के दफ्तर के चक्कर काट चुके हैं. वहां बैठे बाबू कहते हैं कि आवेदन तो हम ले लेंगे, लेकिन इस सत्र में लावारिश लाशों के कफन-दफन के लिए बजट ही निर्धारित नहीं किया गया है.इससे पहले भी जब मोक्ष संस्था का बिल जमा किया जाता था, उस समय भी भुगतान होने में करीब तीन से चार माह लग जाते थे.
अधिकारियों ने फेरा मुंह
मामले को लेकर जब हमारी टीम ने संबंधित अधिकारी से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने इस मामले पर कुछ भी कहने से साफ तौर पर इनकार कर दिया. पुलिस अफसर ही इस मामले पर यदि बचते नजर आएंगे तो भला उन जवानों का क्या होगा जिन्होंने अपनी जेब के पैसे लगाकर खर्च किये हैं. शायद यही वजह है कि जवान थक हार कर अब आवेदन जमा करना ही बंद कर दिए हैं.बहुत से जवान तो अब अंतिम संस्कार के लिए समाज सेवी संस्थानों को जिम्मेदारी सौंप देते हैं.
कर्ज ज्यादा भुगतान भी कम
लावारिस शवों का कफन-दफन करवाने पर 4000 से ज्यादा खर्च होता है.क्योंकि शव वाहन किराया, कफन-दफन के लिए गड्ढा खोदने के अलावा अन्य सामग्री खरीदने पर भी जेब से ही पैसा खर्च करना पड़ता है, जबकि शासन की गाइडलाइन के मुताबिक सिर्फ दो हजार कफन-दफन के लिए देने वर्षों पुराना प्रावधान है.