रायपुर: देवशयनी एकादशी को लक्ष्मीनारायण एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन स्वाति नक्षत्र, सिद्ध योग, विष्कुंभ और बवकरण स्थिर योग के साथ तुला राशि का प्रभाव देखने को मिलेगा. इस बार देवशयनी एकादशी गुरुवार को पड़ रहा है. इसे चातुर्मास का प्रारंभ भी माना जाता है. इस दिन पंढरपुर यात्रा भी शुरू होती है. इस दिन से सभी मांगलिक काम बंद हो जाते हैं. कहते हैं कि इस दिन से श्री हरि विष्णु छीर सागर में लंबे विश्राम के लिए चले जाते हैं. हरि विष्णु योग निद्रा में रहते हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को फिर से विष्णु भगवान जागते हैं. तब से फिर शुभ काम का करना शुरू हो जाता है.
देवशयनी एकादशी पर इस विधि से करें पूजन: एकादशी काफी महत्वपूर्ण दिन होता है. इस दिन व्रत करने के साथ ही दान पुण्य करना बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन दान का विशेष महत्व है. पंडित विनीत शर्मा के अनुसार "देवशयनी एकादशी के दिन पीले कपड़े पहनकर, आसन लगाकर श्री हरि विष्णु को पीले आसन पर बैठाकर पूजन करना चाहिए. श्री हरि विष्णु को गंगा जल से स्नान कराना चाहिए. इसके साथ ही पुष्पों को श्री हरि को अर्पित करना चाहिए. इस दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है. यहां से लगभग 4 माह तक शुभ कार्य वर्जित रहता है. मंदिरों के प्राण प्रतिष्ठा का काम वर्जित हो जाता है. हालांकि फसलों की बुवाई के लिए ये समय बेहद महत्वपूर्ण होता है."
जानिए देवशयनी एकादशी की कथा: एक समय राजा बली सभी राज्यों को जीतकर तीनों लोकों पर जीतने का मन बना रहे थे. इससे डरकर इंद्र आदि देवताओं ने श्री हरि विष्णु के पास जाकर याचना की. तब श्री हरि विष्णु ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने गए थे. वामन भगवान के रूप में श्री हरि विष्णु ने राजा बलि से प्रथम 2 पगों में पूरे संसार, आकाश, पाताल को मांग लिया और तीसरे पग को राजा बलि के सिर के ऊपर रख दिया. इससे प्रसन्न होकर भगवान ने अपना वामन रूप दिखाया औप प्रकट हो गए. तब राजा बलि ने श्री हरि विष्णु से वरदान मांगा कि आप 4 माह के लिए पाताल लोक में विश्राम करने के लिए चले जाएं. तब से ही श्री हरि विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन से क्षीर सागर में लंबे विश्राम के लिए चले जाते हैं.