रायपुर: शरीर में कहीं चोट लग जाए और चोट लगने से कितना दर्द होता है. यह कोई नहीं बता सकता. डॉक्टर अपने अनुसार देखकर या पेशेंट के बताने पर ही पेन किलर देता है. लेकिन रायपुर एनआईटी के प्रोफेसर और रिसर्चर ने एक ऐसा सिस्टम ईजाद किया है. जो मरीज को कितना दर्द है. यह बता सकता है. इसके लिए पेशेंट की (machine tell place of pain watching video of body) वीडियोग्राफी की जाती है और उसके चेहरे के हाव-भाव, बॉडी मूवमेंट और आवाज से दर्द के स्तर का पता लगाया जा सकता है. इस सिस्टम को (machine tell pain watching video of body: ) एनआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एनडी लोंढे और रिसर्च स्कॉलर आशीष सेमवेल (NIT raipur Professor ND Londhe and Research Scholar Ashish Semwell) ने ईजाद किया है. ऐसे में ईटीवी भारत ने पेन डिटेक्ट करने वाले इस सिस्टम के बारे में एनआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एनडी लोंढे से खास बातचीत की. देखिए उन्होंने क्या कहा.
सवाल: आपके मन में कैसे आया और आपने किस तरह से इस सिस्टम को तैयार किया?
जवाब: जितने भी मरीज किसी भी डॉक्टर्स के पास जाते हैं. उनमें से 80 से 90 प्रतिशत लोगों की पहली शिकायत पेन की होती है. पेन को ही जान और समझकर डॉक्टर आगे की ट्रीटमेंट या मेडिकेशन को निर्धारित करते हैं. चूंकि पेन को समझने वाली जो बात है. वह डॉक्टर्स में उनके अनुभव के थ्रू आती है. दूसरा तरीका यह है कि पेशेंट खुद अपनी तरफ से बताए कि कितना पेन हो रहा है. इसमें दोनों चीजों में थोड़ी सी कमी है. जैसे पेशेंट किसी ऑर्थोपेडिक सर्जन के पास जाता है. उसका कोई एक्सीडेंट हुआ है तो पूरा दिन वह किस पेन में रहा वो डॉक्टर लगातार ऑब्जर्व नहीं कर सकते. क्योंकि उनके पास इतना समय नहीं रहता. ऐसे ही जब कोई पेशेंट डॉक्टर को बताता है कि मुझे इतना पेन हुआ है वो रिलाएबल नहीं हो सकता.
मान लीजिए किसी को चोट बार-बार लगी है. वह शायद अपने दर्द को कम आंक रहा हो. ऐसा भी हो सकता है यदि किसी को पहली बार चोट लगी हो और वह दर्द को बहुत ज्यादा आंक रहा है, जबकि उसे पेन कम हो रहा है. इसलिए ऐसे केसेस में एक कोई फिक्स टेक्नोलॉजी या कोई फिक्स पैमाना होना चाहिए. जिसमें आप निर्धारित कर सके कि इस पेशेंट को पेन है या नहीं है. यदि है तो कितना है. क्योंकि एक्सीडेंटल केस में ऐसा जरूरी होता है कि 24 घंटे तक उस पेशेंट के पेन को मॉनिटर किया जाए. यह जाना जाए कि उनको पेन कितना है. उस केसेस में पॉसिबल नहीं है कि मेडिकल स्टाफ उसे 24 घंटे तक ऑब्जर्व कर सके और पेशेंट के दर्द को रिकॉर्ड कर सके. ऐसी स्थिति में हमने एक ऐसा सिस्टम बनाया है. जिसमें पेशेंट की लगातार एक वीडियोग्राफी की जाती है. उस वीडियोग्राफी में तीन पैरामीटर लिए जाते हैं. एक चेहरे का हाव भाव, दूसरा बॉडी में क्या मूवमेंट हो रहा है. तीसरा पेन का साउंड मतलब, पेन की वजह से जो आवाज निकल रही है. ऐसा ही एक सिस्टम हमने बनाया है.
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सवाल: यह सिस्टम किस तरह का है, क्या ग्राफिक्स के आधार कुछ बता सकते हैं?
जवाब: हमने एक प्रेजेंटेशन बनाया है. पहले कॉलम में सिर्फ चेहरे लिए गए हैं. दूसरे कॉलम में बॉडी का मूवमेंट लिया गया है. तीसरे कॉलम में हमने मरीज के साउंड को रिकॉर्ड किया है. जिसको हमने इसमें दिखाया है. हमने इन तीन पैरामीटर को लेकर पेन डिटेक्शन सिस्टम को डिजाइन किया है.
सवाल: इस मशीन को तैयार करने में कितना समय लगा. आपने यह रिसर्च किस तरह किया.?
जवाब: 2018 में मुझे डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की तरफ से एक प्रोजेक्ट फंडेड हुआ था. जिसके अंतर्गत हम लोगों ने यह काम किया है. उस समय से 2022 तक धीरे-धीरे इस मुकाम तक पहुंचे.
सवाल: इस सिस्टम में दर्द का पैमाना कैसे पता चलेगा?
जवाब: यह सिस्टम हमने डिजाइन किया है. जिसमें आप देखेंगे कि हमारे मेन वीडियो क्लिप में पहले फेस को रिकॉर्ड किया गया, फिर बॉडी के मूवमेंट को रिकॉर्ड किया गया. उसके बाद वॉइस को लिया. इसके लिए हमने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कंप्लीट सिस्टम बनाया है, जो सिर्फ फेस, बॉडी मूवमेंट और पेन के वॉयस का पैमाना बताता है. हमने स्टडी में इसे किया तब हमें पता चला कि फेस का एक्सप्रेशन वीडियो में कैप्चर करना इतना आसान नहीं है. क्योंकि जो पेशेंट पेन में होता है. वह अपनी गर्दन को काफी हिलाता है. इसलिए उसका फेस पूरी तरह से नहीं आ पाता.
इसलिए आज तक जो रिसर्च हुई है वह सिर्फ चेहरे के हाव-भाव पर ही हुई है. उसमें यहीं एक त्रुटि है जिसकी वजह से उस पद्धति को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. उसका कारण यही है क्योंकि चेहरा जो है वह हाव भाव के दौरान हिल जाता है. इसलिए संभव नहीं हो पाता की वीडियोग्राफी करते हुए उसका चेहरा वीडियो में आ जाए. चूंकि हमने जो वीडियो ग्राफ कैप्चर किया है. उसमें कभी हमें फेस भी मिल जाता है. कभी हमें बॉडी मूवमेंट भी मिल जाती है. कभी हमें साउंड भी मिल जाता है. तब हमने सोचा कि क्यों ना हम तीनों पैरामीटर को जोड़ करके इस दर्द के पैमाने को पता करें, और हमने पता भी किया. जैसे आप देख सकते हैं जब हमने चेहरे के हाव-भाव से इसे जानने की कोशिश की तो हमें 84% सक्सेस मिला. उसके बाद जब बॉडी के मूवमेंट से जानने की कोशिश की तो 70% तक सक्सेस मिला. फिर जब दर्द के साउंड से जानने की कोशिश की तो 75 परसेंट सक्सेस मिला, लेकिन जब हमने तीनों पैरामीटर को जोड़ा.
मान लीजिए कोई एक पैरामीटर नहीं है तो उस समय दर्द का आवाज मिल रहा है, लेकिन चेहरे के हाव भाव नहीं मिल रहे हैं. उस समय बॉडी के मूवमेंट और आवाज जो है वह काम कर जाती है. जब आवाज नहीं होती है उस समय चेहरे का हाव भाव या बॉडी की दोनों मूवमेंट काम कर जाती है. जब हमने इन तीनों पैरामीटर को यूज किया तो हमें सक्सेस रेट 92 प्रतिशत मिल रही है. इस रिसर्च में हमने पेन की तीन कैटेगरी से दर्द का पता लगाया. इस तरह इस कैटेगरी में नो पेन, माइल्ड पेन और सीवियर पेन मिलाकर कुल तीन कैटेगरी है. हमने तीनों पेन को अच्छे से 92 फीसदी वास्तविकता के साथ पता किया है.
सवाल: इसे लेकर आपने कैसे रिसर्च किया. क्या इसके लिए किसी अस्पताल में गए?
जवाब: इसके लिए मरीजों का वीडियो क्लिप रिकॉर्ड करना जरूरी है. एनआईटी की अनुमति के साथ हम दाऊ कल्याण सिंह अस्पताल के ऑर्थोपेडिक सर्जन से मिले. उनके अनुमति से हमने कुछ पेशेंट के डेटा को रिकॉर्ड किया. वह रियल टाइम सिनेरियो है. जैसे आप इस तस्वीर में देख सकते हैं कि यह हमारे यहां के दाऊ कल्याण सिंह अस्पताल में आई हुई महिला का है. ऐसे ही हमने काफी लोगों का डाटा कलेक्ट किया, फिर उसे हमने अपने सिस्टम से पता किया.
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सवाल: भविष्य में यह तकनीक कितनी फायदेमंद हो सकती है ?
जवाब: भविष्य में इसका बहुत ज्यादा फायदा हो सकता है. क्योंकि भारत ऐसा देश है जहां पे डॉक्टर और मरीजों का रेशियो लगभग 2000 में 1 है. मतलब दो हजार पेशेंट के पीछे एक डॉक्टर है. ऐसे में डॉक्टर के लिए असंभव है कि वह अपने पेशेंट का दर्द लगातार ऑब्जर्व कर सके, लेकिन हमारा यह सिस्टम उनको लगातार पेन का रिपोर्ट देता रहेगा कि इस पर्टिकुलर पेशेंट की पेन की स्थिति कैसी है. जिसकी वजह से यह हो सकता है कि डॉक्टर उनका ट्रीटमेंट या मेडिकेशन समय समय पर चेंज कर सके. ताकि उस पेशेंट की रिकवरी थोड़ी जल्दी हो सके.
सवाल: इसे व्यापक स्तर पर पहुंचाने के लिए आप लोगों की ओर से क्या कुछ प्रयास किया जाएगा?
जवाब: क्योंकि हमारा सिस्टम टेस्टिंग मोड पर था, जो पूरी तरह से कंप्लीट हो चुका है. इसके बाद हम दूसरी प्रक्रिया में जाएंगे. हमारी कोशिश रहेगी कि इसे इंडस्ट्रीज प्रोडक्ट में कन्वर्ट किया जाए. जिसमें लगेगा कि यह एक पूरी तरह मशीन में तब्दील हो चुकी है. इसमें एक वीडियो कैमरा रहेगा. एक मॉनिटर रहेगा. उस मॉनिटर के साथ में एक प्रोसेसर भी रहेगा. प्रोसेसर पेन मेजरमेंट करके मॉनिटर में शो करता रहेगा कि इस पेशेंट का पेन किस रेंज में चल रहा है.
सवाल: आपकी टीम में कौन-कौन सदस्य थे, जिन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है?
जवाब: चूंकि यह प्रोजेक्ट मुझे मिला था. मैं इसका प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर हूं. इसमें हमारे एक रिसर्च स्कॉलर आशीष सेमवेल हैं. उन्होंने इस पर काम किया है. उनकी पीजीएचडी भी इसी विषय में पूर्ण हो चुकी है. अभी उनका अंतिम एग्जाम बाकी है.