रायपुर: छत्तीसगढ़ में नक्सल पर्चे को लेकर एक बार फिर से सियासी हलचल शुरू हो गई है. सलवा जुड़ूम के बाद अपना गांव छोड़कर गए सुकमा जिले के 25 आदिवासी परिवार फिर अपने गांव मड़ईगुड़ा लौटे हैं. लेकिन एक पर्चे ने आदिवासियों से घर लौटने की खुशी छीन ली है और भोले-भाले आदिवासियों के सामने अपनी जिंदगी गुजारने का बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
कोंटा डिविजन कमेटी की ओर से जारी इस पत्र में नक्सलियों ने मड़ईगुड़ा लौटे ग्रामीणों के लिए पटवारियों को पट्टा जारी करने को लेकर भी आपत्ति जताई है. इस पत्र के चलते कई सालों बाद मडईगुड़ा में वापस लौट रहे आदिवासी परिवारों के सामने मुश्किलें बढ़ गई हैं. वहीं इस पर्चे को लेकर खुफिया विभाग के अधिकारियों से लेकर आदिवासियों पर काम कर रहे हैं विशेषज्ञों ने भी हैरानी जताई है कि कैसे नक्सली अपने सिद्धांतों के खिलाफ जाकर बात कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ के सुकमा कोंटा इलाकों में सालों से रह रहे आदिवासी बीते कुछ सालों पहले कई तरह के कारणों के चलते दूसरे प्रदेशों पर चले गए थे जो अब वापस लौटने लगे हैं. इसे लेकर मड़ईगुड़ा क्षेत्र में अब आदिवासियों परिवारों के सामने संकट के हालात बन गए हैं. नक्सलियों ने एक पर्चा जारी किया जो ईटीवी भारत के हाथ लगा है. हमने देखा कि ये महज नक्सलियों की धमकी नहीं बल्कि आदिवासियों के लिए चिंता का सबब भी है.
इस पर्चे में कोंटा एरिया कमेटी की ओर से जारी किए गए बयान में पटवारियों को मड़ाईगुड़ा इलाके में भाषण बाजी बंद करने का फरमान जारी किया है, साथ ही मलाईगुड़ा के लोगों के लिए पट्टा बनाने के काम न करने की धमकी भी दी है. इसे लेकर अब आदिवासियों के लिए काम कर रहे लोगों ने भी हैरानी जताई है. दरअसल इस पर्चे के बाद उस इलाके में सरकारी कामकाज को लेकर भी डर और भय का माहौल शुरू हो गया है.
वहीं आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं शुभ्रांशु चौधरी कहते हैं कि इस पत्र को लेकर कहीं ना कहीं संकट की स्थिति बन रही है क्योंकि यह पत्र आदिवासियों के मूल सिद्धांत के खिलाफ है. जल, जंगल और जमीन की बात करने वाले आदिवासी भूमि अधिकार कानून और पट्टे का विरोध इस पर्चे में करते दिख रहे हैं तो कहीं ना कहीं शंका की स्थिति बन रही है। इस पर्चे के चलते जंगलों में फारेस्ट राइट एक्ट काम रुक गया है.
वहीं छत्तीसगढ़ में नक्सल इलाकों को लेकर काम कर रहे हैं पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी पत्र को लेकर हैरानी जताते दिख रहे हैं.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इस तरह के पत्र में नक्सली अब अपने अधिकारों कभी विरोध करते दिख रहे हैं. इस पत्र में किए संगठन का नाम भी स्पष्ट तौर पर दिख नहीं रहा है. पत्र के ऑथेंटिसिटी की जांच की जाएगी कि पत्र वाकई में नक्सलियों में जारी किया है या नहीं.
अगर ये पर्चे सही हैं तो ये सरकार और आदिवासियों के खतरे की घंटी तो है ही साथ ही साथ ये भी साफ हो रहा है कि आदिवासियों के हक की बात करने वाले नक्सली सिर्फ और सिर्फ उन्हें अपनी भोग की वस्तु समझ रहे हैं. ऐसे में इस मामले में अब जल्द से जल्द खुलासा होना जरूरी है ताकि आदिवासियों को फारेस्ट राइट एक्ट के तहत मिलने वाले अधिकारों का हनन ना हो.