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नक्सलियों के निशाने पर क्यों हैं सीआरपीएफ के कैंप ? - Naxalites upset due to opening of camp

बीजापुर में पामेड़ के धर्मारम इलाके में कुछ दिन पहले सुरक्षा बलों ने एक नया कैंप खोला है. नक्सली नहीं चाहते कि यहां उनकी निगहबानी के लिए कोई कैंप बने. इसलिए वे लगातार इसका विरोध कर रहे हैं. इसी का नतीजा रहा कि सोमवार रात नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी थी. सुरक्षा बलों के जानकार के मुताबिक साल 2016 से 2020 के बीच अब तक 80 से ज्यादा सुरक्षा बलों के कैंप नक्सलगढ़ में बने हैं. जिससे नक्सलियों में हताशा है. यही वजह है कि वह इस तरह की फायरिंग की घटना को अंजाम देते हैं.

Naxalite
सुरक्षाबलों के कैंप खुलने से नक्सली बौखलाए
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Published : Sep 28, 2021, 11:27 AM IST

Updated : Sep 28, 2021, 10:24 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ के बीजापुर (Bijapur of Chhattisgarh) में नक्सलियों ने सोमवार देर रात 196 सीआरपीएफ बटालियन (196 CRPF Battalion) के धर्मारम कैंप (Dharmaram Camp) पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग की आवाज सुनते ही जवानों ने भी मोर्चा संभाल लिया. इसके बाद सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ शुरू (Encounter Between Security Forces and Naxalites) हो गई. पामेड़ के नजदीक यह मुठभेड़ हुई. हालांकि करीब दो घंटे से ज्यादा समय तक चली इस गोलीबारी में किसी भी जवान के हताहत होने की सूचना नहीं है. छत्तीसगढ़-तेलंगाना राज्य की सीमा (Chhattisgarh Telangana State Border) के पास बीजापुर से करीब 60 से 70 किलोमीटर की दूरी पर पामेड़ के इलाके की यह घटना है. इस नक्सली फायरिंग की पुष्टि पुलिस अधीक्षक कमलोचन कश्यप ने की है. हालांकि इस घटना के बाद इलाके में काफी सतर्कता बरती जा रही है.

कैंप खुलने से नक्सलियों में बेचैनी

नक्सली कमांडर हिड़मा का है यहां बोलबाला

बीजापुर के तर्रेम थाना क्षेत्र के टेकलगुड़ा के जंगल का यह इलाका नक्सलियों के बटालियन नंबर वन का इलाका है. इसका नेतृत्व दुर्दांत नक्सली माड़वी हिड़मा करता है. सिलगेर इलाके में नक्सलियों की बटालियन के कमांडर हिड़मा का काफी आतंक है. वह सिलगेर के निकट पुवर्ती गांव का रहने वाला है. ताड़मेटला, झीरम समेत कई बड़ी नक्सल घटनाओं में उसका नाम सामने आता रहा है. सिलगेर में कैंप खुलने से नक्सलियों की बटालियन व हिड़मा को तगड़ा झटका लगा है. पुलिस अफसरों की मानें तो इसीलिए ग्रामीणों की आड़ में कैंप का विरोध किया जा रहा है. कैंप खुलने से इलाके में बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ है.

सुरक्षा बलों और सीआरपीएफ के कैंप खुलने से नक्सलियों के कैडर को नुकसान

डीजीपी डीएम अवस्थी ने अभी हाल में बयान दिया था कि साल 2016 से 2020 तक छत्तीसगढ़ के नक्सगढ़ में कुल 80 कैंप बनाए गए. उसके अलावा भी साल 2021 में भी सिलगेर में कैंप बनाए गए. सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा के अंदरुनी इलाकों में भी लगातार कैंप बनाए जा रहे हैं. जिसमें सबसे अधिक सीआरपीएफ के कैंप शामिल हैं. सुरक्षा जानकारों और नक्सल एक्सपर्ट के मुताबिक नए नए कैंप खुलने से नक्सलियों को उस इलाके में बैकफुट पर आना होता है. जहां कैंप खुले हैं. यही वजह है कि नक्सली सुरक्षाबलों के कैंप लगने से विचलित हो जाते हैं. सोमवार को पामेड़ में नक्सलियों ने जो फायरिंग हुई है. वह यहां कैंप खुलने का नक्सलियों के तरफ से रिएक्शन है. सुरक्षा बलों के सूत्रों के मुताबिक पामेड़ के धर्मारम इलाके में कुछ दिन पहले सुरक्षा बलों ने एक नया कैंप खोला है. इसी कैंप का नक्सली विरोध कर रहे हैं. सुरक्षा जानकारों के मुताबिक यह इलाका घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आता है. लेकिन यहां सुरक्षा बलों का कैंप खुलने से नक्सलियों में बौखलाहट है. इस क्षेत्र में सड़क और पुल निर्माण का काम चल रहा है, जिसका नक्सली लगातार विरोध करते आ रहे हैं. पामेड़ से पहले सिलगेर कैंप पर भी नक्सलियों ने हमला किया था. लेकिन सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई के बाद नक्सिलयों को पीछे हटना पड़ा

10 साल में 656 नक्सली मारे गए

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 से लेकर साल 2020 तक 10 वर्षों में छत्तीसगढ़ में कुल 3,722 नक्सली वारदात हुई है. इन हमलों में 489 जवान शहीद हुए हैं. जबकि 656 नक्सलियों को सुरक्षाबलों के जवानों ने मौत के घाट उतारा है.

नए कैंप खुलने से लाल आतंक को लगता है झटका

नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा ने बताया कि नक्सलियों को नए कैंपों से नुकसान होता है. क्योंकि सभी रूपों में उनकी शक्ति में कमी आती है. उन्होंने बताया कि जब-जब छत्तीसगढ़ में नए सुरक्षा कैंप के बनने की बात होती है. तब तब लगातार नक्सली हमले में तेजी आती है. इसकी मुख्य वजह है कि कैंप बनने से उस क्षेत्र में बदलाव आते हैं. विकास का काम होता है. सड़कों का निर्माण कार्य होता है. कनेक्टिविटी बढ़ जाती है. जो नक्सली कभी नहीं चाहते. इस तरह का विकास होने से नक्सलियों को काफी धक्का लगता है. इसके अलावा सुरक्षा बलों का कैंप खुलने से इलाके में कम्युनिटी पुलिसिंग होती है. जिससे नक्सलियों को झटका लगता है उनकी रसूख कमजोर होती है. यही वजह है कि इस तरह का कैंप खुलने का नक्सली विरोध करते हैं और उस क्षेत्र में सुरक्षा बलों के कैंप को निशाना बनाते हैं. इसके अलावा कैंप खुलने से सुरक्षाबलों को नक्सलियों के बहुत सारे इनपुट मिलते हैं. जो नक्सली कभी भी नहीं चाहते. इसलिए इस तरह के कैंप खुलने के नक्सली सदा खिलाफ रहते हैं

मानसून में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन से नक्सली बौखलाए

नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा के मुताबिक रमन्ना की मौत के बाद बसवराज ने नक्सलियों की कमान संभाली. वह हमेशा अटैकिंग रहते हैं. वह एनकाउंटर को ज्यादा महत्व देते हैं. यही वजह है कि इस तरह की लीडरशिप की वजह से मुठभेड़ और एनकाउंटर की घटना बढ़ जाती है. मानसून के समय निश्चित तौर पर नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई कम हो जाती है. लेकिन अब मानसून के समय में ऐसा नहीं है. हमारे सुरक्षाबल मानसून में भी हमला करने में सक्रिय हैं. लगातार कार्रवाई में आगे बढ़ रहे हैं. इसलिए नक्सली और बौखला गए हैं. सुरक्षा बलों की इस तकनीक और ऑपरेशन से नक्सलियों में बौखलाहट है. मानसून सीजन में सुरक्षाबलों को अब तक कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है.

मानसून में सुरक्षाबलों ने बदली रणनीति

साल 2008 के बाद छत्तीसगढ़ में हुए चार बड़े नक्सली हमले

  • 2008 में शहीद हुए थे सीआरपीएफ के 76 जवान : 6 अप्रैल 2010 को यह हमला सुकमा जिले के ताड़मेटला में हुआ था. इस हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे. इसके अलावा 1 हजार से ज्यादा नक्सलियों ने घात लगाकर 150 जवानों को घेर लिया था. जवानों के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा था. इस घटना ने हर किसी को झंकझोर कर रख दिया था.
  • 2013 में मारे गए थे कांग्रेसी नेता : सुकमा जिले की दरभा घाटी में 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला किया था. इस हमले में राज्य के पूर्व मंत्री नंद कुमार पटेल, वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और विद्याचरण शुक्ल सहित कुल 32 लोगों की मौत हुई थी. जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे.
  • बुरकापाल में शहीद हुए थे 32 जवान : 25 अप्रैल 2017 को सुकमा के बुरकापाल बेस कैंप के समीप हुए नक्सली हमले में 25 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे. सुबह-सुबह जवान दो गुटों में पेट्रोलिंग के लिए निकले थे, इसी दौरान 300 से ज्यादा नक्सलियों ने बेस कैंप से 2 किलोमीटर दूर उनपर हमला कर दिया था. हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे.
  • चिंतागुफा इलाके में शहीद हुए थे 17 जवान : 21 मार्च 2020 को नक्सलियों ने सुकमा में बड़े हमले को अंजाम दिया था. उस हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे. ये घटना सुकमा चिंतागुफा इलाके में उस वक्त हुई थी, जब डीआरजी और एसटीएफ के जवान सर्च ऑपरेशन पर थे. सुरक्षा बलों को एलमागुंडा के आसपास के इलाके में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी. इसी दौरान कोरजागुड़ा पहाड़ी के पास छिपे नक्सलियों ने चारों ओर से जवानों पर गोलियों की बौछार कर दी थी. इसके बाद जवानों ने भी जवाबी हमला किया था, लेकिन नक्सली मौका पाकर जंगल में भाग निकले थे.

जानिये, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने जवानों पर कब-कब किये हमले ?

  • बीजापुर, 27 सितंबर 2021 : नक्सलियों ने देर रात 196 सीआरपीएफ बटालियन के धर्मारम कैंप पर की ताबड़तोड़ फायरिंग.
  • बीजापुर में नक्सलियों ने सोमवार देर रात 196 सीआरपीएफ बटालियन के धर्मारम कैंप पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी.
  • बीजापुर, 03 अप्रैल 2021 : बीजापुर में शनिवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में 24 जवान शहीद हो गए.
  • नारायणपुर, 23 मार्च 2021 : नक्सलियों ने नारायणपुर में आईईडी ब्लास्ट के जरिए किया हमला, ब्लास्ट में 5 जवान शहीद हुए थे.
  • कोराजडोंगरी, 22 मार्च 2020 : सुकमा में कोराजडोंगरी के चिंतागुफा के पास नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे. शहीद होने वाले जवानों में डीआरजी के 12 जवान और एसटीएफ 5 जवान थे.
  • श्यामगिरी, 09 अप्रैल 2019 : दंतेवाड़ा के लोकसभा चुनाव में नक्सलियों के इस हमले में भीमा मंडावी के अलावा उनके चार सुरक्षाकर्मी भी मारे गये थे.
  • दुर्गपाल, 24 अप्रैल 2017 : सुकमा जिले में सड़क निर्माण करने वालों अफसरों पर नक्सलियों ने अटैक कर दिया था. हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे और 7 घायल हुए थे. ये 2017 का सबसे बड़ा हमला था.
  • सुकमा, 11 मार्च 2014 : सुकमा जिले में झीरम घाटी के घने जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था. इसमें सीआरपीएफ के 11 जवान, 4 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे जबकि 01 नागरिक की भी मौत हो गई थी.
  • दंतेवाड़ा, 28 फरवरी 2014 : नक्सल हमले में एक थानेदार समेत 6 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
  • दरभा, 25 मई 2013 : बस्तर के दरभा घाटी में हुए इस नक्सली हमले में आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेल और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 लोग मारे गए थे.
  • दंतेवाड़ा, 04 जून 2011 : दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर एंटी लैंड माइन वाहन विकल को उड़ा दिया था. इस हमले में 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए.
  • धोड़ाई, 29 जून 2010 : नारायणपुर जिले के धोड़ाई में सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला किया था. हमले में पुलिस के 27 जवान शहीद हो गए थे.
  • दंतेवाड़ा, 17 मई 2010 : एक यात्री बस में सवार होकर दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षा बल के जवानों पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर हमला किया था. जिसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए थे.
  • बीजापुर, 8 मई 2010 : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पुलिस की एक गाड़ी को ही ब्लास्ट कर उड़ा दिया था, जिसमें भारतीय अर्द्धसैनिक बल के 8 जवान शहीद हुए थे.
  • ताड़मेटला, 6 अप्रैल 2010 : बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के जवान सर्चिंग के लिए निकले थे, जहां संदिग्ध नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर 76 जवानों को मार डाला था.
  • मदनवाड़ा, 12 जुलाई 2009 : राजनांदगांव के मानपुर इलाके में नक्सलियों के हमले की सूचना पाकर पहुंचे पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे समेत 29 पुलिसकर्मियों पर नक्सलियों ने हमला किया था और उनकी हत्या कर दी थी.
  • उरपलमेटा, 9 जुलाई 2007 : एर्राबोर के उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल नक्सलियों की तलाश कर बेस कैंप लौट रहा था. इस दल पर नक्सलियों ने हमला बोला, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए.
  • रानीबोदली, 15 मार्च 2007 : बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस के एक कैंप पर आधी रात को माओवादियों ने हमला कर दिया था. भारी गोलीबारी भी की थी. नक्सलियों ने कैंप में आग लगा दी थी. इस हमले में पुलिस के 55 जवान मारे गए.
  • दंतेवाड़ा, 16 जुलाई 2006 : नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में एक राहत शिविर पर हमला किया था, जहां कई ग्रामीणों का अपहरण कर लिया गया था. इस हमले में 29 लोगों की जान गई थी.
  • एर्राबोर, 28 फरवरी 2006 : नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के एर्राबोर गांव में लैंडमाइन ब्लास्ट किया था. इस घटना में 25 जवानों की जान गई थी.
  • किरंदुल, 19 फरवरी 2006 : किरंदुल के पास हिरोली मैग्जीन पर नक्सलियों ने हमला किया था. नक्सलियों ने 19 टन बारूद लूट लिये थे. जबकि सीआईएसएफ के 8 जवान शहीद हो गए थे.
  • बीजापुर, 03 सितंबर 2005 : बीजापुर के पदेड़ा-चेरपाल के पास नक्सलियों के हमले में 24 जवान शहीद हो गए थे.
  • नारायणपुर, 20 फरवरी 2000 : नारायणपुर के बाकुलवाही में एएसपी समेत 23 जवान शहीद हो गए थे. नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट कर पुलिस की 407 मिनी ट्रक उड़ा दी थी.

रायपुर : छत्तीसगढ़ के बीजापुर (Bijapur of Chhattisgarh) में नक्सलियों ने सोमवार देर रात 196 सीआरपीएफ बटालियन (196 CRPF Battalion) के धर्मारम कैंप (Dharmaram Camp) पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग की आवाज सुनते ही जवानों ने भी मोर्चा संभाल लिया. इसके बाद सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ शुरू (Encounter Between Security Forces and Naxalites) हो गई. पामेड़ के नजदीक यह मुठभेड़ हुई. हालांकि करीब दो घंटे से ज्यादा समय तक चली इस गोलीबारी में किसी भी जवान के हताहत होने की सूचना नहीं है. छत्तीसगढ़-तेलंगाना राज्य की सीमा (Chhattisgarh Telangana State Border) के पास बीजापुर से करीब 60 से 70 किलोमीटर की दूरी पर पामेड़ के इलाके की यह घटना है. इस नक्सली फायरिंग की पुष्टि पुलिस अधीक्षक कमलोचन कश्यप ने की है. हालांकि इस घटना के बाद इलाके में काफी सतर्कता बरती जा रही है.

कैंप खुलने से नक्सलियों में बेचैनी

नक्सली कमांडर हिड़मा का है यहां बोलबाला

बीजापुर के तर्रेम थाना क्षेत्र के टेकलगुड़ा के जंगल का यह इलाका नक्सलियों के बटालियन नंबर वन का इलाका है. इसका नेतृत्व दुर्दांत नक्सली माड़वी हिड़मा करता है. सिलगेर इलाके में नक्सलियों की बटालियन के कमांडर हिड़मा का काफी आतंक है. वह सिलगेर के निकट पुवर्ती गांव का रहने वाला है. ताड़मेटला, झीरम समेत कई बड़ी नक्सल घटनाओं में उसका नाम सामने आता रहा है. सिलगेर में कैंप खुलने से नक्सलियों की बटालियन व हिड़मा को तगड़ा झटका लगा है. पुलिस अफसरों की मानें तो इसीलिए ग्रामीणों की आड़ में कैंप का विरोध किया जा रहा है. कैंप खुलने से इलाके में बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ है.

सुरक्षा बलों और सीआरपीएफ के कैंप खुलने से नक्सलियों के कैडर को नुकसान

डीजीपी डीएम अवस्थी ने अभी हाल में बयान दिया था कि साल 2016 से 2020 तक छत्तीसगढ़ के नक्सगढ़ में कुल 80 कैंप बनाए गए. उसके अलावा भी साल 2021 में भी सिलगेर में कैंप बनाए गए. सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा के अंदरुनी इलाकों में भी लगातार कैंप बनाए जा रहे हैं. जिसमें सबसे अधिक सीआरपीएफ के कैंप शामिल हैं. सुरक्षा जानकारों और नक्सल एक्सपर्ट के मुताबिक नए नए कैंप खुलने से नक्सलियों को उस इलाके में बैकफुट पर आना होता है. जहां कैंप खुले हैं. यही वजह है कि नक्सली सुरक्षाबलों के कैंप लगने से विचलित हो जाते हैं. सोमवार को पामेड़ में नक्सलियों ने जो फायरिंग हुई है. वह यहां कैंप खुलने का नक्सलियों के तरफ से रिएक्शन है. सुरक्षा बलों के सूत्रों के मुताबिक पामेड़ के धर्मारम इलाके में कुछ दिन पहले सुरक्षा बलों ने एक नया कैंप खोला है. इसी कैंप का नक्सली विरोध कर रहे हैं. सुरक्षा जानकारों के मुताबिक यह इलाका घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आता है. लेकिन यहां सुरक्षा बलों का कैंप खुलने से नक्सलियों में बौखलाहट है. इस क्षेत्र में सड़क और पुल निर्माण का काम चल रहा है, जिसका नक्सली लगातार विरोध करते आ रहे हैं. पामेड़ से पहले सिलगेर कैंप पर भी नक्सलियों ने हमला किया था. लेकिन सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई के बाद नक्सिलयों को पीछे हटना पड़ा

10 साल में 656 नक्सली मारे गए

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 से लेकर साल 2020 तक 10 वर्षों में छत्तीसगढ़ में कुल 3,722 नक्सली वारदात हुई है. इन हमलों में 489 जवान शहीद हुए हैं. जबकि 656 नक्सलियों को सुरक्षाबलों के जवानों ने मौत के घाट उतारा है.

नए कैंप खुलने से लाल आतंक को लगता है झटका

नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा ने बताया कि नक्सलियों को नए कैंपों से नुकसान होता है. क्योंकि सभी रूपों में उनकी शक्ति में कमी आती है. उन्होंने बताया कि जब-जब छत्तीसगढ़ में नए सुरक्षा कैंप के बनने की बात होती है. तब तब लगातार नक्सली हमले में तेजी आती है. इसकी मुख्य वजह है कि कैंप बनने से उस क्षेत्र में बदलाव आते हैं. विकास का काम होता है. सड़कों का निर्माण कार्य होता है. कनेक्टिविटी बढ़ जाती है. जो नक्सली कभी नहीं चाहते. इस तरह का विकास होने से नक्सलियों को काफी धक्का लगता है. इसके अलावा सुरक्षा बलों का कैंप खुलने से इलाके में कम्युनिटी पुलिसिंग होती है. जिससे नक्सलियों को झटका लगता है उनकी रसूख कमजोर होती है. यही वजह है कि इस तरह का कैंप खुलने का नक्सली विरोध करते हैं और उस क्षेत्र में सुरक्षा बलों के कैंप को निशाना बनाते हैं. इसके अलावा कैंप खुलने से सुरक्षाबलों को नक्सलियों के बहुत सारे इनपुट मिलते हैं. जो नक्सली कभी भी नहीं चाहते. इसलिए इस तरह के कैंप खुलने के नक्सली सदा खिलाफ रहते हैं

मानसून में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन से नक्सली बौखलाए

नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा के मुताबिक रमन्ना की मौत के बाद बसवराज ने नक्सलियों की कमान संभाली. वह हमेशा अटैकिंग रहते हैं. वह एनकाउंटर को ज्यादा महत्व देते हैं. यही वजह है कि इस तरह की लीडरशिप की वजह से मुठभेड़ और एनकाउंटर की घटना बढ़ जाती है. मानसून के समय निश्चित तौर पर नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई कम हो जाती है. लेकिन अब मानसून के समय में ऐसा नहीं है. हमारे सुरक्षाबल मानसून में भी हमला करने में सक्रिय हैं. लगातार कार्रवाई में आगे बढ़ रहे हैं. इसलिए नक्सली और बौखला गए हैं. सुरक्षा बलों की इस तकनीक और ऑपरेशन से नक्सलियों में बौखलाहट है. मानसून सीजन में सुरक्षाबलों को अब तक कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है.

मानसून में सुरक्षाबलों ने बदली रणनीति

साल 2008 के बाद छत्तीसगढ़ में हुए चार बड़े नक्सली हमले

  • 2008 में शहीद हुए थे सीआरपीएफ के 76 जवान : 6 अप्रैल 2010 को यह हमला सुकमा जिले के ताड़मेटला में हुआ था. इस हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे. इसके अलावा 1 हजार से ज्यादा नक्सलियों ने घात लगाकर 150 जवानों को घेर लिया था. जवानों के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा था. इस घटना ने हर किसी को झंकझोर कर रख दिया था.
  • 2013 में मारे गए थे कांग्रेसी नेता : सुकमा जिले की दरभा घाटी में 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला किया था. इस हमले में राज्य के पूर्व मंत्री नंद कुमार पटेल, वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और विद्याचरण शुक्ल सहित कुल 32 लोगों की मौत हुई थी. जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे.
  • बुरकापाल में शहीद हुए थे 32 जवान : 25 अप्रैल 2017 को सुकमा के बुरकापाल बेस कैंप के समीप हुए नक्सली हमले में 25 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे. सुबह-सुबह जवान दो गुटों में पेट्रोलिंग के लिए निकले थे, इसी दौरान 300 से ज्यादा नक्सलियों ने बेस कैंप से 2 किलोमीटर दूर उनपर हमला कर दिया था. हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे.
  • चिंतागुफा इलाके में शहीद हुए थे 17 जवान : 21 मार्च 2020 को नक्सलियों ने सुकमा में बड़े हमले को अंजाम दिया था. उस हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे. ये घटना सुकमा चिंतागुफा इलाके में उस वक्त हुई थी, जब डीआरजी और एसटीएफ के जवान सर्च ऑपरेशन पर थे. सुरक्षा बलों को एलमागुंडा के आसपास के इलाके में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी. इसी दौरान कोरजागुड़ा पहाड़ी के पास छिपे नक्सलियों ने चारों ओर से जवानों पर गोलियों की बौछार कर दी थी. इसके बाद जवानों ने भी जवाबी हमला किया था, लेकिन नक्सली मौका पाकर जंगल में भाग निकले थे.

जानिये, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने जवानों पर कब-कब किये हमले ?

  • बीजापुर, 27 सितंबर 2021 : नक्सलियों ने देर रात 196 सीआरपीएफ बटालियन के धर्मारम कैंप पर की ताबड़तोड़ फायरिंग.
  • बीजापुर में नक्सलियों ने सोमवार देर रात 196 सीआरपीएफ बटालियन के धर्मारम कैंप पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी.
  • बीजापुर, 03 अप्रैल 2021 : बीजापुर में शनिवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में 24 जवान शहीद हो गए.
  • नारायणपुर, 23 मार्च 2021 : नक्सलियों ने नारायणपुर में आईईडी ब्लास्ट के जरिए किया हमला, ब्लास्ट में 5 जवान शहीद हुए थे.
  • कोराजडोंगरी, 22 मार्च 2020 : सुकमा में कोराजडोंगरी के चिंतागुफा के पास नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे. शहीद होने वाले जवानों में डीआरजी के 12 जवान और एसटीएफ 5 जवान थे.
  • श्यामगिरी, 09 अप्रैल 2019 : दंतेवाड़ा के लोकसभा चुनाव में नक्सलियों के इस हमले में भीमा मंडावी के अलावा उनके चार सुरक्षाकर्मी भी मारे गये थे.
  • दुर्गपाल, 24 अप्रैल 2017 : सुकमा जिले में सड़क निर्माण करने वालों अफसरों पर नक्सलियों ने अटैक कर दिया था. हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे और 7 घायल हुए थे. ये 2017 का सबसे बड़ा हमला था.
  • सुकमा, 11 मार्च 2014 : सुकमा जिले में झीरम घाटी के घने जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था. इसमें सीआरपीएफ के 11 जवान, 4 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे जबकि 01 नागरिक की भी मौत हो गई थी.
  • दंतेवाड़ा, 28 फरवरी 2014 : नक्सल हमले में एक थानेदार समेत 6 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
  • दरभा, 25 मई 2013 : बस्तर के दरभा घाटी में हुए इस नक्सली हमले में आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेल और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 लोग मारे गए थे.
  • दंतेवाड़ा, 04 जून 2011 : दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर एंटी लैंड माइन वाहन विकल को उड़ा दिया था. इस हमले में 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए.
  • धोड़ाई, 29 जून 2010 : नारायणपुर जिले के धोड़ाई में सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला किया था. हमले में पुलिस के 27 जवान शहीद हो गए थे.
  • दंतेवाड़ा, 17 मई 2010 : एक यात्री बस में सवार होकर दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षा बल के जवानों पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर हमला किया था. जिसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए थे.
  • बीजापुर, 8 मई 2010 : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पुलिस की एक गाड़ी को ही ब्लास्ट कर उड़ा दिया था, जिसमें भारतीय अर्द्धसैनिक बल के 8 जवान शहीद हुए थे.
  • ताड़मेटला, 6 अप्रैल 2010 : बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के जवान सर्चिंग के लिए निकले थे, जहां संदिग्ध नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर 76 जवानों को मार डाला था.
  • मदनवाड़ा, 12 जुलाई 2009 : राजनांदगांव के मानपुर इलाके में नक्सलियों के हमले की सूचना पाकर पहुंचे पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे समेत 29 पुलिसकर्मियों पर नक्सलियों ने हमला किया था और उनकी हत्या कर दी थी.
  • उरपलमेटा, 9 जुलाई 2007 : एर्राबोर के उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल नक्सलियों की तलाश कर बेस कैंप लौट रहा था. इस दल पर नक्सलियों ने हमला बोला, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए.
  • रानीबोदली, 15 मार्च 2007 : बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस के एक कैंप पर आधी रात को माओवादियों ने हमला कर दिया था. भारी गोलीबारी भी की थी. नक्सलियों ने कैंप में आग लगा दी थी. इस हमले में पुलिस के 55 जवान मारे गए.
  • दंतेवाड़ा, 16 जुलाई 2006 : नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में एक राहत शिविर पर हमला किया था, जहां कई ग्रामीणों का अपहरण कर लिया गया था. इस हमले में 29 लोगों की जान गई थी.
  • एर्राबोर, 28 फरवरी 2006 : नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के एर्राबोर गांव में लैंडमाइन ब्लास्ट किया था. इस घटना में 25 जवानों की जान गई थी.
  • किरंदुल, 19 फरवरी 2006 : किरंदुल के पास हिरोली मैग्जीन पर नक्सलियों ने हमला किया था. नक्सलियों ने 19 टन बारूद लूट लिये थे. जबकि सीआईएसएफ के 8 जवान शहीद हो गए थे.
  • बीजापुर, 03 सितंबर 2005 : बीजापुर के पदेड़ा-चेरपाल के पास नक्सलियों के हमले में 24 जवान शहीद हो गए थे.
  • नारायणपुर, 20 फरवरी 2000 : नारायणपुर के बाकुलवाही में एएसपी समेत 23 जवान शहीद हो गए थे. नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट कर पुलिस की 407 मिनी ट्रक उड़ा दी थी.
Last Updated : Sep 28, 2021, 10:24 PM IST
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