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आखिर आत्महत्या पर क्यों उतारू हैं सुरक्षा बल के जवान ?

सोमवार को दंतेवाड़ा के गीदम बस स्टैंड पर बस में बैठे CRPF के एक जवान ने सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली, वहीं 4 दिसबंर को 1 जवान ने अपने 5 साथी जवान को गोली मारने के बाद खुद भी गोली मार ली थी. सोमवार को ही छत्तीसगढ़ से झारखंड गए एक जवान ने अपने कमांडर को गोली मारने के बाद खुद भी गोली मार ली थी. आखिर क्या वजह है कि जवान हत्या और आत्महत्या पर उतारू हो रहे हैं?

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Published : Dec 10, 2019, 10:56 AM IST

Updated : Dec 11, 2019, 11:44 AM IST

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रायपुर: बीते कुछ दिनों से इस तरह की खबरें आ रही है, जिसमें सुरक्षा बल के जवान दुश्मनों को मारने के बजाय अपने साथियों या खुद की जान लेने लगे हैं. इसी सोमवार को दंतेवाड़ा के गीदम बस स्टैंड पर बस में बैठे CRPF के एक जवान ने खुद को गोली मार ली. इससे पहले 4 दिसंबर को नायारणपुर के कडेनार कैंप में ITBP के एक जवान ने अपने साथियों पर फायरिंग कर दी. जिसमें 5 जवानों की मौत हो गई है. साथियों को मारने के बाद आरोपी जवान ने खुद को भी गोली मार ली. इसी सोमवार को ही छत्तीसगढ़ से चुनाव ड्यूटी पर झारखंड गए CAF के एक जवान ने अपने कमांडर को गोली मारकर खुदकुशी कर ली. देश के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार जवान आखिर क्यों ऐसे कदम उठा रहे हैं, उनकी मनोदशा को समझने के लिए ETV भारत ने सुरक्षा मामलों के जानकार और मनोवैज्ञानिक से इसकी चर्चा की.

जिंदगी हार रहे जवान!

मामले में जब ETV भारत ने विभागीय अधिकारियों से जानना चाहा तो, वे इसपर फिलहाल कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जवानों के लिए ग्राउंड जीरो के हालात काफी कठिन होते हैं. महीनों तक जवानों को घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है. इसके कारण कई बार जवान अवसाद में चले जाते हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि लंबे समय से छुट्टी पर न जाना और होमसिकनेस की वजह से कई बार जवान ऐसे कदम उठा लेते हैं.

काउंसलिंग की जरूरत
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर जेसी अजवानी ने बताया कि नक्सल एरिया में तैनात जवानों को सही ट्रेनिंग न मिलने के कारण जवान ऐसे कदम उठाते हैं. जो जवान बॉर्डर के लिए ट्रेंड किए जाते हैं उन्हें नक्सल क्षेत्र में भेज दिया जाता है. जहां उन्हें यह समझ में नहीं आता कि कौन उनके दुश्मन हैं और कौन उनके साथ. इससे जवानों के मस्तिष्क में असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है. साथ ही सही काउंसलिंग न होने के कारण उन्हें काफी समस्या का सामना करना पड़ता है.

परिवार से न मिलना बड़ा कारण
नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा ने बताया कि ग्राउंड जीरो पर तैनात जवानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. साथ ही घर से दूर होने के कारण और अपने परिवार से न मिलने के कारण वे काफी हताश रहते हैं. जिसके कारण वे कभी-कभी ऐसे कदम उठा लेते हैं जो उन्हें नहीं उठाना चाहिए.

इससे पहले भी कई बार जवान आत्महत्या जैसे कदम उठा चुके हैं. खासतौर पर दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों में इस तरह की प्रवृत्ति ज्यादा पाई गई है. ऐसे में भारतीय सेना की तरह अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी काउंसलिंग की जरूरत है.

रायपुर: बीते कुछ दिनों से इस तरह की खबरें आ रही है, जिसमें सुरक्षा बल के जवान दुश्मनों को मारने के बजाय अपने साथियों या खुद की जान लेने लगे हैं. इसी सोमवार को दंतेवाड़ा के गीदम बस स्टैंड पर बस में बैठे CRPF के एक जवान ने खुद को गोली मार ली. इससे पहले 4 दिसंबर को नायारणपुर के कडेनार कैंप में ITBP के एक जवान ने अपने साथियों पर फायरिंग कर दी. जिसमें 5 जवानों की मौत हो गई है. साथियों को मारने के बाद आरोपी जवान ने खुद को भी गोली मार ली. इसी सोमवार को ही छत्तीसगढ़ से चुनाव ड्यूटी पर झारखंड गए CAF के एक जवान ने अपने कमांडर को गोली मारकर खुदकुशी कर ली. देश के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार जवान आखिर क्यों ऐसे कदम उठा रहे हैं, उनकी मनोदशा को समझने के लिए ETV भारत ने सुरक्षा मामलों के जानकार और मनोवैज्ञानिक से इसकी चर्चा की.

जिंदगी हार रहे जवान!

मामले में जब ETV भारत ने विभागीय अधिकारियों से जानना चाहा तो, वे इसपर फिलहाल कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जवानों के लिए ग्राउंड जीरो के हालात काफी कठिन होते हैं. महीनों तक जवानों को घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है. इसके कारण कई बार जवान अवसाद में चले जाते हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि लंबे समय से छुट्टी पर न जाना और होमसिकनेस की वजह से कई बार जवान ऐसे कदम उठा लेते हैं.

काउंसलिंग की जरूरत
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर जेसी अजवानी ने बताया कि नक्सल एरिया में तैनात जवानों को सही ट्रेनिंग न मिलने के कारण जवान ऐसे कदम उठाते हैं. जो जवान बॉर्डर के लिए ट्रेंड किए जाते हैं उन्हें नक्सल क्षेत्र में भेज दिया जाता है. जहां उन्हें यह समझ में नहीं आता कि कौन उनके दुश्मन हैं और कौन उनके साथ. इससे जवानों के मस्तिष्क में असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है. साथ ही सही काउंसलिंग न होने के कारण उन्हें काफी समस्या का सामना करना पड़ता है.

परिवार से न मिलना बड़ा कारण
नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा ने बताया कि ग्राउंड जीरो पर तैनात जवानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. साथ ही घर से दूर होने के कारण और अपने परिवार से न मिलने के कारण वे काफी हताश रहते हैं. जिसके कारण वे कभी-कभी ऐसे कदम उठा लेते हैं जो उन्हें नहीं उठाना चाहिए.

इससे पहले भी कई बार जवान आत्महत्या जैसे कदम उठा चुके हैं. खासतौर पर दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों में इस तरह की प्रवृत्ति ज्यादा पाई गई है. ऐसे में भारतीय सेना की तरह अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी काउंसलिंग की जरूरत है.

Intro:सोमवार का दिन भी हमारी सुरक्षा में तैनात जवानों द्वारा आत्मघाती कदम उठाने की खबर लेकर आया। दंतेवाड़ा में एक जवान ने खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली झारखंड में एक जवान ने अपने कमांडर को गोली मारकर खुदकुशी कर ली।

इससे पहले नारायणपुर में आइटीबीपी कैंप पर हुए खूनी खेल से भी हम वाकिफ है आखिर हमारी सुरक्षा में तैनात जवान आत्मघाती कदम क्यों उठा रहे हैं क्या इनके पीछे कोई सामान्य वहज है। इस पर हमने विभागीय अधिकारियों से जानना चाहा तो वे चुप्पी साध रहे हैं ऐसे में हमें जवानों के हालातों और उनकी मनोदशा को समझने के लिए सुरक्षा मामलों के जानकार और मनोवैज्ञानिक से चर्चा करनी पड़ी उनका भी मन्ना है कि ग्राउंड जीरो के कठिन हालात भी कई बार घर से दूर रहने जवान के अवसाद का कारण बन जाते हैं।




Body:वहीं नक्सल एक्सपर्ट वनिता शर्मा ने बताया की ग्राउंड जीरो पर तैनात जवानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है साथी घर से दूर होने के कारण और अपने परिवार से ना मिलने के कारण वे काफी फ्रस्ट्रेटेड रहते हैं जिसके कारण वह कभी-कभी ऐसे कदम उठा लेते हैं जो उन्हें नहीं उठाना चाहिए।

वही मनोवैज्ञानिक भी उसके पीछे लंबे समय से छुट्टी पर ना जाना और होमसिकनेस जैसी बजा बताते हैं साथ ही सही काउंसलिंग वसई ट्रेनिंग ना मिलने की भी वजह इसके पीछे बताई जाती है।




Conclusion:मनोवैज्ञानिक डॉक्टर जे सी अजवानी द्वारा बताया गया बताया गया कि नक्सल एरिया में तैनात जवानों की सही ट्रेनिंग ना मिलने के कारण भी जवान ऐसे कदम उठाते हैं। जैसे कि जो जवान बॉर्डर के लिए ट्रेन किए जाते हैं उन्हें नक्सल क्षेत्र में भेज दिया जाता है जहां उन्हें यह समझ में नहीं आता कि कौन उनके दुश्मन है और कौन उनके साथ जिसके जवानों के मस्तिष्क में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं साथ ही प्रॉपर काउंसलिंग ना होने के कारण उन्हें काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।

इससे पहले भी कई बार जवान आत्महत्या जैसे कदम उठा चुके हैं खासतौर पर दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों में इस तरह की प्रवृत्ति ज्यादा पाई गई है ऐसे में भारतीय सेना की तरह अर्धसैनिक बलों को भी जवानों की काउंसलिंग की जरूरत है।

बाइट :- नक्सल एक्सपर्ट वनिता शर्मा

बाइट :-मनोवैज्ञानिक डॉक्टर जे सी अजवानी
Last Updated : Dec 11, 2019, 11:44 AM IST
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