रायपुर : रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में संचनालय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग रायपुर की ओर से तीन (Seminar on Garh period administrative system) दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हो रहा है. संगोष्ठी 25 फरवरी से 27 फरवरी तक चलेगी. इसमें छत्तीसगढ़ समेत प्रदेश के दूसरे जिलों के पुरातत्व से जुड़े लोग और इतिहासकार पहुंचे हैं. पुराने समय में गढ़ की प्रशासनिक व्यवस्था क्या थी, कैसी थी? लोग गढ़ों में कैसे रहते थे, उनकी सभ्यता और संस्कृति कैसी थी. कौन राजा होता था और गढ़ का निर्माण क्यों कराए गए? अलग-अलग गढ़ की संरचना क्यों हुई, इस पर चर्चा की जा रही है.
छत्तीसगढ़ एक ऐसा गढ़, जहां हैं अनगिनत गढ़...
जिला पुरातत्व संघ के सदस्य सूरजपुर निवासी अजय कुमार चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के बारे में बताया कि जिन जिलों में या शहरों में गढ़ या रियासत रहे हैं, उन पर शोध कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ एक ऐसा गढ़ है, जहां अनगिनत गढ़ हैं. जिसे खोज करने की उन्होंने आवश्यकता बताई. उन्होंने सरगुजा के बारे में बताया कि सरगुजा क्षेत्र में रक्सल वंशीय राजा, गोंडवाना राजा और बालेंदु राजाओं का भी राज रहा है. इन राजाओं ने वहां की पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में गढ़ बनाकर शासन किये थे और अपना आधिपत्य जमाया था. आज भी सरगुजा के पहाड़ों पर गढ़ के अवशेष मौजूद हैं.
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84 गांवों को मिलाकर बनता है एक गढ़...
संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य ने बताया कि 84 गांव को मिलाकर एक गढ़ बनता है. उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था क्या थी, कैसी थी, गढों में लोग कैसे रहते थे? उनकी सभ्यता कैसी थी. उनकी संस्कृति कैसी थी. कौन राजा होता था और गढ़ का निर्माण क्यों कराया गया, इन विषयों पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में पहली और दूसरी शताब्दी के साथ ही उसके पहले के गढ़ के अवशेष भी देखने को मिलते हैं. छत्तीसगढ़ का पुराना इतिहास देखा जाए तो यह दक्षिण कौशल का क्षेत्र था. इसमें ओडिशा, महाराष्ट्र के साथ ही कुछ भाग तेलंगाना का भी समाहित था. छत्तीसगढ़ को दंडकारण्य महाकालान्तर के नाम से भी जाना जाता रहा है.