रायपुर: आज दुनियाभर के सामने जल संकट एक बड़ी चुनौती है. विकास के अंधे दौड़ में हम अपने पर्यावरण के साथ जिस तरह खिलवाड़ कर रहे हैं. उसका ही नतीजा है कि आज दुनियाभर में पेयजल संकट गहराता जा रहा है. जानकार बताते हैं कि इसके पीछे परंपरागत साधनों को खत्म करने के कारण भी ये समस्या बढ़ी है. इसी का जीता जागता प्रमाण है रायपुर शहर, जो कभी अपने में सैकड़ों तालाबों और सरोवरों को समेटे हुए था, लेकिन जैसे-जैसे इस शहर ने अपना दायरा बढ़ाया है. वैसे-वैसे यहां तालाबों की संख्या कम होती चली गई. इन सबको देखते हुए रायपुर नगर निगम ने कोरोना संकट काल में लगे लॉकडाउन का फायदा उठाया है. निगम ने लॉकडाउन के बीच कई तालाबों का कायाकल्प किया है. इसमें शहर की पहचान के रूप में विख्यात बूढ़ा तालाब भी शामिल है.
लॉकडाउन के बीच रायपुर नगर निगम ने तालाबों की सफाई के लिए बड़ा अभियान छेड़ा था. इनमें सबसे प्रमुख बूढ़ा तालाब है. शहर के इस ऐतिहासिक तालाब की स्थिति काफी खराब हो गई थी. बूढ़ा तालाब को जलकुंभी ने पूरी तरह से घेर लिया था. पानी भी इतना गंदा हो चुका था कि उसके पास जाने से ही बदबू आती थी, लेकिन इस अभियान के तहत बूढ़ा तालाब से 2 हजार ट्रक से ज्यादा गंदगी निकाली गई. इसी तरह शहर के कुछ और तालाबों में हुई सफाई के दौरान तकरीबन 10 हजार ट्रक गंदगी निकाली गई. आज बूढ़ा तालाब से समेत कुछ और तालाब की सफाई देखते बनती है.
14 तालाबों की सफाई कराई गई
जानकार मानते हैं कि तालाब न केवल सतह पर जल इक्टठा करने का अच्छा माध्यम है बल्कि इसके द्वारा एक इको सिस्टम का निर्माण होता है. जिससे पर्यावरण पर भी अच्छा असर पड़ता है. साथ ही ये वॉटर बॉडी ग्राउंड वॉटर लेबल को मेंटेन करने में भी सहयोगी होते हैं. नगर निगम ने लॉकडाउन के दौरान शहर के 14 तालाबों की सफाई करवाई. शुरुआती दिनों में प्रमुख रूप से बूढ़ा तालाब, अपना तालाब ,राजा तालाब शीतला तालाब,जैसे तालाबो की सफाई करवाई है. जिससे तालाबों के सौंदर्यीकरण के साथ भूजल स्तर भी बढ़ेगा.
स्थानीय लोगों में खुशी की लहर
तालाबों के कायाकल्प से स्थानीय लोग भी काफी खुश हैं. कुछ जानकारों का मानना है कि अगर इन तालाबों को इसी तरह साफ सफाई मेंटेन कर रखा जाए तो शहर में कभी भी जल संकट की स्थिति नहीं बनेगी. इसके लिए प्रशासन के साथ ही स्थानीय लोगों की सजगता बहुत जरूरी है.
छत्तीसगढ़ की परंपरा में तालाब की अहमियत
छत्तीसगढ़ में खासतौर पर मैदानी इलाकों में तालाब बनाने की बेहद प्राचीन परंपरा है. यहां की भूगर्भ और मिट्टी की खूबी को पहचानकर ही हमारे पूर्वजों ने इस तरह वॉटर बैंक बनाने की परंपरा शुरू की होगी, लेकिन आज हम इसे भूलाते चले जा रहे हैं. जिसका खतरना परिणाम भी हमे देखने को मिलने लगा है.