रायपुर : छत्तीसगढ़ में पंचायत विभाग के मंत्रीपद से टीएस सिंहदेव ने इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे के बाद लिखे गए पत्र में कई बातों की ओर इशारा किया गया था. सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में कई विषयों का जिक्र किया था. जिनमें मनरेगा कर्मचारियों की हड़ताल और विभाग के अधिकारियों की बर्खास्तगी की वापसी को लेकर नाराजगी जताई गई थी. सिंहदेव ने पत्र में लिखा है कि बर्खास्त एपीओ को बहाल करने से पहले उनसे चर्चा तक नहीं की गई. सिंहदेव ने मनरेगाकर्मियों की हड़ताल को साजिश बताया (connection between MNREGA workers strike and TS Singhdeo resignation)था. लेकिन अब मनरेगाकर्मी संघ ने सिंहदेव के आरोपों का खंडन किया (MNREGA union denied the allegations of TS Singhdeo) है. संघ के मुताबिक उनकी मांगें कई साल पुरानी हैं. इसलिए एक जिम्मेदार मंत्री के ऐसे बयान से मनरेगाकर्मियों को धक्का लगा है.
मनरेगा कर्मचारियों की 2 सूत्रीय प्रमुख मांगों पर एक नजर
- प्रदेश सरकार घोषणा पत्र को आत्मसात करते हुए समस्त मनरेगा कर्मियों का नियमितीकरण (MNREGA workers movement demanding regularization) करें.
- जब तक नियमितीकरण नहीं हो जाता, तब तक रोजगार सहायकों का वेतनमान निर्धारण करते हुए समस्त मनरेगा कर्मियों को पंचायत अधिनियम 1966 के अंतर्गत पंचायत कर्मी का दर्जा दिया जाए
मनरेगाकर्मियों के बयान से अब मामले में आया नया मोड़ : एक तरफ जहां टीएस सिंहदेव के इस्तीफे को मनरेगा कर्मियों की बर्खास्तगी और फिर बिना पूछे बहाली से जोड़कर देखा जा रहा था. वहीं दूसरी तरफ अब खुद छत्तीसगढ़ मनरेगा संघ ने बयान जारी करते हुए इसे षड़यंत्र मानने से इनकार किया है. मनरेगाकर्मी संघ की माने तो वो कई सालों से अपनी मांगों को लेकर सड़क पर लड़ाई लड़ रहे हैं. मनरेगाकर्मियों ने कोरोना काल में जान जोखिम में डालकर गरीबों को रोजगार देने का काम किया है. बावजूद इसके उनकी नहीं सुनी गई. उल्टा हक की लड़ाई लड़ रहे लोगों को सरकार ने बिना कारण के ही बर्खास्त कर दिया था.
क्यों हुई थी हड़ताल : बीजापुर के मनरेगा कर्मचारी संघ प्रवक्ता प्रशांत यादव ने बताया कि "15 वर्षों से अल्प वेतन में बतौर रोजगार सहायक काम कर रहे हैं. नौकरी से निकाले जाने का भय बना हुआ था, जिसके कारण अनिश्चितकालीन हड़ताल करने को मजबूर हुए थे. कांग्रेस सरकार ने अपने घोषणा पत्र में मनरेगा कर्मियों को नियमितीकरण का वादा किया था लेकिन सरकार ने मनरेगा कर्मियों को नियमित नहीं किया. लिहाजा अनिश्चितकालीन हड़ताल करने को बाध्य होना पड़ा. प्रदेश भर के लगभग 12710 मनरेगा कर्मचारियों को मार्च और जून महीने का वेतन अब तक नहीं मिला है. जिसके कारण आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं और परिवार चलाना मुश्किल हो गया है."
कब से कब तक हुई थी हड़ताल : 4 अप्रैल से 8 जून तक मनरेगाकर्मियों ने हड़ताल की (MNREGA workers strike in Chhattisgarh) थी. रायपुर में जिला स्तर पर प्रदर्शन करने के साथ ही छत्तीसगढ़ के मनरेगा कर्मचारियों ने अपनी 2 सूत्रीय मांगों को लेकर पूरे प्रदेश भर में आंदोलन किया. मनरेगा कर्मचारियों का यह आंदोलन 4 अप्रैल से शुरू होकर 8 जून तक 66 दिनों तक चला. मंत्री कवासी लखमा ने प्रदर्शन स्थल पर आश्वासन दिया था कि आपकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा. जिसके बाद मनरेगा कर्मचारियों ने अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल को स्थगित कर दिया था.
दंतेवाड़ा से पदयात्रा करते हुए पहुंचे थे रायपुर: मनरेगा कर्मचारियों ने अपनी 2 सूत्रीय मांग को लेकर 4 अप्रैल से जिला स्तर पर अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू किया था. दंतेवाड़ा जिले से 12 अप्रैल से दांडी यात्रा के रूप में पैदल चलकर 30 अप्रैल को रायपुर पहुंचे थे. रायपुर पहुंचने के पहले मनरेगा कर्मचारियों ने लगभग 1 किलोमीटर लंबा तिरंगा लेकर राजधानी रायपुर में प्रवेश किया (MNREGA workers did padyatra from Dantewada) था. इस दौरान 23 और 24 अप्रैल को धमतरी के पास स्थित कंडेल ग्राम पहुंचकर मनरेगा कर्मचारियों ने गांधीजी के पद चिन्हों पर चलते हुए कंडेल ग्राम में साफ सफाई करने के साथ ही अपनी मांगों को लेकर रैली का आयोजन भी किया था.
2 जून को 21 एपीओ को सेवा से पृथक कर दिया था: मनरेगा कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के दौरान प्रदेश सरकार के द्वारा 2 जून को प्रदेश भर के 21 जिलों के एपीओ यानी सहायक परियोजना अधिकारियों को बर्खास्त (सेवा से पृथक) कर दिया गया (striking apo Bhupesh government had separated from service) था. एपीओ की पुनः बहाली और अपनी मांगों को लेकर मनरेगा कर्मियों ने 4 जून को महारैली निकाली. सामूहिक रूप से 12 हजार 710 मनरेगा कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. 6 और 7 जून को सरकार के प्रतिनिधि के रूप में मंत्री कवासी लखमा से वार्ता हुई थी. इसी दौरान 7 जून को मनरेगा कर्मियों ने शव रखकर प्रदर्शन किया. जिसके बाद 8 जून को प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा (strike ended after the assurance of Excise Minister Kawasi Lakhma) मनरेगा कर्मचारियों के प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे. उन्होंने मनरेगा कर्मचारियों के मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया था. इस आश्वासन के बाद मनरेगा कर्मचारियों ने अपना अनिश्चितकालीन आंदोलन स्थगित कर दिया था.
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मनरेगाकर्मी हड़ताल पर कर्मचारी नेता का पक्ष : छत्तीसगढ़ में बीते 3 सालों में लगभग 1500 संविदा कर्मियों को बर्खास्त करने के साथ ही बहाल किया गया. कर्मचारी नेता और कानून के जानकार विजय कुमार झा का कहना है कि "ट्रेड यूनियन का सिद्धांत है कि प्रदर्शन या हड़ताल के दौरान प्रदर्शनकारियों पर दबाव बनाने के लिए सरकार गिरफ्तारी, निलंबन और बर्खास्तगी की कार्रवाई करती है. उसके बाद हड़ताल या प्रदर्शन समाप्ति के बाद उनको बहाल भी कर देती है. मनरेगा के 21 एपीओ को बर्खास्त किया गया था. चूंकि एपीओ का पद संविदा होने के कारण इसमें CR का कोई महत्व नहीं रहता और ना ही कोई फर्क पड़ता है. हां इतना जरूर है कि आने वाले समय में संविदा को आगे जारी रखने के लिए CR को देखा जाता है कि इतने दिनों तक कैसा और किस तरह का काम रहा. उसके आधार पर संविदा अवधि को आगे बढ़ाया जाता है.''
संविदा नौकरी में CR का महत्व नहीं : रिटायर्ड आईएएस बीकेएस रे का कहना है कि " संविदा नियुक्ति महत्वपूर्ण नहीं होती. चूंकि संविदा नौकरी होने के कारण इसमें CR कोई महत्व नहीं रखता और ना ही कोई फर्क पड़ता है. सरकारी नौकरी में CR मायने रखता है और सरकार को निलंबित या बर्खास्त करने के पीछे के कारण का भी उल्लेख करना होता है.लेकिन संविदा नौकरी होने के कारण सरकार संविदा कर्मचारी को कभी भी काम पर रख सकती है और कभी भी सेवा समाप्त करते हुए काम से बाहर भी निकाल सकती है.''