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जेल की स्थिति और कैदियों के अधिकारों को लेकर राजधानी में हुई चर्चा

जेल की स्थिति और कैदियों के अधिकारों जैसे कई विषयों पर चर्चा के लिए राजधानी में एक बैठक आयोजित की गई थी.

कैदियों के अधिकारों को लेकर राजधानी में बैठक
कैदियों के अधिकारों को लेकर राजधानी में बैठक
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Published : Feb 2, 2020, 6:06 PM IST

रायपुर : जेल और कैदियों की स्थिति को लेकर राजधानी के वृंदावन हॉल में रविवार को वकीलों ने एक बैठक का आयोजन किया. जिसमें जेल की स्थिति और कैदियों के अधिकारों जैसे कई विषयों पर चर्चा की गई. चर्चा के दौरान बड़ी संख्या में जेल प्रशासन अधिकारी, वकील, मानव अधिकार एक्टिविस्ट, ज्यूडिशियल ऑफिसर शामिल हुए.

कैदियों के अधिकारों को लेकर राजधानी में बैठक
कैदियों की स्थिति पर हुई चर्चा
बैठक में बताया गया कि देश और प्रदेश के कई जेलों में कैदियों पर कम से कम ध्यान दिया जाता है. हाल के आंकड़ों से पता चला है कि 67 प्रतिशत से अधिक कैदी प्रशिक्षण के अधीन है और वर्षों से भीड़भाड़ वाली जेलों में बंद हैं. कैदी इसलिए अपने जीवन को भयावह स्थिति में बिता रहे हैं क्योंकि वे कानून और मानव अधिकार से वंचित हैं.

जेल की प्रणाली का प्रभाव

जेल प्रणाली की बंद प्रकृति कैदियों को दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है, ऐसे मामलों में किसी का ध्यान नहीं जाता. जेल और कैदियों की स्थिति डरावनी है. साथ ही समाज में कैदियों की स्थिति पर चर्चा लगभग ना के बराबर होती है.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एडवोकेट आकाश कुमार ने बताया कि 'यह बैठक कैदियों के मानव अधिकारों के बारे में है'. उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि 'हमारे यहां शायद सरकार कैदियों को इंसान नहीं मानती इसलिए शायद सबसे कम बजट भी उनके लिए ही आवंटित होता है'.

वकील ने बताया कि 'राज्य बंदी अधिकार जो की संविधान ने आरोपी और अपराधी दोनों को मानव अधिकार के तहत दिए हैं उसका पालन नहीं कर रहा है. जेल में बंद होने के बाद और जमानत होने या छूटने तक उनके जो अधिकार है वह किताबों तक ही सीमित हैं'.

रिपोर्ट कर सकता है मदद

आकाश कुमार ने बताया कि 'पिछले 3 महीनों में छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में जाकर जेल और कैदियों पर एक रिपोर्ट बनाई गई है. जिसमें, इस समस्या के सॉल्यूशन के बारे में भी बताया गया है. जिसको इस मीटिंग के बाद गवर्नमेंट को दिया जाएगा साथ ही दिल्ली में इसे भी प्रकाशित किया जाएगा'.

रायपुर : जेल और कैदियों की स्थिति को लेकर राजधानी के वृंदावन हॉल में रविवार को वकीलों ने एक बैठक का आयोजन किया. जिसमें जेल की स्थिति और कैदियों के अधिकारों जैसे कई विषयों पर चर्चा की गई. चर्चा के दौरान बड़ी संख्या में जेल प्रशासन अधिकारी, वकील, मानव अधिकार एक्टिविस्ट, ज्यूडिशियल ऑफिसर शामिल हुए.

कैदियों के अधिकारों को लेकर राजधानी में बैठक
कैदियों की स्थिति पर हुई चर्चा बैठक में बताया गया कि देश और प्रदेश के कई जेलों में कैदियों पर कम से कम ध्यान दिया जाता है. हाल के आंकड़ों से पता चला है कि 67 प्रतिशत से अधिक कैदी प्रशिक्षण के अधीन है और वर्षों से भीड़भाड़ वाली जेलों में बंद हैं. कैदी इसलिए अपने जीवन को भयावह स्थिति में बिता रहे हैं क्योंकि वे कानून और मानव अधिकार से वंचित हैं.

जेल की प्रणाली का प्रभाव

जेल प्रणाली की बंद प्रकृति कैदियों को दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है, ऐसे मामलों में किसी का ध्यान नहीं जाता. जेल और कैदियों की स्थिति डरावनी है. साथ ही समाज में कैदियों की स्थिति पर चर्चा लगभग ना के बराबर होती है.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एडवोकेट आकाश कुमार ने बताया कि 'यह बैठक कैदियों के मानव अधिकारों के बारे में है'. उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि 'हमारे यहां शायद सरकार कैदियों को इंसान नहीं मानती इसलिए शायद सबसे कम बजट भी उनके लिए ही आवंटित होता है'.

वकील ने बताया कि 'राज्य बंदी अधिकार जो की संविधान ने आरोपी और अपराधी दोनों को मानव अधिकार के तहत दिए हैं उसका पालन नहीं कर रहा है. जेल में बंद होने के बाद और जमानत होने या छूटने तक उनके जो अधिकार है वह किताबों तक ही सीमित हैं'.

रिपोर्ट कर सकता है मदद

आकाश कुमार ने बताया कि 'पिछले 3 महीनों में छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में जाकर जेल और कैदियों पर एक रिपोर्ट बनाई गई है. जिसमें, इस समस्या के सॉल्यूशन के बारे में भी बताया गया है. जिसको इस मीटिंग के बाद गवर्नमेंट को दिया जाएगा साथ ही दिल्ली में इसे भी प्रकाशित किया जाएगा'.

Intro:राजधानी रायपुर के वृंदावन हॉल में आज वकीलों द्वारा मीटिंग का आयोजन किया गया था जिसमें जेलों और कैदियों के अधिकारों जैसे विषयों पर चर्चा की गई। इस चर्चा के दौरान बड़ी संख्या में जेल प्रशासन , एडवोकेट्स , ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट , जुडिशल ऑफिसर मौजूद रहे।




Body:इस मीटिंग में बताया गया कि अपराधिक न्याय प्रणाली के बहुत अंत में स्थित जेलों और कैदियों को कम से कम ध्यान दिया जाता है हाल के आंकड़ों से पता चला है कि 67 प्रतिशत से अधिक कैदी प्रशिक्षण के अधीन है और वर्षों से भीड़भाड़ वाली जेलों में बंद हैं अपने जीवन को भयावह स्थिति में बिता रहे हैं क्योंकि वह कानून और मानव अधिकार से वंचित है जेल प्रणाली की बंद प्रकृति कैदियों को दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है जिसपर ज्यादातर किसी का ध्यान नहीं है। जेलो और कैदियों की स्थिति भयावह है जो सिद्धांत की कार्रवाई और भावना को बदनाम करती है। समाज में कैदियों के अधिकारों पर कम से कम चर्चा की जाती है और आम जनता के बीच जेलो और कैदियों के अधिकारों पर सूचना बस का निर्माण करने और स्थानों को जवाबदेही बनाने की कोशिश कर रहे है।




Conclusion:छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट एडवोकेट आकाश कुमार ने बताया कि यह मीटिंग बेसिकली कैदियों के मानव अधिकार के बारे में है हमारे यहां शायद सरकार कैदियों को इंसान नहीं मानती इसलिए शायद सबसे कम बजट भी उनके लिए ही आवंटित होता है देखा जाए तो एक कैदी जब तक उसे बैल होने या छुटने तक उनके जो अधिकार है और हमारा संविधान उन्हें इंसान समझता है पर यह सारी बातें हैं वह किताबों तक ही सीमित है। पिछले 3 महीनों में छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में जाकर एक रिपोर्ट बनाई गई है जिसमें सलूशन के बारे में बताया गया है जिसको इस मीटिंग के बाद गवर्नमेंट को दिया जाएगा साथ ही दिल्ली में भी प्रकाशित किया जाएगा।

बाइट :- छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट एडवोकेट आकाश कुमार

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