रायपुर : जेल और कैदियों की स्थिति को लेकर राजधानी के वृंदावन हॉल में रविवार को वकीलों ने एक बैठक का आयोजन किया. जिसमें जेल की स्थिति और कैदियों के अधिकारों जैसे कई विषयों पर चर्चा की गई. चर्चा के दौरान बड़ी संख्या में जेल प्रशासन अधिकारी, वकील, मानव अधिकार एक्टिविस्ट, ज्यूडिशियल ऑफिसर शामिल हुए.
जेल की प्रणाली का प्रभाव
जेल प्रणाली की बंद प्रकृति कैदियों को दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है, ऐसे मामलों में किसी का ध्यान नहीं जाता. जेल और कैदियों की स्थिति डरावनी है. साथ ही समाज में कैदियों की स्थिति पर चर्चा लगभग ना के बराबर होती है.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एडवोकेट आकाश कुमार ने बताया कि 'यह बैठक कैदियों के मानव अधिकारों के बारे में है'. उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि 'हमारे यहां शायद सरकार कैदियों को इंसान नहीं मानती इसलिए शायद सबसे कम बजट भी उनके लिए ही आवंटित होता है'.
वकील ने बताया कि 'राज्य बंदी अधिकार जो की संविधान ने आरोपी और अपराधी दोनों को मानव अधिकार के तहत दिए हैं उसका पालन नहीं कर रहा है. जेल में बंद होने के बाद और जमानत होने या छूटने तक उनके जो अधिकार है वह किताबों तक ही सीमित हैं'.
रिपोर्ट कर सकता है मदद
आकाश कुमार ने बताया कि 'पिछले 3 महीनों में छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में जाकर जेल और कैदियों पर एक रिपोर्ट बनाई गई है. जिसमें, इस समस्या के सॉल्यूशन के बारे में भी बताया गया है. जिसको इस मीटिंग के बाद गवर्नमेंट को दिया जाएगा साथ ही दिल्ली में इसे भी प्रकाशित किया जाएगा'.