बलौदाबाजार: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 5 अगस्त को श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास करेंगे. जिसके बाद राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो जाएगा. प्रभु श्री राम और रामायण का मुख्य भाग छत्तीसगढ़ से भी जुड़ा हुआ है. छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायका और प्रभु श्री राम का ननिहाल भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार ने बलौदाबाजार के तुरतुरिया को इको-टूरिज्म स्पॉट बनाने की योजना बनाई है.
राज्य सरकार की योजना के मुताबिक मातागढ़ तुरतुरिया का बेहतर रूप से सौंदर्यीकरण किया जाएगा, जिससे यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. एक सप्ताह के अंदर ही इस योजना को स्वरूप देने की कोशिश की जाएगी. करीब 137 करोड़ के राम वनगमन पथ प्रोजेक्ट के अंतर्गत राजधानी रायपुर स्थित चंदखुरी, बलौदाबाजार स्थित तुरतुरिया और जांजगीर-चांपा स्थित शिवरीनारायण को शामिल किया गया है. जिनका विकास किया जाएगा.
'भगवान राम ने छत्तीसगढ़ के 75 स्थलों का किया था भ्रमण'
पौराणिक कथाओं और ग्रन्थों के अनुसार रावण वध के बाद प्रभु श्री राम का माता सीता से वियोग हो जाता है, जिसके बाद भगवान राम माता सीता को खोजते हुए छत्तीसगढ़ आए. इस दौरान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने छत्तीसगढ़ में वन गमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया. उन्ही स्थलों में से एक स्थित है बलौदाबाजार जिले के कसडोल विकासखंड में जिसे मातागढ़ तुरतुरिया कहा जाता है.
माता सीता ने लव-कुश को यहां दिया था जन्म
कसडोल विकासखंड मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच प्रकृति की गोद में स्थित है मातागढ़ तुरतुरिया. मातागढ़ तुरतुरिया को लेकर ये मान्यता है कि यहां माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था, जिससे लव से लवन और कुश से कसडोल नगर का नाम पड़ा. आज भी कसडोल और लवन नगर को लव कुश की नगरी के नाम से जाना जाता है. ETV भारत आपको छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध क्षेत्र तुरतुरिया से रूबरू कराएगा.
राम वनगमन पथ प्रोजेक्ट में शामिल है तुरतुरिया
छत्तीसगढ़ में प्रभु श्री राम ने 75 स्थलों का भ्रमण किया था. जिनमें 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था. छत्तीसगढ़ सरकार ने इन स्थानों का चयन करने में जुटी हुई है और जल्द ही इन सभी स्थलों का श्री राम वनगमन पथ के रूप में विकास किया जाएगा. पहले चरण में 8 स्थलों का चयन पर्यटन की दृष्टि से विकास के लिए किया गया है. इन 8 स्थलों में तुरतुरिया भी शामिल है.
वर्तमान में मातागढ़ तुरतुरिया वाल्मीकि आश्रम जाने के लिए पहाड़ों के पथरीले रास्तों से होकर जाना पड़ता है. जिसके बाद ही महर्षि वाल्मीकि आश्रम मातागढ़ तुरतुरिया पहुंचा जाता है. छत्तीसगढ़ सरकार मातागढ़ तुरतुरिया का विकास इको टूरिज्म के रूप में करन जा रही है.
त्रेतायुग में था महर्षि वाल्मीकी का आश्रम
छत्तीसगढ़ में रामायणकालीन संस्कृति की झलक आज भी देखने को मिलती हैं. जिससे यह साबित तो होता है कि भगवान श्रीराम के अलावा माता सीता और लव-कुश का संबंध भी छत्तीसगढ़ से था. घने जंगलों के बीच स्थित मातागढ़ तुरतुरिया में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम इस बात को याद दिलाता है कि रामायण काल में छत्तीसगढ़ का कितना महत्व रहा होगा. जनश्रुतियों के अनुसार त्रेतायुग में यहां महर्षि वाल्मीकी का आश्रम था और उन्होंने सीताजी को भगवान राम के त्याग करने के बाद आश्रय दिया था.
कसडोल-सिरपुर मार्ग पर ठाकुरदिया नामक जगह से 7 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल और पहाड़ों पर स्थित है तुरतुरिया. यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 113 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसी क्षेत्र में महादेव शिवलिंग भी मिलते हैं, जो 8 वीं शताब्दी के हैं. यहीं पर माता सीता और लव- कुश की एक प्रतिमा भी नजर आती है, जो 13-14 वीं शताब्दी की बताई जाती है.
अजब-गजब है तुरतुरिया की कहानी
इस पर्यटन स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने के पीछे भी एक कहानी बताई जाती है. ग्रामीण बताते हैं कि करीब 200 साल पहले उत्तर प्रदेश के एक संत कलचुरी कालीन राजधानी माने जाने वाले स्थल पहुंचे. घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरे इस खूबसूरत स्थल पर लगातार पहाड़ों से बालमदेही नदी का पानी निकलकर धार के रूप में बहता था. जिससे तुर-तुर की आवाज निकलती थी. बताया जाता है कि इसी तुर-तुर की आवाजों की वजह से संत ने इस स्थान का नाम तुरतुरिया रख दिया जो कि आज भी प्रचलन में है. इस जगह का उल्लेख रामचरितमानस में त्रेतायुग के समय में उल्लेखित है. यहां पानी जिस स्त्रोत से जलकुंड में गिरता है, वहां एक गाय का मुख बना दिया गया है. जिसे देखकर लगता है जैसे गाय के मुख से ही पानी की धार निकल रही हो.
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बालमदेही नदी इस क्षेत्र की एक बड़ी नदी है. माना जाता है कि इस नदी में अगर कोई कुंआरी लड़की वर की कामना करती है, तो उसे अच्छा वर जल्द ही मिल जाता है. 'बालम' का मतलब होता है पति और 'देही' का मतलब होता है देने वाला. यही वजह है कि इस नदी का नाम बालमदेही पड़ा.
वाल्मीकि आश्रम में आज भी लव-कुश की एक मूर्ति घोड़े को पकड़े हुए है. ये मूर्ति यहां खुदाई के दौरान मिली है. मंदिर के पुजारी पंडित रामबालक दास के अनुसार लव-कुश जिस घोड़े को पकड़े हैं, वह अश्वमेघ का घोड़ा है. ये मूर्तियां ही भगवान राम और सीता के यहां प्रवास का प्रमाण माना जाता है.
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छत्तीसगढ़ में कई दिनों से राम वनगमन पथ पर सरकार काम कर रही है. राम वन गमन पथ एक पर्यटन सर्किट के तौर पर विकसित किया जाएगा. लगातार कई हिस्सों का चिन्हांकन किया जा रहा है. राम वन गमन पथ में आने वाले छत्तीसगढ़ के आठ महत्वपूर्ण स्थलों सीतामढ़ी हरचौका, रामगढ़, शिवरीनारायण, तुरतुरिया, चंदखुरी, राजिम, सिहावा (सप्त ऋषि आश्रम) और जगदलपुर को विकसित किया जाएगा.