रायपुर\हैदराबाद: नक्सली कमांडर हिड़मा को सुरक्षा बलों के खिलाफ उसके अभियानों के लिए जाना जाता है. हिड़मा का जन्म दक्षिण सुकमा के पुरवती गांव में हुआ था. वह बीजापुर में एक स्थानीय जनजाति से संबंध रखता है. माना जाता कि हिड़मा साल 2001 से नक्सलियों से जुड़ा. बताया जाता है कि हिड़मा एक कमांडर के रूप में बेहद अनुशासित, चतुर, तेज और क्रूर रहा है.
हिड़मा साल 2004 से वह 27 से अधिक हमलों में शामिल रहा है. इसमें 2013 का झीरम हमला भी शामिल है. अप्रैल 2017 के बुर्कापाल में सीआरपीएफ के 24 जवान शहीद हो गए थे. दंतेवाड़ा हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे. राज्य पुलिस के मुताबिक दंतेवाड़ा हमले में हिड़मा ने सामने से नेतृत्व किया था.
नक्सल कमांडर हिड़मा 2013 में झीरम घाटी नरसंहार से पॉपुलर हुआ. इस हमले में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित 27 लोग मारे गए थे. हिड़मा को अप्रैल 2017 के बुर्कापाल हमले का भी मास्टरमाइंड माना जाता है, जिसमें 24 लोग मारे गए थे. हिडमा ज्यादातर दक्षिण सुकमा क्षेत्र में रहता है. यह इलाका उसका आधार है. वह हमेशा चार स्तरीय सुरक्षा घेरा में चलता है. सीआरपीएफ के पास उपलब्ध एक डोजियर के अनुसार, हिडमा 5 फीट और 6 इंच लंबा है. इस समय सुरक्षाबलों के पास जो तस्वीर उपलब्ध है, वह काफी पुरानी है.
हिड़मा के अधीन 150 से अधिक कमांडर हैं, जो बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं. हिड़मा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला बटालियन नंबर 1 का प्रमुख है. भाकपा (माओवादी) की सर्वोच्च 21 सदस्यीय 'केंद्रीय समिति' के सबसे कम उम्र का सदस्य है. हिड़मा पर 40 लाख रुपये का इनाम है. हिडमा रावुला श्रीनिवास का करीबी माना जाता है. रमन्ना पर 150 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की हत्या का आरोप है. साल 2019 में कार्डियक अरेस्ट से उसका निधन हो गया. जिसके बाद हिडमा को नक्सलियों का कमांडर बना दिया गया.
सूत्रों के मुताबिक हिड़मा को गिरफ्तार ना कर पाने के पीछे उसकी सुरक्षा प्रणाली है. बताया जाता है कि हिडमा की सुरक्षा के लिए 5 किलोमीटर का बहुस्तरीय सुरक्षा घेरा है. स्थानीय निवासियों के बीच मजबूत नेटवर्क भी है. स्थानीय होने के कारण जंगल के अंदर और बाहर की जानकारी काफी अच्छे से है. हिडमा के पास मौजूद कमांडो अच्छी तरह से प्रशिक्षित और आधुनिक हथियारों से लैस हैं. व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए एक अलग टीम भी है.
हिड़मा सुरक्षा बलों के लिए इतना महत्वपूर्ण लक्ष्य क्यों: हिडमा तक पहुंचने का मतलब माओवादियों के प्राथमिक सामरिक कमांडरों में से एक को बाहर निकालना है. इससे बस्तर में माओवादियों के मनोबल को करारा झटका लगेगा. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि माओवादी बाल संघ स्तर पर विचारधारा का प्रशिक्षण देते हैं. यह लगातार जारी है. हिडमा नक्सली संगठन के लिए एक प्रेरणा है. अगर वह पकड़ा या मारा जाता है तो इससे संगठन की कमर टूट जाएगी.