रायपुर: पूरे देश में पोला पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. रायपुर में पोला पर्व को लेकर चौक-चौराहों पर बाजार भी सज गया है. लेकिन इस बाजार से रौनक गायब है. मिट्टी के खिलौने और मिट्टी का बैल बेचने वाले दुकानदार ग्राहकी को लेकर मायूस नजर आ रहे हैं. पिछले साल की तुलना इस साल मिट्टी के बैल और मिट्टी के खिलौनों के दाम में कोई खास अंतर नहीं आया है. शहरी क्षेत्र के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में पोला का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. दुकानदारों ने मिट्टी से बने खिलौने और बैल बेचने के लिए 2 दिन पहले ही अपनी दुकान सजा ली है. लेकिन इन दुकानों में ग्राहकी नहीं के बराबर है. जिसकी वजह से धंधा मंदा नजर आ रहा है.
मिट्टी के खिलौनों का सजा बाजार: मिट्टी के खिलौने और मिट्टी के बैल बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि "पोला पर्व छत्तीसगढ़ में गुरुवार को मनाया जाएगा. मिट्टी से बने खिलौने और बैल की पूजा करने के बाद मिट्टी के बने बैल को बच्चे दौड़ाते हैं. इसके लिए मिट्टी के बने खिलौने को छोटे बच्चे लेकर खेलते हैं. खिलौने का सेट 100 रुपये से 120 रुपये तक बाजारों में बिक रहा है. मिट्टी के बने बैल के दाम साइज के आधार पर 80 रुपये जोड़ी से लेकर 500 रुपये जोड़ी तक बाजार में उपलब्ध हैं. मिट्टी के बने खिलौने और बैल बेचने वाले दुकानदारों को अच्छे कारोबार की उम्मीद है. पोला पर्व के दिन लोग ठेठरी, खुरमी, मीठा, चीला बनाकर खाते हैं. पूरे दिन को बड़े खास तरीके से सेलिब्रेट किया जाता है."
क्यों खरीदे जाते हैं मिट्टी के खिलौने : महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि "बड़े-बुजुर्ग अपनी परंपरा और संस्कृति जीवित रखने के लिए प्राचीन समय में मिट्टी के बने खिलौनों की खरीदारी करते थे. लड़कों के लिए मिट्टी के बने बैल और लड़कियों के लिए मिट्टी के बने खिलौने लेकर आते थे. बड़े बुजुर्ग ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि लड़कियां अपने संस्कारों को समझें और जाने. लड़के इस मिट्टी के बैल से कृषि कार्य में बैल का क्या महत्व है? कृषि कार्य इन बैलों से कैसे काम किया जाता है? इस बात को समझे."
बता दें कि पोला पर्व के दिन बैलों की पूजा की जाती है. इस दिन छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाकर लोग घर-घर में खुशी से इस पर्व को मनाते हैं. इस दिन बैलों का खास श्रृंगार किया जाता है.