सुकमा: जिला मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर रामाराम गांव स्थित है. यहां पुरातन मंदिर है. शोधकर्ताओं के मुताबिक दक्षिण गमन के दौरान श्रीराम सुकमा जिले के रामाराम पहुंचे थे. वर्तमान में यहां एक मंदिर है.
माता चिटमिटीन अम्मा देवी के नाम से प्रसिद्ध
मान्यता है कि भगवान राम ने यहां भू-देवी की आराधना की थी. भू-देवी आज माता चिटमिटीन अम्मा देवी के नाम से प्रसिद्ध है. यहां के लोगों में देवी के प्रति आस्था होने के कारण रामाराम सुकमा का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास नई दिल्ली ने श्रीराम वनगमन स्थल के रूप में रामराम को सालों पहले चिन्हित किया था.
708 साल पुराना है मेले का इतिहास
रामाराम में हर साल फरवरी महीने में भव्य मेला लगता है. करीब 708 सालों से यहां मेला लगता है. सुकमा जमींदार परिवार रियासत काल से यहां देवी-देवताओं की पूजा करते आ रहे हैं. प्रभु श्रीराम ने त्रेता युग में भू-देवी की आराधना की थी, इसलिए क्षेत्र के लोग शुभ कार्य शुरू करने से पहले मिट्टी की पूजा करते हैं.
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श्रीराम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
रामाराम में भू देवी की आराधना के बाद श्रीराम अगले पड़ाव में इंजरम पहुंचे थे. मान्यता है कि यहां ऋषि इंजी का आश्रम था. श्रीराम के आने से गांव का नाम इंजराम पड़ा. यहां भगवान राम ने भगवान शिव की प्रतिमा की स्थापना की थी. इसके प्रमाण बिखरी प्रतिमाओं के रूप में नजर आते हैं. कहा जाता है कि जब भी यहां मंदिर की स्थापना का काम शुरू किया जाता है तो काम करने वाले मजदूर या अन्य कारीगर बीमार पड़ जाते हैं. इसलिए इसे राम की इच्छा मानकर खुले में छोड़ दिया गया है.
'रामाराम को मिलेगी नई पहचान'
नक्सलवाद की वजह से बस्तर संभाग की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान अबतक उभर कर सामने नहीं आ पाई है. अब राम वन गमन पथ के जरिए पर्यटन के विकास की नई संभावनाओं पर काम चल रहा है. इसके जरिए लोगों को रोजगार भी मिलेगा.