रायपुर : जो तिरंगा आज हमारे भारत की आन-बान शान माना जाता है. क्या आप उस तिरंगे के इतिहास को जानते हैं, क्या आपने कभी सोचा कि जिस झंडे को देखकर आज हिन्दुस्तान में रहने वाला हर इंसान गर्व महसूस करता है. वो झंडा कब बनाया गया था और क्यों बनाया गया था. तिरंगे का डिजाइन सबसे पहले किस इंसान के दिमाग में आया था ? आज के इस विश्लेषण में आपको देश के झंडे से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताएंगे और इसके साथ ही गणतंत्र दिवस और उसके समारोहों के बारे में भी कुछ अनजानें तथ्यों से रूबरू (har ghar tiranga 2022)करवाएंगे.
क्या था Star of India : सबसे पहले जिस ध्वज को ब्रिटिश प्रतीकों पर आधारित करके तैयार किया गया था, उसे स्टार ऑफ इंडिया के तौर पर जाना गया था. स्टार ऑफ इंडिया कई झंडों का एक समूह था जिसका प्रस्ताव ब्रिटिश शासकों की तरफ से तब दिया गया था जब वो यहां पर राज कर रहे थे. 20वीं सदी आते-आते, एडवर्ड VII के कार्यकाल के दौरान एक ऐसे प्रतीक की जरूरत महसूस हुई जो ब्रिटेन के शासन वाले भारत का प्रतिनिधित्व कर सके. जो लोकप्रिय प्रतीक उस समय मौजूद थे उनमें भगवान गणेश, मां काली और इस तरह के प्रतीक शामिल थे. मगर इन सभी को ये कहकर खारिज कर दिया गया कि ये एक धर्म विशेष पर आधारित हैं.
बंगाल विभाजन ने दी नई दिशा : सन् 1905 में जब बंगाल का पहला विभाजन हुआ तो एक नया भारतीय झंडा सामने आया. जिसे देश के लोगों को एक करने के मकसद से तैयार किया गया था. इस झंडे को वंदे मातरम झंडे के तौर पर जाना गया था. ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन के समय इसे लॉन्च किया गया था. इस झंडे में आठ सफेद कमल थे और आठ प्रांतों को दर्शाने वाले प्रतीक भी थे. इस झंडे को कोलकाता में लॉन्च किया गया था. इसे किसी भी तरह से मीडिया में कोई जगह नहीं मिली थी और न ही किसी अखबार में इसका जिक्र हुआ था. इस झंडे का ही प्रयोग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन(Annual session of the Indian National Congress) के दौरान किया गया(Azadi Ka Amrit Mahotsav) था.
आंध्र के पिंगली वैंकेया की भूमिका : भारत के लिए झंडा बनाने की कोशिशें हालांकि पहले भी हो चुकी थी. लेकिन तिरंगे की परिकल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया(Role of Pingali Venkaiah of Andhra) ने की थी. उनकी चर्चा महात्मा गांधी ने 1931 में अपने अखबार यंग इंडिया में की थी. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई. उन्हें झंडों में बहुत रूचि थी. गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा. वेंकैया ने 1916 से 1921 कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया. 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी से मिलकर लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया. इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा. इस बीच जालंधर के लाला हंसराज ने झंडे में एक चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया. बाद में गांधी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया. 1931 में कांग्रेस ने केसरिया, सफेद औऱ हरे रंग से बने झंडे को स्वीकार किया. हालांकि तब झंडे के बीच में अशोक चक्र नहीं बल्कि चरखा था.
कैसे आया तिरंगा : साल 1931 वो वर्ष है जो राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास में यादगार करार दिया जाता है. तिरंगे ध्वज को देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पास किया गया था. इसी ध्वज ने वर्तमान में जो तिरंगा है, उसकी आधारशिला तैयार की थी. यह झंडा केसरिया, सफेद और बीच में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था. इसके बाद 21 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसी झंडे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाया. 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद इसमें बस एक ही बदलाव हुआ. तिरंगे में चरखे की जगह पर अशोक चक्र को दिखाया गया(har ghar tiranga campaign) था.