रायपुर : बदलते परिवेश में बच्चों के रहन सहन और आदतों में भी बदलाव आते हैं. बच्चों का मन चंचल होता है.हर वक्त कुछ नया करने की सोचता है.ऐसे में कई बार बच्चों में चिड़चिड़ापन और जिद्दी बनने की आदत बढ़ने लगती है.बच्चों को ऐसा करने से रोकने के लिए अभिभावक सख्ती करते हैं.जिसमें बच्चों को डांटने के साथ उनकी पिटाई भी की जाती है.लेकिन बच्चों को पीटने पर उसका असर उनके शरीर के साथ-साथ दिमाग पर ज्यादा पड़ता है. जिससे बच्चे मनोरोगी बनने लगते हैं.
क्या है विशेषज्ञों की राय : इस बारे में डॉ भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुरभि दुबे का कहना है कि "बच्चों को पनिशमेंट देना जरूरी है. लेकिन उसे जरूरत से ज्यादा मारने से उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. बच्चे अपने मन की बात बोलना कम कर देते हैं. उनका कॉन्फिडेंस लेवल कम हो जाता है. बहुत सारी स्टडीज में ऐसा पाया गया है कि बच्चों को हार्ड पनिशमेंट देने से पॉजिटिव रिजल्ट नहीं मिलता,उल्टा बच्चों का परफॉर्मेंस कम हो जाता है.बच्चे जब बड़े होने लगते हैं तो काफी अग्रेसिव हो जाते हैं. गुस्सैल और चिड़चिड़ापन होने की वजह से बच्चों में गलत आदतें भी पनपने लगती है.कुछ बच्चे नशे के आदी होने लगते हैं. वहीं कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें एकांत में रहना अच्छा लगता है.''
पिटाई से बच्चों के व्यवहार में आता है बदलाव : मारपीट से बच्चे के व्यवहार में कई तरह के परिवर्तन आते हैं.जिसमें चिड़चिड़ापन, छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होना,एकांतवासी हो जाना,विद्रोही स्वभाव का होना, आत्मविश्वास की कमी होना,नशे की आदत लगना प्रमुख तौर पर देखे गए हैं. परिजनों को ऐसा लगता है पिटाई के डर से बच्चों को कंट्रोल किया जा सकता है. लेकिन ठीक इसके विपरीत मारपीट का बच्चों पर शारीरिक प्रभाव के साथ मानसिक प्रभाव भी पड़ता है.