रायपुर: आज कृष्णपक्ष ष्ष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है. भगवान विष्णु के अधिकांश अवतारों में शेषनाग किसी न किसी रूप में उनके साथ हमेशा अवतरित हुए हैं. हिंदू धर्म शास्त्रानुसार भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है. हल धारण करने के कारण भी बलराम को हलधर कहा जाता है. भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव के 7वें संतान हैं. यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी के नाम से मनाया जाता है.
इस पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में कमरछठ के नाम से जाना जाता है. इस बार नौ अगस्त को हलषष्ठी पर्व मनाया जा रहा है. हलषष्ठी माता की पूजा करके परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. पूजा-अर्चना में बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाने का खासा महत्व है. पसहर चावल को खेतों में उगाया नहीं जाता. यह चावल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब, पोखर या अन्य जगहों पर उगता है. भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव वाले दिन हलषष्ठी मनाए जाने के कारण बलदाऊ के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चावल का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती हैं और इसी चावल से व्रत तोड़ती हैं.
भगवान बलराम का जन्मोत्सव
शास्त्र के मुताबिक, इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ है. माना जाता है कि बलराम का शस्त्र हल और मूसल होने के कारण पर्व का नाम भी हलषष्ठी पड़ा. मान्यता है कि माता देवकी के 6 पुत्रों को जब कंस ने मार दिया तब पुत्र की रक्षा की कामना के लिए माता देवकी ने भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की आराधना करते हुए व्रत रखा था. एक और कथा के मुताबिक अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने हलषष्ठी का व्रत किया था, जिससे उनका पुत्र परीक्षित जीवित रहा.
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पुत्र रक्षा के लिए रखते हैं हलषष्ठी का व्रत
एक और किंवदंती है, प्राचीन काल में एक ग्वालन थी. उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था. एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था. उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा. यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी, लेकिन कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई. जिसके बाद वो एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया. वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई. संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी. गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-साधे गांव वालों को बेच दिया.
इधर, जिस झरबेरी के नीचे उसने अपने बच्चे को छोड़ा था, उसके पास ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था. इसी दौरान अचानक उस किसान का बैल भड़क उठा और भागने लगा, जिसके कारण हल का फर शरीर में घुसने से वह बालक मर गया. इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया. किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया. कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची. बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है. वह सोचने लगी कि यदि वो झूठ बोलकर गाय का दूध न बेची होती और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो उसके बच्चे की यह दशा न होती. इसके बाद वो महिला गांव लौट, सारी बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहा.
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था. वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड के बारे में बताने लगी. तब स्त्रियों ने स्वधर्म-रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया. बहुत-सी स्त्रियों की ओर से आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है. तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण लेते हुए हलषष्ठी का व्रत किया.
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हलषष्ठी व्रत की विधि
इस दिन महिलाएं भूमि को लीपकर छोटा सा गड्ढा खोदकर उसे तालाब का आकार देती हैं. तालाब में मुरबेरी, ताग और पलाटा की शाखा बांधकर इससे बनाई गई हरछठ को गाड़ इसकी पूजा करती हैं. पूजा में चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का और मूंग चढ़ाने के बाद सूखी धूल, हरी कुजरिया, होली की राख, होली पर भुने हुए चने और जौ की बाली चढ़ाई जाती है.