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Jhulan Yatra Festival : राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक है झूलन यात्रा पर्व, एकादशी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है उत्सव - इस्कॉन मंदिर

Jhulan Yatra Festival राधाकृष्ण अपने अनोखे रिश्ते के लिए जाने जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा के बीच निश्चल प्रेम था.भारत देश में राधा और कृष्ण के कई मंदिर हैं. जहां दोनों एक साथ पूजे जाते हैं.साथ ही साथ ऐसे कई त्यौहार हैं जो राधाकृष्ण के प्रेम के प्रतीक माने गए हैं.उन्हीं में से एक त्यौहार झूलन यात्रा का पावन पर्व है. इस दिन राधाकृष्ण को झूला झुलाकर उनकी पूजा की जाती है. Importance of Jhulan Yatra Festival

Jhulan Yatra Festival
राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक है झूलन यात्रा पर्व
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 25, 2023, 7:48 PM IST

राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक है झूलन यात्रा पर्व

रायपुर : राधाकृष्ण प्रेम के प्रतीक माने गए हैं. प्राचीन समय से ही धरती पर राधा और कृष्ण की प्रेम की कई कहानियां प्रचलित हैं. ऐसा माना जाता है कि भले ही राधा और कृष्ण का विवाह ना हुआ हो.लेकिन कृष्ण और राधा एक दूसरे के पर्याय थे. दोनों के बीच अथाह प्रेम था.इसलिए सदियों तक इनका निश्चल प्रेम अमर है.सावन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन राधाकृष्ण से संबंधित एक पर्व मनाया जाता है. जिसे झूलन यात्रा का पावन पर्व भी कहा जाता है. ये पर्व सावन माह की एकादशी से शुरु होकर पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन तक चलता है.

कहां-कहां मनाया जाता है पर्व ? : पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक इस पर्व को मनाने के लिए राधाकृष्ण की प्रतिमा बनाकर उनका श्रृंगार किया जाता है.इसके बाद दोनों को झूला झुलाया जाता है . राधा और कृष्ण के भक्त इकट्ठा होकर गीत संगीत के साथ उत्सव मनाते हैं. यह पर्व वृंदावन, मथुरा, पश्चिम बंगाल के मायापुर, ओडिसा के जगन्नाथ धाम में धूमधाम से मनाया जाता है.गुजरात के द्वारका में इस पर्व की छटा देखते ही बनती है.

''सावन की रिमझिम फुहारों के बीच राधाकृष्ण बहुत ही पवित्र दिखाई पड़ते हैं. इस पर्व में मुख्य रूप से भगवान के श्री वस्त्रों को रोजाना बदलने का विधान है. प्रसाद के रूप में विशेष प्रसादम की व्यवस्था की जाती है. राधाकृष्ण की प्रतिमा की स्थापना के बाद उन्हें झूला झुलाया जाता है.इस जगह पर कीर्तन और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है.'' पंडित विनीत शर्मा, ज्योतिषाचार्य

उत्सव के दौरान राधा और कृष्ण की मूर्तियों को वेदी से हटाया जाता है.इसके बाद सजे हुए झूलों पर राधाकृष्ण की मूर्तियों को रखते हैं.कई जगहों पर ये झूले सोने और चांदी के बने हुए होते हैं.इसके बाद झूले से एक रस्सी बांधकर भक्तों को दिया जाता है.बारी बारी भक्त आकर अपने आराध्य राधाकृष्ण को झूला झुलाते हैं. इस दौरान भक्त ईश्वर भक्ति में श्रद्धालु लीन हो जाते हैं.

कहां-कहां मनाया जाता है उत्सव ? वृन्दावन का श्री रूप-सनातन गौड़ीय मठ, बांके बिहारी मंदिर और राधा रमण मंदिर, मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर, जगन्नाथ पुरी का गौड़ीय मठ, इस्कॉन मंदिर, गोवर्धन पीठ, श्री राधा कांत मठ, श्री जगन्नाथ बल्लव मठ और मायापुर का इस्कॉन मंदिर में झूलन पर्व त्यौहार भव्यता के साथ मनाया जाता है.

श्रीकृष्ण के ये मंत्र आपको बना देंगे धनवान
कदंब का पेड़ राधाकृष्ण के प्रेम की देता है गवाही
राधाकृष्ण का ऐसा मंदिर,जहां दर्शन मात्र से मनोकामना हो जाती है पूरी

कितने दिन तक मनाया जाता है पर्व ? : यह पावन पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है. इस बार सावन महीने में ये पर्व 27 अगस्त से शुरु होगा.इसी दिन सर्वार्थ सिद्धि त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है. साथ ही श्रावण शुक्ल एकादशी भी पड़ रही है. इस पर्व का समापन 31 अगस्त श्रावण शुक्ल पूर्णिमा की तिथि के साथ होगा.इन तिथियों में भगवान श्रीकृष्ण और राधा को एक ही झूले में बिठाकर उनकी आराधना की जाती है. इस उत्सव में राधाकृष्ण को 56 प्रकार के भोग लगाने का भी विधान है.

राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक है झूलन यात्रा पर्व

रायपुर : राधाकृष्ण प्रेम के प्रतीक माने गए हैं. प्राचीन समय से ही धरती पर राधा और कृष्ण की प्रेम की कई कहानियां प्रचलित हैं. ऐसा माना जाता है कि भले ही राधा और कृष्ण का विवाह ना हुआ हो.लेकिन कृष्ण और राधा एक दूसरे के पर्याय थे. दोनों के बीच अथाह प्रेम था.इसलिए सदियों तक इनका निश्चल प्रेम अमर है.सावन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन राधाकृष्ण से संबंधित एक पर्व मनाया जाता है. जिसे झूलन यात्रा का पावन पर्व भी कहा जाता है. ये पर्व सावन माह की एकादशी से शुरु होकर पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन तक चलता है.

कहां-कहां मनाया जाता है पर्व ? : पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक इस पर्व को मनाने के लिए राधाकृष्ण की प्रतिमा बनाकर उनका श्रृंगार किया जाता है.इसके बाद दोनों को झूला झुलाया जाता है . राधा और कृष्ण के भक्त इकट्ठा होकर गीत संगीत के साथ उत्सव मनाते हैं. यह पर्व वृंदावन, मथुरा, पश्चिम बंगाल के मायापुर, ओडिसा के जगन्नाथ धाम में धूमधाम से मनाया जाता है.गुजरात के द्वारका में इस पर्व की छटा देखते ही बनती है.

''सावन की रिमझिम फुहारों के बीच राधाकृष्ण बहुत ही पवित्र दिखाई पड़ते हैं. इस पर्व में मुख्य रूप से भगवान के श्री वस्त्रों को रोजाना बदलने का विधान है. प्रसाद के रूप में विशेष प्रसादम की व्यवस्था की जाती है. राधाकृष्ण की प्रतिमा की स्थापना के बाद उन्हें झूला झुलाया जाता है.इस जगह पर कीर्तन और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है.'' पंडित विनीत शर्मा, ज्योतिषाचार्य

उत्सव के दौरान राधा और कृष्ण की मूर्तियों को वेदी से हटाया जाता है.इसके बाद सजे हुए झूलों पर राधाकृष्ण की मूर्तियों को रखते हैं.कई जगहों पर ये झूले सोने और चांदी के बने हुए होते हैं.इसके बाद झूले से एक रस्सी बांधकर भक्तों को दिया जाता है.बारी बारी भक्त आकर अपने आराध्य राधाकृष्ण को झूला झुलाते हैं. इस दौरान भक्त ईश्वर भक्ति में श्रद्धालु लीन हो जाते हैं.

कहां-कहां मनाया जाता है उत्सव ? वृन्दावन का श्री रूप-सनातन गौड़ीय मठ, बांके बिहारी मंदिर और राधा रमण मंदिर, मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर, जगन्नाथ पुरी का गौड़ीय मठ, इस्कॉन मंदिर, गोवर्धन पीठ, श्री राधा कांत मठ, श्री जगन्नाथ बल्लव मठ और मायापुर का इस्कॉन मंदिर में झूलन पर्व त्यौहार भव्यता के साथ मनाया जाता है.

श्रीकृष्ण के ये मंत्र आपको बना देंगे धनवान
कदंब का पेड़ राधाकृष्ण के प्रेम की देता है गवाही
राधाकृष्ण का ऐसा मंदिर,जहां दर्शन मात्र से मनोकामना हो जाती है पूरी

कितने दिन तक मनाया जाता है पर्व ? : यह पावन पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है. इस बार सावन महीने में ये पर्व 27 अगस्त से शुरु होगा.इसी दिन सर्वार्थ सिद्धि त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है. साथ ही श्रावण शुक्ल एकादशी भी पड़ रही है. इस पर्व का समापन 31 अगस्त श्रावण शुक्ल पूर्णिमा की तिथि के साथ होगा.इन तिथियों में भगवान श्रीकृष्ण और राधा को एक ही झूले में बिठाकर उनकी आराधना की जाती है. इस उत्सव में राधाकृष्ण को 56 प्रकार के भोग लगाने का भी विधान है.

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