रायपुर: पुष्य नक्षत्र अतिगंड योग, प्रजापति योग कर्क राशि बवकरण और भद्रा के सूक्ष्म उपस्थिति में आमलकी एकादशी मनाया जाएगा. सोमवार के शुभ दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी है. पुष्य नक्षत्र विशेष महत्व रखता है. इस शुभ दिन प्रातः काल में स्नान ध्यान से निवृत्त होकर श्री हरि विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. भगवान श्री विष्णु को ओम नमो भगवते वासुदेवाय विष्णु सहस्त्रनाम विष्णु चालीसा गीता का पाठ आदि कर इस व्रत को मनाया जाता है.
आमलकी एकादशी में उपवास का प्रावधान
आज के दिन व्रत उपवास करने का विधान है. एकाशना निराहार और पूर्ण फलाहार के द्वारा भी इस व्रत को किया जाता है. इस व्रत को करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है. स्वास्थ्य में सुधार होता है ऐसी मान्यता है कि, आज के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा मंत्र जाप करना और आंवले के फल को प्रसाद के रूप में खाने से कामनाएं पूर्ण होती है.यह व्रत कुंवारी कन्याएं अपने पति की प्राप्ति हेतु भी करती हैं. जिनके वैवाहिक जीवन में खटपट या अनबन है, ऐसे परिवार को भी इस व्रत का पालन विधि पूर्वक करना चाहिए.
होलाष्टक के साथ बरसाने में शुरू होगी फूलों की होली
रविवार 13 मार्च से प्रारंभ हो जाएगी आमलकी एकादशी
रविवार 13 मार्च सुबह 10:21 से लेकर एकादशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी और 14 मार्च 12:05 तक यह स्थिति रहेगी. महीने में दो बार एकादशी का व्रत होता है फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में वैसे तो सभी एकादशी का काफी महत्व माना गया है. लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण है आमलकी एकादशी को आमलक्य एकादशी भी कहा जाता है. आमलकी एकादशी इस साल 14 मार्च सोमवार के दिन पड़ रहा है.
शत्रु पर विजय दिलाने वाली 'विजया एकदशी' आज, जानें मुहूर्त एवं पूजन विधि
आंवले के फल का विशेष महत्व
आमलकी एकादशी में आंवले के फल का विशेष महत्व है इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प करना चाहिए व्रत का संकल्प लेने के बाद स्नान से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. इसके उपरांत आंवले का फल भगवान विष्णु को प्रसाद के रूप में अर्पित करना चाहिए. आंवले के वृक्ष का धूप, दीप, चंदन, रोली अक्षत और पुष्प आदि से पूजन कर गरीब और असहाय व्यक्ति के साथ ही ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. अगले दिन स्नान कर भगवान विष्णु के पूजन के बाद ब्राह्मण को कलश, वस्त्र और आंवला आदि का दान करना चाहिए इसके बाद भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ना चाहिए.