रायपुर / हैदराबाद : भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिये से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते Importance and religious belief of Makar Sankranti हैं. शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी है. लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है. एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है. बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया religious belief of Makar Sankranti था. तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा.
फसलों से भी जुड़ी है मान्यता : नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी Makar sankranti धूमधाम से मनाई जाती है. पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान Makar sankranti को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं. खेतों में गेहूं और धान की लहलहाती फसल किसानों की मेहनत का परिणाम होती है लेकिन यह सब ईश्वर और प्रकृति के आशीर्वाद से संभव होता है. पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है. तमिलनाडु में मकर संक्रांति ’पोंगल’ के तौर पर मनाई जाती है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है. मकर संक्रांति पर कहीं खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं दही चूड़ा और तिल के लड्डू बनाये जाते हैं.
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मकर संक्राति का पौराणिक महत्व : ऐसी मान्यता है कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता (Mythological Significance of Makar Sankranti) है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं. इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें शांति और सिद्धि प्राप्त होती है.अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है. स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है. महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था. उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था.