रायपुर: देशभर में लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण ने कई इंडस्ट्रीज की कमर तोड़कर रख दी है. कोरोना वायरस के संक्रमण ने हर वर्ग को खासा नुकसान पहुंचाया है. अलग-अलग सेक्टर्स पर इसके बहुत बुरे परिणाम देखने को मिले हैं. इसका प्रभाव उन व्यवसायों पर भी पड़ा है, जिन सामानों को लोग एक बार खरीदकर सालों तक चलाते हैं यानी ड्यूरेबल सामानों का बिजनेस. कोरोना काल में ड्यूरेबल व्यवसाय जैसे मशीनरी, फर्नीचर, होम अप्लायंसेज और स्टील इंडस्ट्रीज का व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया है. ETV भारत ने ड्यूरेबल व्यवसाय के व्यापारियों से बातचीत की है और कोरोना काल में होने वाली समस्याओं के बारे में जाना है.
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. छत्तीसगढ़ की पूरी अर्थव्यवस्था धान और चावल के इर्द-गिर्द ही घूमती है. लॉकडाउन के कारण एग्रीकल्चर में उपयोग आने वाली मशीनरी का बाजार एकदम ठंडा है. जनवरी माह से पैर पसार रहे कोरोना महामारी की वजह से खेती का मुख्य सीजन निकल गया है, लेकिन अभी भी स्थिति सुधरने के बजाए और भयावह होती जा रही है, जिससे व्यापारियों में नाराजगी है. लॉकडाउन के शुरुआत में किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इसके इतने घातक परिणाम सामने आएंगे कि लोग रोजी-रोटी को भी मोहताज हो जाएंगे.
केंद्र सरकार को ठहराया जिम्मेदार
छत्तीसगढ़ चैंबर ऑफ कॉमर्स के वरिष्ठ पदाधिकारी और प्रदेश कांग्रेस व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र जग्गी ने कोरोना संक्रमण के कारण व्यापार पर पड़े दुष्प्रभाव को लेकर केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि पहले ही नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापारियों की कमर तोड़कर रख दी थी. इन सब से बाहर निकलकर जैसे ही व्यापार दोबारा खड़ा होने लगा, ये महामारी आ गई. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अगर इस महामरी को लेकर पहले से ही गंभीर होती, तो आज ये स्थिति देखने को नहीं मिलती. जब दुनिया के विभिन्न देशों में कोरोना को लेकर अलर्ट जारी किया जा रहा था, उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप के स्वागत में लगे हुए थे और जब यह महामरी पूरी तरह फैल गई, तो केंद्र सरकार ने लॉकडाउन का आदेश सुना दिया.
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खेती के मुख्य सीजन के तौर पर अप्रैल से लेकर जुलाई-अगस्त में ही किसान ड्यूरेबल चीजें जैसे पंप, मोटर, पाइपलाइन, टैंक निर्माण या खेतों को सुधारने के लिए एग्रीकल्चर प्रोडक्ट की खरीदी करते हैं, लेकिन इस महामारी के कारण न तो किसान शहरों तक पहुंच पाए और न ही व्यापारी गांव-गांव जाकर सामान की सप्लाई ही कर सके.
फर्नीचर मार्केट पर पड़ा प्रभाव
ड्यूरेबल व्यवसाय में फर्नीचर मार्केट को सबसे बड़ा मार्केट माना जाता है. फर्नीचर और स्टील की अलमारियां एक बार लेने के बाद लंबे समय तक लोग अपने घरों में रखते हैं. फर्नीचर का व्यवसाय अप्रैल से लेकर जुलाई-अगस्त तक ही रहता है, लेकिन कोरोना के कारण ये व्यवसाय भी पूरी तरह ठप पड़ा है. फर्नीचर और अलमारियों के कारोबारी विनोद कुमार ने ETV भारत से बातचीत के दौरान कहा कि ये साल व्यापारियों के लिए काल बनकर आया है. शादियों के सीजन में फर्नीचर और अलमारियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है, लेकिन इस साल शादियों के सीजन में देश लॉकडाउन था, वहीं कोरोना संक्रमण भी तेजी से बढ़ रहा था, जिसके कारण कई लोगों ने विवाह टाल दिए. वहीं अब जो शादियां हो रही हैं, उसमें भी लोग तामझाम से बच रहे हैं. ऐसे में शादियों के सीजन में भी फर्नीचर की बिक्री नहीं हो पाई है.
अप्रैल-मई में ज्यादातार स्कूलों में नए सत्र की शुरुआत होती है और इसी के साथ फर्नीचर की बिक्री भी बढ़ती है, लेकिन इस बार न तो स्कूल खुल रहे हैं और न ही मार्केट में लोग हैं. फर्नीचर के व्यापार के लिए बड़े-बड़े शोरूम की जरूरत होती है, लेकिन कमाई नहीं हो पाने के कारण स्टाफ को सैलरी और शोरूम का किराया देना मुश्किल हो गया है.
होम अप्लायंसेज और बर्तन कारोबार पर भी बड़ा असर
ड्यूरेबल व्यवसाय के अंतर्गत होम अप्लायंसेज मार्केट को भी बड़ा नुकसान हुआ है. कोरोना वायरस और लाकडॉउन का असर होम अप्लायंसेज यानी बर्तन और किचन से जुड़े अन्य सामानों की बिक्री पर भी पड़ा है. होम अप्लायंसेज के कारोबारी मनीष चौधरी कहते हैं कि यही वह समय होता है जब पूरे साल भर का बिजनेस 3 से 4 महीने में होता है, लेकिन लॉकडाउन ने इस बाजार को सालभर के लिए पीछे कर दिया है.
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कोरोना महामारी ने न केवल मानव जीवन पर बल्कि व्यापार, शिक्षा समेत लगभग सभी सेक्टर्स पर बेहद बुरा प्रभाव डाला है. हालांकि सरकार ने सभी दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी है, लेकिन कई चीजों का सीजन चले जाने के कारण बाजार में ग्राहक नहीं के बराबर हैं. वहीं शादियों और गर्मी का सीजन भी लॉकडाउन में चला गया, जिससे कारोबारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.