रायपुर: पपीता की खेती करके प्रदेश के किसान अच्छा लाभ अर्जित कर सकते (How to earn profit from papaya farming ) हैं. इसके लिए उन्हें कुछ सावधानी और जरूरी बातों को समझना होगा. कुछ ऐसी किस्मे हैं. जिसकी खेती करते प्रदेश के किसान अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं. पपीता की खेती करते समय किसानों को इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसे स्थान या खेतों का चयन करना है. जहां पर पानी का भराव नहीं होना चाहिए. पपीते की खेती करते समय और जमीन को आड़ा और तिरछा जुताई करना होता है. इस दौरान पौधे से पौधे की दूरी 1.2 मीटर और कतार से कतार की दूरी 1.2 मीटर की होनी चाहिए.
कैसे पपीता की खेती से कमा सकते हैं मुनाफा कैसे और कब करें पपीते की खेती : इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) की कृषि वैज्ञानिक घनश्याम दास साहू ने बताया कि "पपीता की खेती करते समय गड्ढे की लंबाई चौड़ाई और ऊंचाई 7 फीट होनी चाहिए. गड्ढे से निकाले गए आधे मिट्टी में 5 किलो गोबर खाद या फिर एक किलोग्राम केंचुआ खाद या 1 किलोग्राम नाडेप खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है. छत्तीसगढ़ में पपीता की खेती करने के लिए नवंबर का महीना उपयुक्त माना गया है. इसके साथ ही फरवरी के मौसम में भी पपीता की खेती प्रदेश के किसान कर सकते हैं. पपीता की खेती करते समय किसानों को किस्मों का चयन करना भी जरूरी है. जिसमें उभय लिंगी किस्म, रेड लेडी, बौनी किस्मों में पूसा नन्हा, पूषा मजिस्टी इन किस्मों का चयन करके प्रदेश के किसान अच्छा लाभ और आय अर्जित कर सकते हैं. किसानों को ध्यान रखने वाली बात यह है, कि जलभराव वाले स्थान को छोड़कर किसी भी स्थान पर पपीता की खेती की जा सकती है." (papaya farming method in raipur)
कितने प्रकार के पपीते की होती है खेती : इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ घनश्याम दास साहू (Agriculture Scientist Dr Ghanshyam Das Sahu) बताते हैं कि "पपीता गुलाबी गुदा वाली और लाल गुदा वाली होती है, लाल गुदा वाली पपीता का शेल्फ लाइफ थोड़ा कम होता है. गुलाबी गुदा वाली का शेल्फ लाइफ अधिक होता है. वैज्ञानिको का मानना हैं, कि जो किसान धान आधारित हैं. उन्हें कम से कम आधा एकड़ में पपीता की खेती करनी चाहिए. किसान खेत में मेड़ में या फिर किसी दूसरी जमीन पर पपीता की खेती करके अपने थोड़े बहुत शौक को पूरा कर सकते हैं.
पपीता की खेती से कमाए लाभ पपीता में होने वाली बीमारियां : बारिश के दिनों में पपाया में पपाया रिंगस्पॉट वायरस और पुरानी बीमारी में यलो एनिमल मोजैक वायरस का अटैक दिखाई पड़ता है. इससे बचने के लिए किसानों को नीम खली, नीम आयल का छिड़काव हर 15 दिनों में करना चाहिए. इसके साथ ही घुलनशील ताम्रयुक्त फफूंद नाशक का उपयोग जड़, मेड़ और पौधे पर करने से वर्षभर पपीता की फसल ली जा सकती है."