रायपुर: छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ भाजपाई नेता नंदकुमार साय ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. भाजपा छोड़ने पर उन्होंने पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाया. अपने बयान में उन्होंने कहा कि 2003 में वे प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा थे लेकिन उन्हें उनके मुताबिक टिकट नहीं दिया गया. उन्हें तत्कालीन अजीत जोगी के खिलाफ मरवाही से चुनाव लड़ाया गया. नंदकुमार साहू को पहले से ही यह पता था कि वह अजीत जोगी के खिलाफ चुनाव नहीं जीत पाएंगे. उन्होंने तपकरा से टिकट मांगा था, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया. पार्टी छोड़ने के दौरान भी उन्होंने अपनी उपेक्षा का आरोप लगाया. भाजपा में रहते नंद कुमार साय कैसे मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हुए, पढ़िए खास रिपोर्ट.
नेता प्रतिपक्ष रहते हुए लगा था बड़ा दाग: नंदकुमार साय को बड़े दिग्गज नेताओं को दरकिनार करके छत्तीसगढ़ का नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. 2000 से 2003 तक भारतीय जनता पार्टी के अंदर विधायकों की टूट-फूट हुई. उनके नेता प्रतिपक्ष बनने के कुछ दिनों बाद एक विधायक ने इस्तीफा दिया. उसके बाद 14 विधायक भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए, जिसमें दिग्गज विधायक शामिल थे. नंदकुमार साय अपने विधायकों को संगठित नहीं रख पाए, जिससे आला कमान भी नाराज थे. वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा के मुताबिक "उनके नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भाजपा के विधायकों का कांग्रेस में प्रवेश करना उनके करियर के लिए एक बहुत बड़ा दाग साबित हुआ. इसके कारण भी नेता प्रतिपक्ष होते हुए भी मुख्यमंत्री के पद की दौड़ से बाहर हो गए."
बेटी का भाजपा छोड़कर जाना भी रहा कारण: छत्तीसगढ़ में 2002 के अंत और 2003 की शुरुआत में छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी. उस दौरान उनकी बेटी प्रियंवदा पैकरा भारतीय जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गई. इस घटना ने भी संगठन के अंदर नंदकुमार की छवि को धूमिल किया.
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सामूहिक नेतृत्व में लड़ा गया 2003 का चुनाव: 2003 में विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा गया. उस समय नंदकुमार साय एक बड़ा चेहरा थे. इसी के साथ डॉ रमन सिंह भी बड़ा चेहरा थे, क्योंकि वे प्रदेश अध्यक्ष थे. इसी के साथ दिलीप सिंह जूदेव और रमेश बैस दोनों केंद्र में मंत्री थे. इस नाते इन चार चेहरों के आधार पर चुनाव लड़ा गया. किसी भी प्रकार का निर्णय संगठन को ही करना होता है. चुनाव के समय ही नंदकुमार साय मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गए थे. जिन नमों की चर्चा होती थी, उनमें पहले नंबर पर दिलीप सिंह जूदेव, दूसरे नंबर पर रमेश बैस और तीसरे नंबर पर रमन सिंह आते थे. यह बात अलग है कि संगठन ने दोनों नेताओं को दरकिनार करते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया.
नंदकुमार साय का ऐसा मानना हो सकता है कि वह उस समय मुख्यमंत्री की दौड़ में थे, लेकिन यह 2003 चुनाव के पहले की परिस्थिति में था. 2003 विधानसभा चुनाव के दौरान ही वे मुख्यमंत्री पद के दौड़ से बहार हो गए थे. उसके बाद पार्टी ने उन्हें कई महत्वपूर्ण पद दिए, पर सीएम चेहरे से किनारा कर लिया.