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Holi festival 2023 : होलिका दहन का क्या है विधान, जानिए होली का शुभ मुहूर्त और महत्व - महाराष्ट्र में रंग पंचमी

साल 2023 में होलिका दहन 7 मार्च को किया जाएगा. अगले दिन 8 मार्च को रंगों का त्योहार होली मनाई जाएगी. रंगों का यह त्योहार हमारे जीवन में सात रंगों को भरता है. जिसमें दोस्ती, मित्रता, नए संबंध, उल्लास, हर्ष और आनंद समाहित रहते हैं. पुराने संबंधों का नवीनीकरण यार दोस्तों के बीच गपशप खाना-पीना और उठना बैठना और एक दूसरे को प्रेम और उमंग से रंग लगाना ही होली त्यौहार की प्रमुख विशेषता है. जिस तरह से संगीत में सात स्वर होते हैं. वैसे ही सात रंग प्रमुख माने गए हैं. इन सभी रंगों से मिलकर होली हमारे जीवन को उत्साह के रंग से भर देती है.

Holi festival 2023
कब मनाई जाएगी होली, जानिए शुभ मुहूर्त
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Published : Feb 3, 2023, 9:20 PM IST

Updated : Mar 7, 2023, 7:21 AM IST

कब मनाई जाएगी होली, जानिए शुभ मुहूर्त

रायपुर : ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि "साल 2023 में होलिका दहन 7 मार्च को शाम 6:24 से रात्रि 8:51 तक है. इस दिन होलिका दहन का कुल समय 2 घंटे 27 मिनट तक है. इस समय में होली की पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी. होलिका दहन के दिन 7 मार्च को भद्रा सुबह 5:15 तक है. ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा और होलिका दहन के अगले दिन 8 मार्च को होली का पर्व मनाया जाएगा.''

क्यों होता है होलिका दहन : ''8 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 7:42 बजे तक है. होली का महत्व भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया. होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था, इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रहलाद को आग में लेकर बैठ गई. भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रल्हाद बच गए और होलिका आग में जलकर मर गई. इस कारण हर साल होली पर्व के 1 दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है."


कैसे करें होलिका दहन के पहले पूजा : पंडित प्रियाशरण के मुताबिक ''होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिए निम्न सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए. एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल जैसे पके चने की बालियां, गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती है. इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी चीजें और अन्य खिलौने रख दिए जाते हैं. गोबर से बने चार मालाएं होती है. जिसमें पहली माला पितरों के नाम से, दूसरी माला हनुमान जी के नाम से, तीसरी माला शीतला माता के नाम से और चौथी माला घर परिवार के नाम की होती है. कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर 3 या 7 परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है.''


कैसे बनाएं होलिका : पंडित प्रियाशरण के अनुसार ''होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी और गोबर के कंडे से ढक दिया जाता है. इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से साल भर व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है. बुरी शक्तियां इस अग्नि में जलकर भस्म हो जाती है. होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उसे तिलक करने की परंपरा है, और इसे शुभ माना जाता है. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली के रूप में भी जानी जाती है.''


ये भी पढ़ें- जानिए फाल्गुन मास में कैसे बदल सकते हैं आप अपनी किस्मत


देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है पर्व : देश के अलग-अलग जगह में होली त्योहार को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवे दिन रंग पंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक जोरशोर से खेली जाती है. ब्रज क्षेत्र में होली को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. वही बरसाना में लठमार होली खेली जाती है. मथुरा और वृंदावन में होली का त्यौहार 15 दिनों तक मनाया जाता है. महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से होली खेलने की परंपरा है. दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में लोकगीतों का बहुत प्रचलन है, और होली को मालवा अंचल में भगोरिया के नाम से जाना जाता है.

कब मनाई जाएगी होली, जानिए शुभ मुहूर्त

रायपुर : ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि "साल 2023 में होलिका दहन 7 मार्च को शाम 6:24 से रात्रि 8:51 तक है. इस दिन होलिका दहन का कुल समय 2 घंटे 27 मिनट तक है. इस समय में होली की पूजा होगी और फिर होलिका में आग लगाई जाएगी. होलिका दहन के दिन 7 मार्च को भद्रा सुबह 5:15 तक है. ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा और होलिका दहन के अगले दिन 8 मार्च को होली का पर्व मनाया जाएगा.''

क्यों होता है होलिका दहन : ''8 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 7:42 बजे तक है. होली का महत्व भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया. होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था, इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रहलाद को आग में लेकर बैठ गई. भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रल्हाद बच गए और होलिका आग में जलकर मर गई. इस कारण हर साल होली पर्व के 1 दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है."


कैसे करें होलिका दहन के पहले पूजा : पंडित प्रियाशरण के मुताबिक ''होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिए निम्न सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए. एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल जैसे पके चने की बालियां, गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती है. इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी चीजें और अन्य खिलौने रख दिए जाते हैं. गोबर से बने चार मालाएं होती है. जिसमें पहली माला पितरों के नाम से, दूसरी माला हनुमान जी के नाम से, तीसरी माला शीतला माता के नाम से और चौथी माला घर परिवार के नाम की होती है. कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर 3 या 7 परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है.''


कैसे बनाएं होलिका : पंडित प्रियाशरण के अनुसार ''होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी और गोबर के कंडे से ढक दिया जाता है. इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से साल भर व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है. बुरी शक्तियां इस अग्नि में जलकर भस्म हो जाती है. होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उसे तिलक करने की परंपरा है, और इसे शुभ माना जाता है. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली के रूप में भी जानी जाती है.''


ये भी पढ़ें- जानिए फाल्गुन मास में कैसे बदल सकते हैं आप अपनी किस्मत


देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है पर्व : देश के अलग-अलग जगह में होली त्योहार को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवे दिन रंग पंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक जोरशोर से खेली जाती है. ब्रज क्षेत्र में होली को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. वही बरसाना में लठमार होली खेली जाती है. मथुरा और वृंदावन में होली का त्यौहार 15 दिनों तक मनाया जाता है. महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से होली खेलने की परंपरा है. दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में लोकगीतों का बहुत प्रचलन है, और होली को मालवा अंचल में भगोरिया के नाम से जाना जाता है.

Last Updated : Mar 7, 2023, 7:21 AM IST
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