रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सिद्ध पीठ मां महामाया मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी के आसपास कराया गया था. हैहयवंशी राजाओं के शासनकाल में 36 किले के निर्माण के साथ ही 36 जगहों पर मां महामाया का मंदिर बनाया गया था. हैहयवंशी राजाओं की कुलदेवी मां महामाया हैं. मंदिर पूरी तरह तांत्रिक विधि से निर्माण कराया गया है. यहां हैहयवंशी राजा तंत्र-मंत्र साधना करते थे.
आज भी इस प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर में नवरात्र के समय चकमक पत्थर की चिंगारी से नवरात्र की ज्योति जलाई जाती है. शारदीय नवरात्र हो या फिर चैत्र नवरात्रि कुंवारी कन्या जिसकी उम्र 10 साल से कम होती है, उसे देवी स्वरूपा मानकर उन्हीं के हाथों नवरात्र की पहली ज्योत प्रज्ज्वलित कराई जाती है.
नवरात्र में उमड़ती है भीड़ : रायपुर में कई देवी मंदिर हैं, जिनमें से एक मां महामाया का मंदिर है. इस मंदिर को सिद्धपीठ मां महामाया देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में दूरदराज के श्रद्धालु भी हजारों की तादाद में इस मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. ऐसा कहा जाता है कि मां के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें कभी खाली नहीं जातीं. मां भक्तों की झोली जरूर भर देती हैं. मां महामाया काली का रूप हैं. इसलिए इस मंदिर में काली माता, महालक्ष्मी और माता समलेश्वरी तीनों की पूजा-आराधना एक साथ होती है .समलेश्वरी और महामाया मंदिर का आधार स्तंभ देखने से प्रतीत होता है कि इसमें की गई नक्काशी और कलाकृति काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है.
हैहयवंशीय राजाओं ने कराया था निर्माण : ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान सिद्ध पीठ महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि हैहयवंशीय राजाओं के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है. उन्होंने बताया कि आठवीं शताब्दी के आसपास इन मंदिरों का निर्माण हैहयवंशीय राजाओं ने कराया था. मां महामाया हैहयवंशीय राजाओं की कुलदेवी हैं. ये राजा यहां तंत्र-मंत्र साधना करते थे. महामाया मंदिर का गर्भगृह और गुंबद का निर्माण श्री यंत्र के रूप में हुआ, जो कि स्वयं में महालक्ष्मी का रूप है. पंडित शुक्ला बताते हैं कि वर्तमान समय में मां महालक्ष्मी मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा-आराधना एक साथ की जाती है.
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चकमक पत्थर से जलती है ज्योत : मां महामाया मंदिर समिति के सदस्य विजय कुमार झा कहते हैं कि शारदीय नवरात्र या फिर चैत्र नवरात्र के समय कुंवारी कन्या, जिसकी उम्र 10 साल से कम होती है उसे देवी स्वरूपा मानकर उनके हाथों से नवरात्र की प्रथम ज्योत प्रज्ज्वलित कराई जाती है. इसके बाद दूसरे ज्योति कलश को प्रज्ज्वलित किया जाता है. वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिस तरह से बस्तर दशहरा में काछन देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. उसके बाद ही बस्तर दशहरे का आरंभ होता है. इसके साथ ही मंदिर में ज्योत जलाने के लिए किसी लाइटर या माचिस का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि चकमक पत्थर की चिंगारी से ज्योत प्रज्ज्वलित किया जाता है.
पूरी होती है हर मुराद : इस प्राचीन और ऐतिहासिक सिद्धपीठ मां महामाया मंदिर के बारे में भक्तजन और श्रद्धालु बताते हैं कि मंदिर काफी पुराना और ऐतिहासिक है. मां महामाया लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली देवी मानी जाती हैं. सिद्ध पीठ मां महामाया के मंदिर में राजधानी सहित दूरदराज के श्रद्धालु भी शारदीय और चैत्र नवरात्र में हजारों की संख्या में अपनी पीड़ा और मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि नि:संतान दंपती माता के द्वार पर पहुंचता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है.