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Epiphany Day 2023 : इपिफनी डे का इतिहास और मान्यताएं - क्यों मनाया जाता है इपिफिनी डे

इपिफनी डे या फीस्ट ऑफ थ्री किंग्स प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है. यदि हिन्दी में इसे अनुवादित करें तो तीन राजाओं की दावत कहा Epiphany Day 2023 जाएगा. यह उत्सव फेस्टा डोस रीस या थ्री किंग्स डे या दी इपिफ़नी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इन तीन अलग-अलग नामों का मतलब प्रभूप्रकाश या आविर्भाव होता है, जिसका तात्पर्य ईसा मसीह का जन्मोत्सव Epiphany Day theme है. जो 6 जनवरी को मनाया जाता है. यह उत्सव उत्तरी गोवा के वेरेन और दक्षिण गोवा के चन्दोर और कॅन्सवूलीम में अधिक मनाया जाता है. इस उत्सव को ईसाई धर्म मानने और ना मानने वाले सभी लोग मनाते हैं. गोवा के प्रसिद्ध चर्च "सेंचुरी ओल्ड स्टोन चॅपेल ऑफ नोस्सा सेन्रा डोस रेमेडिओस" जिसे Lady of Cures Church के नाम से भी जानते है इस जगह में जाकर बड़े उल्लास के मनाया जाता है.

Epiphany Day 2023
क्यों मनाया जाता है इपिफिनी डे
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Published : Jan 6, 2023, 3:59 PM IST

रायपुर / हैदराबाद : भारतीय मूल के गोआ निवासी जो कंसौलीं, अरोस्सीम और कुएलिम के अंतर्गत आते है. इस Epiphany Day 2023 को धूमधाम से मनाते हैं. इसी समुदाय के लोगों ने गोवा में बने Lady of Cures Church के निर्माण में बहुत सहायता की थी. इस उत्सव की तैयारी लगभग साल भर से चलती रहती है. तैयारी अंतिम चरण में तब आती है ,जब तीन किंग्स बनाए जाने के लिए तीन युवा लड़कों का चयन किया जाता है.चर्च में मनायें जाने वालें इस उत्सव का अपना ही महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि "दी लेडी ऑफ माउंट" लोगों की संरक्षक के रूप में जानी जाती है. लेडी ऑफ माउंट प्रजनन की देवी के रूप में भी पूजी जाती है. शादीशुदा जोड़े जिन्हें बच्चे ना होने की समस्या होती है, उन्हें प्रजनन की देवी लेडी ऑफ माउंट की पूजा करने की सलाह दी जाती है. चमत्कारिक इलाज के लिए ऐसे जोड़े जब बच्चे की चाहत करते हैं, तब वें लोग इन देवी की उपासना करते है. मान्यता है कि चॅपेल में सच्चे दिल से देवी की आराधना करने वालें अनुयाइयों की वह हर प्रार्थना सुनती Epiphany Day history है.

क्यों मनाया जाता है इपिफिनी डे : थ्री किंग्स उत्सव मुख्यतः लेडी ऑफ माउंट की पूजा के लिए ही मनाया जाता (why celebrate Epiphany Day) है. अनुयायी देवी की प्रतिमा को फूल, फूलों के हार, सोने और आभूषणों से सजाते हैं . आभार के प्रतीक के स्वरूप अपनी ओर से कई भेंट चढ़ाते हैं .हर वर्ष "दी लिट्ल स्टोन चॅपेल ऑफ नोस्सा सेन्रा डोस रीस" में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं. लेडी ऑफ माउंट के प्रति अपना आभार जताने के लिए जो उनके लिए प्रेम और विश्वास के प्रकाशस्तंभ के समान है. इस स्थान में लोग मिलकर हर्ष और उल्लास के साथ यह पर्व मनाते हैं.

कितने दिन चलता है उत्सव : नौ दिनों तक चलने वाले उत्सव का आखिरी दिन रंगारंग होता है. तीन राजाओं के लिए शहर से तीन 8-10 वर्ष के बच्चों को राजा बनाया जाता है. उन्हें राजसी परिवेश देने हेतु असल राजा के कपड़े पहनाएं जाते हैं. कपड़ों के साथ राजाओं की तरह ही इन तीनों बच्चों को आभूषणों से सजाया जाता है. इसके बाद तीनों राजाओं की सवारी घोड़ें में तीन अलग-अलग रास्तों से शुरू होती है. राजाओं के इस क्षेत्र में रहने वालें सभी लोग राजा की प्रजा के भांति इस यात्रा में शामिल होते हैं. राजाओं के घोड़ों के आगे ड्रम लिए बच्चे चलते हैं. तीनों राजाओं की यह यात्रा भगवान "बालक यीशू" को आभार स्वरूप भेंट देने के लिए होती है. जो एक पवित्र हिल पर आकर खत्म होती Epiphany Day significance है.

ये भी पढ़ें- साल की पहली पूर्णिमा पर हरिद्वार में उमड़ा जनसैलाब

क्या है पुरानी मान्यता : ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ी के पास एक बड़ी चट्टान पर एक बालक और एक औरत के पैरों के निशान है, जो मदर मैरी और भगवान यीशू Mother Mary and Lord Jesus के हैं. जो यात्रा के दौरान घोड़ों को आराम देने के लिए इस स्थान पर रुके थे. इसी हिल के साथ एक कहानी और भी जुड़ी है. वो ये है कि यह पहाड़ी रात को डरावनी हो जाती है. कहा जाता है कि महाराज शिवाजी और उनके सैनिक रात में मशाल लेकर चलते हैं और उनके चलने से होने वाली मार्च की आवाज पूरे इलाके में सुनाई देती है, इसलिए इस त्योहार के बाद यह चर्च पूरी तरह से सूना हो जाता है. इसी वजह से इस चर्च में कोई पादरी भी नहीं Epiphany Day theme रुकता.

रायपुर / हैदराबाद : भारतीय मूल के गोआ निवासी जो कंसौलीं, अरोस्सीम और कुएलिम के अंतर्गत आते है. इस Epiphany Day 2023 को धूमधाम से मनाते हैं. इसी समुदाय के लोगों ने गोवा में बने Lady of Cures Church के निर्माण में बहुत सहायता की थी. इस उत्सव की तैयारी लगभग साल भर से चलती रहती है. तैयारी अंतिम चरण में तब आती है ,जब तीन किंग्स बनाए जाने के लिए तीन युवा लड़कों का चयन किया जाता है.चर्च में मनायें जाने वालें इस उत्सव का अपना ही महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि "दी लेडी ऑफ माउंट" लोगों की संरक्षक के रूप में जानी जाती है. लेडी ऑफ माउंट प्रजनन की देवी के रूप में भी पूजी जाती है. शादीशुदा जोड़े जिन्हें बच्चे ना होने की समस्या होती है, उन्हें प्रजनन की देवी लेडी ऑफ माउंट की पूजा करने की सलाह दी जाती है. चमत्कारिक इलाज के लिए ऐसे जोड़े जब बच्चे की चाहत करते हैं, तब वें लोग इन देवी की उपासना करते है. मान्यता है कि चॅपेल में सच्चे दिल से देवी की आराधना करने वालें अनुयाइयों की वह हर प्रार्थना सुनती Epiphany Day history है.

क्यों मनाया जाता है इपिफिनी डे : थ्री किंग्स उत्सव मुख्यतः लेडी ऑफ माउंट की पूजा के लिए ही मनाया जाता (why celebrate Epiphany Day) है. अनुयायी देवी की प्रतिमा को फूल, फूलों के हार, सोने और आभूषणों से सजाते हैं . आभार के प्रतीक के स्वरूप अपनी ओर से कई भेंट चढ़ाते हैं .हर वर्ष "दी लिट्ल स्टोन चॅपेल ऑफ नोस्सा सेन्रा डोस रीस" में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं. लेडी ऑफ माउंट के प्रति अपना आभार जताने के लिए जो उनके लिए प्रेम और विश्वास के प्रकाशस्तंभ के समान है. इस स्थान में लोग मिलकर हर्ष और उल्लास के साथ यह पर्व मनाते हैं.

कितने दिन चलता है उत्सव : नौ दिनों तक चलने वाले उत्सव का आखिरी दिन रंगारंग होता है. तीन राजाओं के लिए शहर से तीन 8-10 वर्ष के बच्चों को राजा बनाया जाता है. उन्हें राजसी परिवेश देने हेतु असल राजा के कपड़े पहनाएं जाते हैं. कपड़ों के साथ राजाओं की तरह ही इन तीनों बच्चों को आभूषणों से सजाया जाता है. इसके बाद तीनों राजाओं की सवारी घोड़ें में तीन अलग-अलग रास्तों से शुरू होती है. राजाओं के इस क्षेत्र में रहने वालें सभी लोग राजा की प्रजा के भांति इस यात्रा में शामिल होते हैं. राजाओं के घोड़ों के आगे ड्रम लिए बच्चे चलते हैं. तीनों राजाओं की यह यात्रा भगवान "बालक यीशू" को आभार स्वरूप भेंट देने के लिए होती है. जो एक पवित्र हिल पर आकर खत्म होती Epiphany Day significance है.

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क्या है पुरानी मान्यता : ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ी के पास एक बड़ी चट्टान पर एक बालक और एक औरत के पैरों के निशान है, जो मदर मैरी और भगवान यीशू Mother Mary and Lord Jesus के हैं. जो यात्रा के दौरान घोड़ों को आराम देने के लिए इस स्थान पर रुके थे. इसी हिल के साथ एक कहानी और भी जुड़ी है. वो ये है कि यह पहाड़ी रात को डरावनी हो जाती है. कहा जाता है कि महाराज शिवाजी और उनके सैनिक रात में मशाल लेकर चलते हैं और उनके चलने से होने वाली मार्च की आवाज पूरे इलाके में सुनाई देती है, इसलिए इस त्योहार के बाद यह चर्च पूरी तरह से सूना हो जाता है. इसी वजह से इस चर्च में कोई पादरी भी नहीं Epiphany Day theme रुकता.

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