रायपुर: बुधवार को हसदेव अरण्य के जंगल-जमीन को बचाने के संघर्ष पर ग्रामीणों ने राजधानी में प्रेस वार्ता की. इसमें ग्रामीणों ने बताया कि कोरबा , सरगुजा और सूरजपुर जिले की सीमाओं में स्थित हसदेव अरण्य क्षेत्र कोल खनन परियोजना के खिलाफ वे पिछले 52 दिनों से अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.
ग्रामीणों का आरोप है कि उनका क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल है. पेशा कानून 1996 के तहत किसी भी कानून में भूमि अधिग्रहण के पूर्व ग्राम सभा की सहमति आवश्यक है. लेकिन भूमि अधिग्रहण गैरकानूनी तरीके से बिना ग्रामसभा सहमति के किया जा रहा है.
ग्रामीणों ने फर्जी प्रस्ताव बनाने का लगाया आरोप
प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी ने उनके ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाया है. जिस पर जिला प्रशासन ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है. इसी प्रकार पातुरिया गिरमुडी कोल ब्लॉक भी वर्तमान सरकार ने अदानी कंपनी को देकर खनन के लिए आवश्यक स्वीकृति की प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाया है. जबकि विपक्ष में रहकर हसदेव अरण्य में ना सिर्फ खनन परियोजनाओं का विरोध किया है बल्कि आज आंदोलनरत ग्राम सभाओं का भी समर्थन किया गया था.
ग्रामीणों ने सरकार पर नजरअंदाज करने का लगाया आरोप
ग्रामीणों का आरोप है कि संपूर्ण हसदेव अरण्य वर्ष 2009 में नो-गो क्षेत्र घोषित कर कानून पर प्रतिबंध किया गया था. लेकिन वर्तमान मोदी सरकार ने इस संपूर्ण क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को नजरअंदाज कर सिर्फ खनन कंपनियों के मुनाफे के लिए सौंप दिया है. वहीं वर्ष 2015 में हसदेव अरण्य कि 20 ग्राम सभाओं ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव कर हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध करते हुए प्रस्ताव केंद्र मंत्री और प्रधानमंत्री को सौंपा था. लेकिन उस प्रस्ताव पर भी ध्यान नहीं दिया गया.
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हसदेव अरण्य के ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनकी बात नहीं सुनी जाती तब तक वे इसी तरह सरकार के खिलाफ धरना देते रहेंगे.