रायपुर: सनातन परंपरा में गुरु का महत्व ईश्वर से भी बढ़कर बताया गया है. गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागे पाउ...इस मंत्र में गुरु को सर्वोपरि बताया गया है. शास्त्रों में भी गुरु की महिमा अपरिमित बताई गई है. गुरुजन अपने शिष्यों को जीवन के उच्चतम मानदंडों पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. जीवन में सर्वप्रथम गुरु माता को माना गया है. इसके बाद पिता और उसके बाद शिक्षकों या आचार्यों को गुरु माना गया है.
कब है गुरु पूर्णिमा: हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है. इस साल गुरु पूर्णिमा सोमवार, 3 जुलाई 2023 को मनाई जाएगी. इस साल आषाढ़ पूर्णिमा तिथि रविवार, 2 जुलाई 2023 को रात 08 बजकर 21 मिनट से शुरु होगी. जो सोमवार 3 जुलाई 2023 शाम 05 बजकर 08 मिनट तक रहेगी.
कैसी हुई गुरु पूर्णिमा की शुरुआत: गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत महर्षि वेद व्यास के 5 शिष्यों द्वारा की गई. आषाढ़ पूर्णिमा के दिन को महर्षि वेद व्यास का जन्म दिवस माना जाता है. हिंदू धर्म में महर्षि वेद व्यास को बह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है. कहा जाता है कि आषाढ़ माह के इस दिन महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों और ऋषि-मुनियों को श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया. तब से ही महर्षि वेद व्यास के 5 शिष्यों ने इस दिन गुरु पूजन करने की परंपरा की शुरुआत की. इसके बाद से हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा.
गुरु पूर्णिमा क्यों है खास: यह पर्व गुरुजनों के प्रति आस्था श्रद्धा स्नेह और सम्मान व्यक्त करने का दिन माना गया है. इस दिन गुरुजनों का सानिध्य प्राप्त कर उन्हें दान पुण्य अर्पित चाहिए. यह पावन पर्व मूल नक्षत्र ब्रह्म योग, आनंद योग बालव और विशकुंभकरण के शुभ प्रभाव में 3 जुलाई को मनाया जाएगा. यह दिन सन्यासियों का चातुर्मास प्रारंभ तिथि भी मानी जाती है. इसे आषाढ़ी पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, कोकिला व्रत और गौरी व्रत की समाप्ति की तिथि के रूप में भी जाना जाता है.
गुरु का जीवन में होता है खास महत्व: गुरु पूर्णिमा वास्तव में हमारे जीवन को ज्ञान और विद्या से प्रकाशित करते हैं. हमारे संस्कार चरित्र नैतिक गुण क्रियाविधि जीवन पद्धति जीवन के कर्म और दैनिक गतिविधियों का हमारे गुरु की छाया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. आज के दिन समस्त शैक्षणिक, आध्यात्मिक, योग गुरुओं का सम्मान और आदर करना चाहिए.
गुरु मंत्र को साधने से सिद्ध होते हैं कार्य: अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि इस शुभ दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास का भी जन्म हुआ था. इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. जिन जातकों के कोई गुरु नहीं है. वह महर्षि वेदव्यास, श्री हनुमान जी को गुरु मानकर इस गुरु पूर्णिमा के पर्व को मना सकते हैं. इस शुभ दिन दान, पुण्य, मंत्र जाप, यज्ञ मंत्र लेना बहुत ही पवित्र माना गया है. गुरु द्वारा दिए गए अभीष्ट मंत्र को सिद्ध करने के लिए यह दिन पवित्र माना गया है. शुभ दिन गुरु मंत्र का पाठ और लेखन करने से अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं."
संगम तट पर स्नान का है विशेष महत्व: इस दिन सरोवर, नदी, तालाब आदि में स्नान करने का विशेष महत्व माना गया है. संगम तट पर सुबह स्नान करना बहुत ही शुभ मानते हैं. यह पूर्णिमा सर्वश्रेष्ठ पूर्णिमा मानी जाती है. सनातन परंपरा में समस्त गुरुजनों को केंद्रक माना गया है. हमारे वर्तमान जीवन और भविष्य की पीढ़ियों को गुरुजन अपने ज्ञान, विद्या, बुद्धि के प्रकाश से आलोकित करते हैं. गुरुजनों का प्रभाव हमारे जीवन पर सदाकाल के लिए पड़ता है.