रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इन दिनों अपराध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है. छोटी घटनाओं से लेकर बड़ी वारदातों में शामिल जो भी चेहरे सामने आ रहे हैं, उसमें अधिकांश 19 से कम आयु वर्ग के युवा शामिल होते (Minors involved in most of crimes in Raipur ) हैं. इंटरनेट मीडिया और महंगे शौक बच्चों को अपराध की दुनिया में धकेल रहा है. पढ़ने-लिखने की उम्र में नाबालिगों के अपराध में शामिल होने से पुलिस की भी चिंता बढ़ गई है. इसके जद में आने का सबसे बड़ा कारण नशा और क्राइम सीरीज बताया जा रहा है.
नशे की जद में नाबालिग: रायपुर में नशे का सेवन एक तरह से पैशन बनता जा रहा है. शाम ढ़लते ही शहर की कालोनियों, चौक-चैराहों समेत कई ऐसे इलाके हैं, जहां नाबालिगों की चौकड़ी आसानी से देखी जा सकती है. नशे की हालत में यह लोग अपराध व वहशीपन हरकत करने पर उतारू हो जाते हैं. कुछ दिन पहले गुढ़ियारी में 19 वर्ष के विषेक शेन्द्रे का शव जिन परिस्थितियों में मिला था, उससे स्पष्ट था कि शव के साथ कितनी नृशंसता की गई थी. मृतक के कपड़ों से उसके हाथ पैर बांध दिए गए थे. रेलवे ट्रैक पर लिटाकर उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किया गया था. इसके बाद भी वह भाग ना सके. इसलिए उसके ऊपर बड़ा सा पत्थर रख दिया गया था. विषेक का शव जिन परिस्थितियों में मिला, उसे देखकर हर कोई हिल गया. यह क्रूरता दिखाने वाले 4 में से तो दो नाबालिग ही थे.
नाबालिग इस तरह के केस में हैं शामिल:
केस- 1 : गुढ़ियारी थाना क्षेत्र में रेलवे ट्रैक पर 21 मई को एक युवक का शव मिला. युवक की पहचान 19 वर्ष के विशेष शेन्द्रे के रूप में हुई. पुलिस को पहले यह आत्महत्या का मामला लगा. लेकिन जब शव की जांच की गई तो पता चला कि उसकी हत्या की गई है. इस पूरी वारदात का मास्टरमाइंड नाबालिक था.
केस - 2 : माना में 16 मई को अनाज कारोबारी से 50 लाख की डकैती हुई. इसमें 15 आरोपियों में से चार नाबालिक निकले. इन्हें अलग-अलग काम दिया गया था. नाबालिगों पर बाइक से कारोबारी को पीछे गिराने का काम किया. इसके बाद कारोबारी के एटीएम से इन्होंने पैसे भी निकाले थे.
केस -3 :अप्रैल में अलग-अलग थाना क्षेत्रों से बाइक चोरी के आरोपी पकड़े गए थे. उनके पास से 15 गाड़ियां बरामद की गई. चोरी में 6 नाबालिग शामिल हुए. उन्होंने स्वीकार किया कि पैसों के लिए उन्होंने यह चोरियां की.
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क्या कहते हैं मनोचिकित्सक: मनोचिकित्सक डॉ. मनीषा मेरौल कहती हैं, "नाबालिगों के अपराध में शामिल होने की बात करें तो इसका सबसे बड़ा कारण है. इनके पास जिस तरह से एक्स्पोजर आ रहा है. बच्चों के अंदर एग्रेसन बहुत ज्यादा है. बच्चों के अंदर एनर्जी बहुत ज्यादा होती है. बच्चे अपनी एनर्जी या स्टेमना को गलत दिशा दे देते हैं. सोशल मीडिया में जिस तरह के प्रोग्राम्स चल रहे हैं या जिस तरह के शोज आते हैं. कंप्यूटराइज्ड या मोबाइल्स में गेम्स आ रहे हैं. जिसमें बंदूक, चाकू या तोड़फोड़ आते हैं. उससे बच्चों के अंदर मारपीट की भावना आ रही है. स्कूल कॉलेज के बच्चे चाकू लेकर घूम रहे हैं. ज्यादातर बच्चे नशे की गिरफ्त में आ गए हैं. मेरे पास काउंसलिंग के लिए आने वाला कॉलेज का हर दूसरा लड़का 99 परसेंट टाइम किसी न किसी ड्रग का एडिक्ट है. जिसमें स्पेशली गांजा. गांजे की जद में बालिग और नाबालिग दोनों शामिल है. बहुत से पैरेंट्स भी नशा करते हैं. जिसका असर बच्चो में दिखाई देता है. बच्चे जब नशा करता है तो उसका दिमाग आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है. नशे के बाद उसके मन में ये धरणा आ जाती है कि मैं पॉवरफुल हूं. क्योंकि नशे के बाद उनके विचारों और नैतिकता पर कंट्रोल नहीं रहता."
क्या कहते हैं अफसर: सिटी एएसपी आकाश राव गिरिपुंजे बताते हैं, "ऐसे किसी भी प्रकार के प्रकरण चाहे मारपीट का मामला हो या कोई और मामला. नाबालिगों की संलिप्तता इसमें पाई जाती है. उस संदर्भ में विधिक संबंधी प्रावधान है. उन्हें संप्रेक्षण गृह भेजना है. जितने भी प्रकरण में नाबालिगों के शामिल होने के मामले आए हैं. उनके विरुद्ध विधि संवत कार्रवाई की जाती है. नाबालिगों के हिरासत को लेकर भी विधिसंवत कार्रवाई करते हैं. यदि कोई नशे में पाया जाता है तो उसका मेडिकल कराया जाता है. ज्यादातर मामलों में नाबालिग नशे में होते हैं. पुलिस नाबालिगों से होने वाले अपराध का भी पता लगाती. अपराध रोकने के लिए सोशल साइट्स के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का काम भी काम करते हैं. नशे से दूरी बनाने के लिए भी विभिन्न माध्यमों से जागरूक करने का काम पुलिस करती है."