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आजादी की लड़ाई के योद्धा ठाकुर प्यारेलाल सिंह

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारेलाल सिंह का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा है.छत्तीसगढ़ में उन्हें कई आंदोलनों के लिए भी याद किया जाता है.छात्र जीवन से लेकर अपने अंतिम समय तक वे अपने आजाद विचार से जनमानस में ऊर्जा भरते रहे.

freedom fighters of chhattisgarh
आजादी की लड़ाई के योद्धा ठाकुर प्यारेलाल सिंह
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Published : Aug 8, 2022, 2:30 PM IST

Updated : Aug 13, 2022, 11:27 AM IST

रायपुर : आजादी के 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा (Freedom Fighter Thakur Pyarelal Singh) है. इस खास मौके पर हम आपको ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हीं में से एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारेलाल सिंह है. 21 दिसंबर 1891 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म दुर्ग जिले के अंतर्गत राजनांदगांव तहसील के देहान नामक गांव में हुआ था.उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजनांदगांव में हुई और हाईस्कूल की शिक्षा रायपुर गवर्नमेंट हाईस्कूल से प्राप्त की. ठाकुर प्यारेलाल ने हिस्लाप कॉलेज, नागपुर से इण्टर की परीक्षा पास की. इसी बीच पिता ठाकुर दीनदयाल सिंह की मृत्यु से शिक्षा में व्यवधान पड़ा, बाद में बी.ए. पास करने की बाद ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1916 में वकालत पास की.

कब आंदोलन से जुड़ें : 1900 के शुरुआती दौर में ठाकुर प्यारेलाल सिंह क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए .सन 1905 में राजनांदगांव में ठाकुर प्यारे लाल सिंह के नेतृत्व में छात्रों की पहली हड़ताल हुई. यह देश में छात्रों की पहली हड़ताल मानी जाती है. सन् 1906 से ही ठाकुर प्यारे लाल बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और क्रांतिकारी साहित्य का प्रचार करते हुए अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. उसी समय ठाकुर प्यारेलाल ने स्वदेशी वस्त्र का व्रत ले लिया और विद्यार्थियों का संगठन का कार्य शुरु किया. अपने विद्यार्थी जीवन में ही यानी साल 1909 में ठाकुर प्यारेलाल ने राजनांदगांव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की. यह पुस्तकालय - क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार प्रसार का अच्छा माध्यम सिद्ध हुआ. आगे चलकर शासन ने इस पुस्तकालय को जब्त कर लिया.

कम समय में कमाया नाम : सन् 1916 में ठाकुर प्यारेलाल ने वकालत शुरू कर दी. पहले उन्होंने दुर्ग में वकालत शुरू की. फिर रायपुर में वकालत का काम शुरू किया .कम समय में ही ठाकुर प्यारेलाल की गिनती प्रखर और प्रतिभाशाली वकीलों में आने लगी. कांग्रेस के महान नेता गोपालकृष्ण गोखले जब रायपुर आए थे. तब छत्तीसगढ़ के अनेक प्रबुद्ध नेताओं को आमंत्रित किया गया. उनमें राजनांदगांव से ठाकुर प्यारेलाल को भी आमंत्रित किया गया था. पंडित वामनराव लाखे के निवास स्थान पर गोखले जी के नेतृत्व में 'स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' - इस संदेश का गांव-गांव में प्रचार की रूपरेखा तैयार की गई. सन् 1923 में झण्डा सत्याग्रह (flag satyagraha in chhattisgarh) हुआ तब प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिले से सत्याग्रही भेजने का कार्य ठाकुर साहब को सौंपा गया.

जब लगा था भाषण पर प्रतिबंध : 1924 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने राजनांदगाँव के मिल मजदूरों को लेकर आंदोलन किया. इस दौरान अनेक गिरफ्तारियां हुईं. अंग्रेज ठाकुर प्यारेलाल से इतना परेशान हो गए कि उन्होंने ठाकुर जी के भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया . उनका राजनांदगांव स्टेट से निकाला कर दिया. तब वे रायपुर में स्थायी रूप से बस गए. इसके बाद अछूतोद्धार कार्य में पं. सुंदरलाल शर्मा का सहयोग दिया

कब आए गांधीजी के संपर्क में : 1930 में गाँधीजी के आदेशानुसार कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया. क्षेत्रीय आधार पर अलग ढंग से इस आंदोलन का क्रियान्वयन किया जाने लगा. ठाकर प्यारे लाल ने दुकानों पर धरना देने वाले स्वयं सेवकों एवं सत्याग्रहियों को संगठित किया. वे स्वयं पिकेटिंग में सम्मिलित हो गए. किसानों में लगान वृद्धि एवं नवीन बंदोबस्त के प्रति तीव्र असंतोष व्याप्त था. उन्होंने एक नया आंदोलन चलाया . ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन करने के लिए ठाकुर जी को 1 वर्ष की सजा देकर सिवनी जेल में भेज दिया. गाँधी-इरविन समझौते के बाद इन्हें अन्य राजबंदियों के साथ रिहा कर दिया गया.


जब्त की गई थी वकालत की सनद : वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया" 1932 में आंदोलन के दूसरे चरण में विदेशी बहिष्कार आंदोलन में पंडित रविशंकर शुक्ल के बाद ठाकुर साहब संचलाक बने. 26 जनवरी 1932 को ठाकुर साहब गांधी मैदान में सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम संबंधी भाषण देते हुए गिरफ्तार कर लिए गए. उन्हें 2 वर्ष की सजा और जुर्माना किया गया. जुर्माना न देने पर उनकी संपत्ति कुर्क कर ली गई. इसके साथ ही वकालत की सनद भी जब्त कर ली गई. उन्हें जेल के क्लास-सी में रखा गया, मध्यप्रदेश के वे ही प्रथम वकील थे जिनकी सनद जब्त की गई. जेल से छूटने के बाद ठाकुर साहब उसी स्फूर्ति और लगन के साथ जनसेवा समेत संगठन के कार्य में जुट गए. 1933 में वे महाकौशल कांग्रेस कमेटी के मंत्री बने. 1937 तक इस पद पर रहकर उन्होंने पूरे प्रदेश का दौरा करके कांग्रेस को पुनः संगठित करने का प्रयास किया. 1936 में कांग्रेस टिकट पर मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए. 1937 में वे म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष बने. इस पद पर रहकर ठाकुर साहब राष्ट्रीय जागरण और हिन्दू-मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करने का प्रयास किया.छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की कमी की पूर्ति के लिए ठाकुर साहब की अध्यक्षता में 'छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना 1937 में की गई और छत्तीसगढ़ कॉलेज की नींव डाली गई.''

ये भी पढ़ें- जानिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रविशंकर शुक्ला की कहानी

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान : कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहकर जितने भी राष्ट्रीय आंदोलन हुए उसमें ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उन्होंने आम आदमी की स्वतंत्रता को लेकर जो काम किया. समाज के लिए काम किया. छत्तीसगढ़ में सहकारिता का अगर पुरोधा कहा जाए तो ठाकुर प्यारेलाल सिंह ही थे.उनके साथ वामन राव लाखे ने भी काम किया. स्वतंत्रता संग्राम के समय से लेकर स्वतंत्रता के बाद भूदान आंदोलन (Bhoodan movement after independence) में उन्होंने विनोबा भावे, जय प्रकाश नारायण के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. 1954 में जब वे जबलपुर के एक आंदोलन से पैदल यात्रा करके लौट रहे थे. ऐसे ही समय बीच में उन्हें हृदयाघात आया और उनका निधन हो गया. ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन में बसे एक सर्वमान्य नेता, छात्र, किसान, मजदूर जनआंदोलन के प्रणेता थे. वे सर्वोदय आंदोलन के प्रथम शहीद हैं. राष्ट्र निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

रायपुर : आजादी के 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा (Freedom Fighter Thakur Pyarelal Singh) है. इस खास मौके पर हम आपको ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हीं में से एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारेलाल सिंह है. 21 दिसंबर 1891 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म दुर्ग जिले के अंतर्गत राजनांदगांव तहसील के देहान नामक गांव में हुआ था.उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजनांदगांव में हुई और हाईस्कूल की शिक्षा रायपुर गवर्नमेंट हाईस्कूल से प्राप्त की. ठाकुर प्यारेलाल ने हिस्लाप कॉलेज, नागपुर से इण्टर की परीक्षा पास की. इसी बीच पिता ठाकुर दीनदयाल सिंह की मृत्यु से शिक्षा में व्यवधान पड़ा, बाद में बी.ए. पास करने की बाद ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1916 में वकालत पास की.

कब आंदोलन से जुड़ें : 1900 के शुरुआती दौर में ठाकुर प्यारेलाल सिंह क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए .सन 1905 में राजनांदगांव में ठाकुर प्यारे लाल सिंह के नेतृत्व में छात्रों की पहली हड़ताल हुई. यह देश में छात्रों की पहली हड़ताल मानी जाती है. सन् 1906 से ही ठाकुर प्यारे लाल बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और क्रांतिकारी साहित्य का प्रचार करते हुए अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. उसी समय ठाकुर प्यारेलाल ने स्वदेशी वस्त्र का व्रत ले लिया और विद्यार्थियों का संगठन का कार्य शुरु किया. अपने विद्यार्थी जीवन में ही यानी साल 1909 में ठाकुर प्यारेलाल ने राजनांदगांव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की. यह पुस्तकालय - क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार प्रसार का अच्छा माध्यम सिद्ध हुआ. आगे चलकर शासन ने इस पुस्तकालय को जब्त कर लिया.

कम समय में कमाया नाम : सन् 1916 में ठाकुर प्यारेलाल ने वकालत शुरू कर दी. पहले उन्होंने दुर्ग में वकालत शुरू की. फिर रायपुर में वकालत का काम शुरू किया .कम समय में ही ठाकुर प्यारेलाल की गिनती प्रखर और प्रतिभाशाली वकीलों में आने लगी. कांग्रेस के महान नेता गोपालकृष्ण गोखले जब रायपुर आए थे. तब छत्तीसगढ़ के अनेक प्रबुद्ध नेताओं को आमंत्रित किया गया. उनमें राजनांदगांव से ठाकुर प्यारेलाल को भी आमंत्रित किया गया था. पंडित वामनराव लाखे के निवास स्थान पर गोखले जी के नेतृत्व में 'स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' - इस संदेश का गांव-गांव में प्रचार की रूपरेखा तैयार की गई. सन् 1923 में झण्डा सत्याग्रह (flag satyagraha in chhattisgarh) हुआ तब प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिले से सत्याग्रही भेजने का कार्य ठाकुर साहब को सौंपा गया.

जब लगा था भाषण पर प्रतिबंध : 1924 में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने राजनांदगाँव के मिल मजदूरों को लेकर आंदोलन किया. इस दौरान अनेक गिरफ्तारियां हुईं. अंग्रेज ठाकुर प्यारेलाल से इतना परेशान हो गए कि उन्होंने ठाकुर जी के भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया . उनका राजनांदगांव स्टेट से निकाला कर दिया. तब वे रायपुर में स्थायी रूप से बस गए. इसके बाद अछूतोद्धार कार्य में पं. सुंदरलाल शर्मा का सहयोग दिया

कब आए गांधीजी के संपर्क में : 1930 में गाँधीजी के आदेशानुसार कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया. क्षेत्रीय आधार पर अलग ढंग से इस आंदोलन का क्रियान्वयन किया जाने लगा. ठाकर प्यारे लाल ने दुकानों पर धरना देने वाले स्वयं सेवकों एवं सत्याग्रहियों को संगठित किया. वे स्वयं पिकेटिंग में सम्मिलित हो गए. किसानों में लगान वृद्धि एवं नवीन बंदोबस्त के प्रति तीव्र असंतोष व्याप्त था. उन्होंने एक नया आंदोलन चलाया . ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन करने के लिए ठाकुर जी को 1 वर्ष की सजा देकर सिवनी जेल में भेज दिया. गाँधी-इरविन समझौते के बाद इन्हें अन्य राजबंदियों के साथ रिहा कर दिया गया.


जब्त की गई थी वकालत की सनद : वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया" 1932 में आंदोलन के दूसरे चरण में विदेशी बहिष्कार आंदोलन में पंडित रविशंकर शुक्ल के बाद ठाकुर साहब संचलाक बने. 26 जनवरी 1932 को ठाकुर साहब गांधी मैदान में सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम संबंधी भाषण देते हुए गिरफ्तार कर लिए गए. उन्हें 2 वर्ष की सजा और जुर्माना किया गया. जुर्माना न देने पर उनकी संपत्ति कुर्क कर ली गई. इसके साथ ही वकालत की सनद भी जब्त कर ली गई. उन्हें जेल के क्लास-सी में रखा गया, मध्यप्रदेश के वे ही प्रथम वकील थे जिनकी सनद जब्त की गई. जेल से छूटने के बाद ठाकुर साहब उसी स्फूर्ति और लगन के साथ जनसेवा समेत संगठन के कार्य में जुट गए. 1933 में वे महाकौशल कांग्रेस कमेटी के मंत्री बने. 1937 तक इस पद पर रहकर उन्होंने पूरे प्रदेश का दौरा करके कांग्रेस को पुनः संगठित करने का प्रयास किया. 1936 में कांग्रेस टिकट पर मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए. 1937 में वे म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष बने. इस पद पर रहकर ठाकुर साहब राष्ट्रीय जागरण और हिन्दू-मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करने का प्रयास किया.छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की कमी की पूर्ति के लिए ठाकुर साहब की अध्यक्षता में 'छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना 1937 में की गई और छत्तीसगढ़ कॉलेज की नींव डाली गई.''

ये भी पढ़ें- जानिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रविशंकर शुक्ला की कहानी

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान : कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहकर जितने भी राष्ट्रीय आंदोलन हुए उसमें ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उन्होंने आम आदमी की स्वतंत्रता को लेकर जो काम किया. समाज के लिए काम किया. छत्तीसगढ़ में सहकारिता का अगर पुरोधा कहा जाए तो ठाकुर प्यारेलाल सिंह ही थे.उनके साथ वामन राव लाखे ने भी काम किया. स्वतंत्रता संग्राम के समय से लेकर स्वतंत्रता के बाद भूदान आंदोलन (Bhoodan movement after independence) में उन्होंने विनोबा भावे, जय प्रकाश नारायण के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. 1954 में जब वे जबलपुर के एक आंदोलन से पैदल यात्रा करके लौट रहे थे. ऐसे ही समय बीच में उन्हें हृदयाघात आया और उनका निधन हो गया. ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन में बसे एक सर्वमान्य नेता, छात्र, किसान, मजदूर जनआंदोलन के प्रणेता थे. वे सर्वोदय आंदोलन के प्रथम शहीद हैं. राष्ट्र निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

Last Updated : Aug 13, 2022, 11:27 AM IST
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