रायपुर: हिंसा से कई दशक से झुलस रहे बस्तर में शांति के लिए लगातार कोशिश की जा रही है. इस कड़ी में नई शांति प्रक्रिया के सदस्यों ने पीड़ितों का रजिस्टर तैयार करने की अनूठी पहल शुरू की है. अब तक 5 हजार से ज्यादा लोगों ने अपना नाम दर्ज करा लिया है. खास बात है कि इन हिंसा पीड़ितों में दोनों पक्षों के लोग शामिल हैं. इससे पहले कोलंबिया जैसे मावोवाद से प्रभावित देशों में इस तरह का प्रयोग किया जा चुका है.
बस्तर में बन रहा है रजिस्टर
देश में पहला हिंसा पीड़ित रजिस्टर बस्तर में बनना शुरू हुआ है. इस प्रक्रिया में अहम रोल निभाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि शांति के लिए ये एक प्रयोग है. इससे कुछ देशों में सफलता मिली है. इसे यहां भी जमीन पर उतारने का प्रयास है. हालांकि, इसके स्वरूप में परिस्थिति के मुताबिक कुछ बदलाव भी किए गए हैं. जैसे कोलंबिया में बकायदा ऑफिस खोलकर पीड़ितों से संपर्क साधा गया था. यहां फोन लाइन के माध्यम से तीन भाषाओं हिदी, हल्बी और गोंडी में बातचीत कर पीड़ितों से संपर्क किया जा रहा है. फिलहाल, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर से ज्यादातर लोग संपर्क कर रहे हैं.
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क्या होगा इस रजिस्टर के बनने से ?
जब हमने जानना चाहा कि इस तरह के रजिस्टर या डाटा तैयार करने से क्या लाभ मिल सकता है? इस पर शुभ्रांशु इस चौधरी का कहना है कि इस रजिस्टर में हर तरफ के पीड़ित शामिल होंगे. उन्हें एक मंच पर लाया जाएगा और बातचीत का रास्ता खोजा जाएगा. 12 मार्च, जिस दिन गांधी जी ने दांडी यात्रा शुरू की थी, उसी दिन को याद करते हुए दंतेवाड़ा से रायपुर 390 किलोमीटर का पैदल मार्च किया जाएगा.
पैदलमार्च कर रायपुर पहुंचेंगे पीड़ित
बता दें कि गांधी जी ने भी 24 दिनों 390 किलोमीटर की यात्रा पूरी की थी. इस यात्रा में शामिल पीड़ित रायपुर में 'चैकलेमांदी' करेंगे. यानि शांति के लिए दोनों पक्ष के पीड़ित आपस में बातचीत करेंगे. इस बैठक गोपाल कृष्ण गांधी, पीवी राजगोपाल जैसी बड़ी हस्तियों ने भी शामिल होने की सहमति दी है. पिछले कई दशकों से रक्तरंजित बस्तर अब शांति की राह देख रहा है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि ये विक्टिम रजिस्टर का प्रयोग कितना कारगर साबित होता है.