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अश्विन अमावस्या पर ऐसे करें तर्पण, जिससे पितृ रहेंगे प्रसन्न

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Published : Oct 4, 2021, 5:18 PM IST

अश्विन अमावस्या (Ashwin Amavasya) का पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस दिन पितरों की विदाई (Pitru vidai) की जाती है. पितरों को सम्मान पूर्वक विदा किया जाता है. आज के दिन भोजन बनाने के बाद कौए, कुत्तों और गायों के लिए अलग से भोजन निकाला जाता है.

ashwin amavasya
अश्विन अमावस्या का पर्व

रायपुर: हस्त नक्षत्र ब्रह्मयोग(Brahmayoga) और इंद्र योग (Indra Yoga) में पितृ मोक्ष अमावस्या या सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या का श्राद्ध (Pitru Moksha Amavasya or Shradh of all Pitru Moksha Amavasya) पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं होती है उन सभी को भी आज के ही दिन तर्पण कर श्राद्ध किया जाता है. यह पितरखेदा बड़ अमावस (Pitrakheda Bad Amavas) के रूप में भी जाना जाता है.

6 अक्टूबर को अश्विन अमावस्या, ऐसे करें तर्पण

आज के दिन पितरों की विदाई (Father's Farewell) की जाती है. पितरों को सम्मान पूर्वक विदा किया जाता है. आज के दिन भोजन बनाने के बाद कौआ, कुत्ते और गायों के लिए अलग से भोजन निकाला जाता है. कौवा को यम को दूत कहा गया है. संपूर्ण पितृ पक्ष में कौवा को भोजन जरूर कराया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह भोजन पितरों तक पहुंचता है.

पितृ मोक्ष अमावस्या में दक्षिण दिशा का विशेष महत्व

पितृ मोक्ष अमावस्या में दक्षिण दिशा का विशेष महत्व है. आज के दिन दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर रखना चाहिए. पीपल के वृक्ष के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाए जाने का विधान है. इसी तरह सरसों के तेल से भी दीपक जलाया जा सकता है. सूक्ष्मजीवों जैसे चींटी आदि के लिए भी शक्कर मिश्रित आटा खिलाने का भी विधान है. जौ, आटा, तिल और चावल के पिंड से आज के दिन पितरों का तर्पण करना चाहिए. तीनों ही पदार्थ पितृ पक्ष में अच्छी मात्रा में उपयोग में लाए जाते हैं. श्वेत वस्त्र पहनकर पूर्व या दक्षिण दिशा में मुख रखकर तर्पण करना चाहिए. श्वेत वस्त्र पहनने से पितरों का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है. पितरों की विदाई विधि-विधान पूर्वक की जानी चाहिए.

इस दिन होता तर्पण श्राद्ध और दान

सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या 6 अक्टूबर के दिन दोपहर 4:34 तक की तिथि को रहेगी. इसके पूर्व ही तर्पण दान आदि करना शुभ रहेगा. आज के दिन ब्राह्मणों को बुलाकर यथोचित दक्षिणा देकर भोजन आदि कराना श्रेष्ठ माना गया है. ऋषि पितृ देव, पितृ मनुष्य पितृ, भूत पितृ व यम का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन प्रातः बेला में स्नान ध्यान योग आदि से निवृत्त होकर सात्विकता में जीवन जीते हुए समस्त पितरों का तर्पण श्राद्ध दान आदि कार्य करना चाहिए.

रायपुर: हस्त नक्षत्र ब्रह्मयोग(Brahmayoga) और इंद्र योग (Indra Yoga) में पितृ मोक्ष अमावस्या या सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या का श्राद्ध (Pitru Moksha Amavasya or Shradh of all Pitru Moksha Amavasya) पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं होती है उन सभी को भी आज के ही दिन तर्पण कर श्राद्ध किया जाता है. यह पितरखेदा बड़ अमावस (Pitrakheda Bad Amavas) के रूप में भी जाना जाता है.

6 अक्टूबर को अश्विन अमावस्या, ऐसे करें तर्पण

आज के दिन पितरों की विदाई (Father's Farewell) की जाती है. पितरों को सम्मान पूर्वक विदा किया जाता है. आज के दिन भोजन बनाने के बाद कौआ, कुत्ते और गायों के लिए अलग से भोजन निकाला जाता है. कौवा को यम को दूत कहा गया है. संपूर्ण पितृ पक्ष में कौवा को भोजन जरूर कराया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह भोजन पितरों तक पहुंचता है.

पितृ मोक्ष अमावस्या में दक्षिण दिशा का विशेष महत्व

पितृ मोक्ष अमावस्या में दक्षिण दिशा का विशेष महत्व है. आज के दिन दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर रखना चाहिए. पीपल के वृक्ष के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाए जाने का विधान है. इसी तरह सरसों के तेल से भी दीपक जलाया जा सकता है. सूक्ष्मजीवों जैसे चींटी आदि के लिए भी शक्कर मिश्रित आटा खिलाने का भी विधान है. जौ, आटा, तिल और चावल के पिंड से आज के दिन पितरों का तर्पण करना चाहिए. तीनों ही पदार्थ पितृ पक्ष में अच्छी मात्रा में उपयोग में लाए जाते हैं. श्वेत वस्त्र पहनकर पूर्व या दक्षिण दिशा में मुख रखकर तर्पण करना चाहिए. श्वेत वस्त्र पहनने से पितरों का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है. पितरों की विदाई विधि-विधान पूर्वक की जानी चाहिए.

इस दिन होता तर्पण श्राद्ध और दान

सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या 6 अक्टूबर के दिन दोपहर 4:34 तक की तिथि को रहेगी. इसके पूर्व ही तर्पण दान आदि करना शुभ रहेगा. आज के दिन ब्राह्मणों को बुलाकर यथोचित दक्षिणा देकर भोजन आदि कराना श्रेष्ठ माना गया है. ऋषि पितृ देव, पितृ मनुष्य पितृ, भूत पितृ व यम का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन प्रातः बेला में स्नान ध्यान योग आदि से निवृत्त होकर सात्विकता में जीवन जीते हुए समस्त पितरों का तर्पण श्राद्ध दान आदि कार्य करना चाहिए.

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