रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार से जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने के प्रयासों का सार्थक परिणाम अब दिखने लगा है. रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए किसान अब जैविक खेती को अपनाने लगे हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में बने गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट खाद का सहजता से उपयोग किया जा रहा है. बिलासपुर के कोटा ब्लॉक के सिलदहा, भैंसाझार और बछालीखुर्द गांव में 1 हजार 250 एकड़ में जैविक खेती हो रही है. इसके लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 10-12 हजार रुपए भी दिए जा रहे हैं.
किसानों को दी जा रही है जैविक हरी खाद
इस रकबे में HMT धान की जैविक खेती की जा रही है. इससे 13 हजार क्विंटल जैविक धान के उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है. किसानों के जैविक उत्पाद की ब्रांडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग की व्यवस्था भी की जाएगी. इन गांवों के किसान जैविक हरी खाद जैसे ढेंचा की बोनी और मथाई कर जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग धान के उत्पादन के लिए कर रहे हैं.
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5 से 6 हजार तक हो रही बचत
किसानों को 3.50 प्रतिशत नत्रजन, 0.70 प्रतिशत फॉस्फोरस और 1.30 प्रतिशत पोटाश मिलता है. हरी खाद का उपयोग करने से 60 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नत्रजन मिलता है. आमतौर पर कृषि वैज्ञानिकों ने धान की खेती में 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग किया जाता था, लेकिन जैविक खेती करने पर 3 बोरी यूरिया और 1.5 बोरी पोटाश की बचत हो रही है. जिसके कारण खेती की लागत में 5 से 6 हजार रुपए की कमी आई है.
किसानों को दिया जाएगा जैविक प्रमाणपत्र
कृषि विभाग ने कोटा विकासखंड के तीन गांव में 1 हजार 250 एकड़ रकबे में जैविक फसल प्रदर्शन किया जा रहा है. परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक उत्पाद को प्रमाणित कर किसानों को जैविक प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा, ताकि उनके कृषि उत्पाद को बेहतर बाजार मूल्य मिल सके.