रायपुर: केंद्र सरकार के लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से किसान जागृति पखवाड़ा के तहत छत्तीसगढ़ में खेती बचाओ यात्रा 8 जनवरी से जारी है. यात्रा की शुरुआत रायपुर से किसानों की एक जत्थे के नई दिल्ली कूच करने से हुई थी. प्रदेश के धान खरीदी केंद्रों में इस यात्रा को धमतरी से प्रारंभ किया गया.
छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संयोजक मंडल सदस्य और पूर्व विधायक जनकलाल ठाकुर, रूपन चंद्राकर, तेजराम विद्रोही, पारसनाथ साहू, पूर्व विधायक वीरेंद्र पांडे, किसान भुगतान संघर्ष समिति महासमुंद के जागेश्वर जुगनू चंद्राकर, बागबाहरा के गोविंद चंद्राकर, गौतम बंदोपाध्याय, द्वारिका साहू, डॉ संकेत ठाकुर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.
किसान नेताओं की ओर से कहा गया है कि केंद्र सरकार के कॉरपोरेट परस्त तीनों कानून को रद्द करने की मांग को लेकर पूरे देश के किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में प्रदेश के 36 से अधिक संगठन छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के बैनर तले एकजुट होकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन किसानों से फैलकर समाज के अनेक वर्ग में होते हुए जन आंदोलन का रूप ले चुका है.
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राजभवन का होगा घेराव: किसान नेता
23 जनवरी को खेती बचाओ यात्रा के तहत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राजभवन का घेराव ट्रेक्टर मार्च के जरिए किया जायेगा. ट्रेक्टर मार्च की तैयारियां जोरों पर है. खेती बचाओ यात्रा बिलासपुर, रायगढ़, महासमुंद, बालोद, गरियाबंद, दुर्ग, बलौदाबाजार, मुंगेली, बेमेतरा, कवर्धा, राजनांदगांव, कांकेर, कोंडागांव सहित अनेक जिलों में चल रही है. धान खरीदी केंद्रों के साथ ही तहसील, जिला मुख्यालयों में धरना-प्रदर्शन-नुक्कड़ सभा चल रही है. अधिक से अधिक संख्या में 23 जनवरी को रायपुर चलो का आव्हान किया जा रहा है.
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तेजराम विद्रोही ने सरकार पर साधा निशाना
गाजीपुर बार्डर पर धरना सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव और छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संचालक मंडल सदस्य तेजराम विद्रोही ने कहा कि आज जो किसान सड़क पर बैठकर कड़कड़ाती ठंड में आंदोलन करने जो मजबूर है, उसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार केंद्र की मोदी सरकार है. जिन्होंने कथित कृषि सुधार का अध्यादेश लाया था. जिसका देश के किसान संगठनों ने विरोध किया. उन्होंने इस विरोध को महज विपक्षी पार्टियों का विरोध कहकर हल्के में लिया, जो कि आज किसानों का ही नहीं बल्कि आम उपभोक्ताओं का भी आंदोलन बन चुका है. मोदी सरकार इस आंदोलन को न्यायालय के हस्तक्षेप से कमजोर कर दबाना चाहती है.