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दीये के बाजार से रौनक हुई गायब, फैंसी दीये और विधुत झालर का मार्केट पर कब्जा

दीपावली (Deepawali) में इस बार भी दीये (Diya) के बाजार (Market) में मंदी साफ तौर पर दिख रहा है. मिट्टी के दीये (Earthen lamps) की जगह चाइनीज दीये (Chinese diyas) और विद्युत झालरों ने ले लिया है.

Diyas disappeared from the market
दीये के बाजार से रौनक हुई गायब
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Published : Oct 29, 2021, 6:59 PM IST

रायपुरः छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर (Raipur) में दीपावली (Deepawali) का बाजार सज चुका है. इस बार 4 नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी. बात अगर बाजार (Market)की करें तो मिट्टी के बने दीयों का बाजार भी सज गया है. हालांकि इस बाजार से रौनक गायब है. क्योंकि इस बार भी मिट्टी के दीये (Earthen lamps)को लोग कम खरीद रहे हैं. अबकी दीये की जगह फैंसी दीये और विधुत झालर ने ली है. जिसके कारण कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है. हालांकि कुम्हारों (Potters) को अब भी उम्मीद है कि दीपावली आते-आते कुछ बिक्री हो जाए.

दीये के बाजार से रौनक हुई गायब

पहले चाइनीज मार्केट तो अब गोबर के दीये ने कम कर दी कुम्हार के दीपों की लौ

मिट्टी के दीयों की डिमांड कमने से नाखुश कुम्हार

दीपावली पर्व को लेकर कुम्हार परिवार दुर्गापूजा के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर देते हैं. इस साल भी कुम्हार परिवार मिट्टी के छोटे-बड़े दीये, कलश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. हालांकि बदलते समय के साथ-साथ कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा भी प्रभावित हो रहा है. वर्तमान में विधुत से चलने वाले फैंसी दीये और झालर ने बाजार में अपनी जगह बना ली है. जिसका खामियाजा कुम्हार परिवारों को उठाना पड़ रहा है. पहले की तरह कुम्हार परिवारों के द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों की मांग भी कम हो गई है, जिसके कारण इन कुम्हारों के चेहरों पर चिंता की लकीरे और मायूसी भी देखने को मिल रही है.

फैंसी दिए और झालर ने ली बाजार में जगह

वहीं, राजधानी रायपुर के हर चौक-चौराहों पर दीपावली को लेकर बाजार सज गया है. लेकिन बाजार से रौनक गायब हो चुकी है. दीपावली पर्व के समय धनतेरस से लेकर लक्ष्मी पूजा तक मिट्टी के दीयों को जलाकर घरों को रोशन किया जाता था. लेकिन समय के साथ-साथ मिट्टी के दीयों की जगह विधुत झालर और फैंसी दीयों ने ले ली है. इलेक्ट्रिकल दुकान के संचालक बताते हैं कि फैंसी दीयों और झालर की मांग क्रिसमस नया साल और दिवाली में होती है. सबसे ज्यादा इसकी बिक्री दीपावली के समय होती है. लोग दिवाली के समय दीयों के झंझट से बचने के लिए फैंसी दीये और विधुत झालर का ज्यादा उपयोग करते हैं, जिसके कारण दीयों की मांग कम हो गई है. जो कहीं ना कहीं कुम्हारों के लिए परेशानी और चिंता का सबब है.

मिट्टी के बने दीयों की मांग हुई कम

बता दें कि मौजूदा समय में आधुनिक चीनी सामानों ने कुम्हारों के द्वारा निर्मित सामानों की मांग को और भी कम कर दिया है. चाइना बल्ब आकर्षक और रंग बिरंगी मोमबत्ती ने इनके पारंपरिक चाक की गति को धीमा कर दिया है. एक वक्त हुआ करता था जब, इन कुम्हारों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के द्वारा विद्युत चलित चाक दिया जाता था, जो कि अब बंद हो गया है. रायपुर में रहने वाले कुछ कुम्हार परिवारों के पास विद्युत चलित चाक जरूर है, लेकिन उनके द्वारा मिट्टी से बनाए गए सामानों की बिक्री कम होने से विद्युत चलित चाक भी अब किसी काम के नहीं रह गए हैं. यानी कि कुल मिलाकर इस बार भी कुम्हारों के हाथों से बने दीये बाजार में जगह नहीं बना पाया है.

रायपुरः छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर (Raipur) में दीपावली (Deepawali) का बाजार सज चुका है. इस बार 4 नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी. बात अगर बाजार (Market)की करें तो मिट्टी के बने दीयों का बाजार भी सज गया है. हालांकि इस बाजार से रौनक गायब है. क्योंकि इस बार भी मिट्टी के दीये (Earthen lamps)को लोग कम खरीद रहे हैं. अबकी दीये की जगह फैंसी दीये और विधुत झालर ने ली है. जिसके कारण कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है. हालांकि कुम्हारों (Potters) को अब भी उम्मीद है कि दीपावली आते-आते कुछ बिक्री हो जाए.

दीये के बाजार से रौनक हुई गायब

पहले चाइनीज मार्केट तो अब गोबर के दीये ने कम कर दी कुम्हार के दीपों की लौ

मिट्टी के दीयों की डिमांड कमने से नाखुश कुम्हार

दीपावली पर्व को लेकर कुम्हार परिवार दुर्गापूजा के बाद से ही अपनी तैयारी शुरू कर देते हैं. इस साल भी कुम्हार परिवार मिट्टी के छोटे-बड़े दीये, कलश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. हालांकि बदलते समय के साथ-साथ कुम्हारों का यह पुश्तैनी धंधा भी प्रभावित हो रहा है. वर्तमान में विधुत से चलने वाले फैंसी दीये और झालर ने बाजार में अपनी जगह बना ली है. जिसका खामियाजा कुम्हार परिवारों को उठाना पड़ रहा है. पहले की तरह कुम्हार परिवारों के द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीयों की मांग भी कम हो गई है, जिसके कारण इन कुम्हारों के चेहरों पर चिंता की लकीरे और मायूसी भी देखने को मिल रही है.

फैंसी दिए और झालर ने ली बाजार में जगह

वहीं, राजधानी रायपुर के हर चौक-चौराहों पर दीपावली को लेकर बाजार सज गया है. लेकिन बाजार से रौनक गायब हो चुकी है. दीपावली पर्व के समय धनतेरस से लेकर लक्ष्मी पूजा तक मिट्टी के दीयों को जलाकर घरों को रोशन किया जाता था. लेकिन समय के साथ-साथ मिट्टी के दीयों की जगह विधुत झालर और फैंसी दीयों ने ले ली है. इलेक्ट्रिकल दुकान के संचालक बताते हैं कि फैंसी दीयों और झालर की मांग क्रिसमस नया साल और दिवाली में होती है. सबसे ज्यादा इसकी बिक्री दीपावली के समय होती है. लोग दिवाली के समय दीयों के झंझट से बचने के लिए फैंसी दीये और विधुत झालर का ज्यादा उपयोग करते हैं, जिसके कारण दीयों की मांग कम हो गई है. जो कहीं ना कहीं कुम्हारों के लिए परेशानी और चिंता का सबब है.

मिट्टी के बने दीयों की मांग हुई कम

बता दें कि मौजूदा समय में आधुनिक चीनी सामानों ने कुम्हारों के द्वारा निर्मित सामानों की मांग को और भी कम कर दिया है. चाइना बल्ब आकर्षक और रंग बिरंगी मोमबत्ती ने इनके पारंपरिक चाक की गति को धीमा कर दिया है. एक वक्त हुआ करता था जब, इन कुम्हारों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के द्वारा विद्युत चलित चाक दिया जाता था, जो कि अब बंद हो गया है. रायपुर में रहने वाले कुछ कुम्हार परिवारों के पास विद्युत चलित चाक जरूर है, लेकिन उनके द्वारा मिट्टी से बनाए गए सामानों की बिक्री कम होने से विद्युत चलित चाक भी अब किसी काम के नहीं रह गए हैं. यानी कि कुल मिलाकर इस बार भी कुम्हारों के हाथों से बने दीये बाजार में जगह नहीं बना पाया है.

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