रायपुरः छत्तीसगढ़ में शराबबंदी की मांग लगातार उठती रही है, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को लेकर कोई चर्चा करने को तैयार ही नहीं है. एक ओर जहां विपक्ष का कहना है कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पूर्ण शराबबंदी की बात कही थी. करीब ढाई साल बाद भी अब तक प्रदेश में शराबबंदी नहीं हो पाई है. कांग्रेस सरकार अपने वादे से मुकर रही है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी होगी, लेकिन उसके लिए एक प्रक्रिया से गुजरा जाएगा. अचानक से प्रदेश में शराबबंदी नहीं की जा सकती है, क्योंकि अचानक से की गई शराबबंदी के दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं. यह दुष्परिणाम आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक भी हो सकते हैं.
शराबबंदी के बाद भी गुजरात-बिहार में लोग पीते हैं शराब
एकदम से नशाबंदी होगी तो उसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिलेंगे. उदाहरण के तौर पर गुजरात और बिहार में शराबबंदी है. इसके बावजूद वहां लोग शराब पीते हैं. इन प्रदेशों में बॉर्डर से शराब आ रही हैं. यदि आप किसी चीज पर प्रतिबंध लगाते हैं तो लोग उसका उपयोग और ज्यादा करने लगते हैं. खासकर युवा पीढ़ी इससे ज्यादा प्रभावित हो रही है. ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें.
सरकार तय करे, करनी है शराबबंदी या फिर नशामुक्त बनाना है प्रदेश
नशे के खिलाफ सिर्फ जागरूकता अभियान से काम नहीं चलेगा. क्योंकि जागरूक उन्हें किया जा सकता है, जिन्होंने हाल ही में नशा करना शुरू किया हो. जो लंबे समय से नशा करते आ रहे हैं और इसके आदी हो चुके हैं, उनके लिए जागरूकता से काम नहीं चलेगा. उन्हें उपचार की जरूरत है. दिनचर्या में परिवर्तन लाकर रहन-सहन और खान-पान में बदलाव लाकर इसका असर कम किया जा सकता है. यही नशा मुक्ति केंद्र में सिखाया जाता है. प्रदेश को शराब मुक्त करना है या नशामुक्त करना है, सरकार को पहले यह तय करना होगा.
बड़ी संख्या में युवा हो रहे नशे के शिकार
आज के युवा अपने फ्यूचर को लेकर तनाव में रहते हैं, इस कारण से भी वे नशे का सेवन करने लगते हैं. देखने में आया है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट ज्यादा नशा करते हैं. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि कम पढ़े लिखे लोग ही नशा करते हैं. ज्यादा पढ़े-लिखे लोग ज्यादा नशा करते हैं. अगर, प्रदेश में शराबबंदी करनी है तो व्यापक स्तर पर सरकार को तैयारी करनी होगी. इसके लिए सरकार को चाहिए कि व्यापक स्तर पर नशा मुक्ति केंद्र और पुनर्वास केंद्र खोले.
बच्चों की जागरूकता के लिए चल रहा व्यापक अभियान
केंद्र सरकार द्वारा नशा के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. वर्तमान में छोटे बच्चों में बढ़ रहे नशे की प्रवृत्ति को देखते हुए सरकार अभियान चला रही है. स्कूल-कॉलेजों में बच्चों को जागरूक किया जा रहा है. शराब सहित किसी भी नशे पर प्रतिबंध लगाना पर्याप्त नहीं है. यदि किसी नशे पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो नशा करने वाला उसका सब्सटीट्यूट ढूंढ लेगा. इसके लिए सबसे जरूरी है ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करें.
नशा छुड़ाने के कई साधन हैं मौजूद, जरूरत है जागरूकता की
सबसे पहले हमें नशा करने का कारण जानना होगा, क्योंकि जब तक आप को पता नहीं होगा कि वह व्यक्ति नशा क्यों कर रहा है तो उसे नशा छुड़ाएंगे कैसे. यदि कोई व्यक्ति नशा छोड़ना चाहता है तो उसे समझाएं कि नशे का उस पर और उसके परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है. एकदम से नशा बंद करने से इसका साइड इफेक्ट व्यक्ति के शरीर पर देखने को मिलता है. यहां तक कि उसकी मौत भी हो सकती है.
अचानक नशाबंदी से हो सकती है मानसिक- शारीरिक बीमारी
नशा करने वाले के डोज को एकदम से बंद नहीं कर सकते. अचानक नशा देना बंद किया गया तो व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हो सकता है. एक प्रक्रिया के तहत धीरे-धीरे उसे बंद करना होगा. तभी उसके नशे की आदत को छुड़ाया जा सकता है. छात्र मानते हैं कि अचानक शराबबंदी नहीं की जाती है, उसके लिए व्यापक स्तर पर योजना बनाने की जरूरत है.
वर्तमान परिस्थिति में नहीं हो सकती शराबबंदी
बहरहाल, इन तथ्यों को देखते हुए यही बातें सामने आ रही हैं कि प्रदेश में वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए शराबबंदी मुमकिन नहीं है. इसके लिए सरकार को पहले व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना होगा. नशा मुक्ति केंद्र की संख्या बढ़ानी होगी. पुनर्वास की व्यवस्था करनी होगी. दूसरे नशीले पदार्थों को लेकर भी सरकार को सचेत होना होगा, जिससे शराबबंदी के बाद लोग उनका सेवन न कर सकें.
इसके अलावा मेडिकल के क्षेत्र में भी व्यापक तैयारी करनी होगी. यह तैयारी बीमारी के उपचार से बिल्कुल विपरीत होगी, क्योंकि आम मरीजों की तरह नशे के आदी व्यक्ति का उपचार नहीं किया जाता है. अब देखने वाली बात यह है कि जो कांग्रेस चुनाव के पहले अपने घोषणा पत्र में प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी का दावा कर रही थी, वह सत्ता मिलने के बाद पूरे प्रदेश में शराब पर कैसे प्रतिबंध लगाएगी.