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ईदगाहों में अदा नहीं की गई नमाज, सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मनाई गई बकरीद - रायपुर में लॉकडाउन

ईद-उल-अज़हा यानि बकरीद का पर्व शहर में सादगी के साथ मनाया गया. ईदगाहों में इस दौरान नमाज अदा नहीं की गई. साथ ही जिन मस्जिदों में नमाज अदा की गई वहां सोशल डिस्टेंसिंग का खास ध्यान रखा गया.

Eid celebrated in Raipur
मोहम्द अली फारूकी
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Published : Aug 1, 2020, 7:30 PM IST

रायपुर: शहर में शनिवार को ईद-उल-अज़हा (बकीरद) का त्योहार सादगी के साथ मनाया गया. राज्य सरकार की ओर से जारी निर्देश के मुताबिक ईदगाहों में नमाज अदा नहीं की गई. वहीं मस्जिदों में बहुत कम लोगों ने सोशल डिस्टेंसिग का ध्यान रखते हुए नमाज अदा की. बाकी लोगों ने घरों में रहकर ही नमाज अदा की.

सादगी से मनाई गई ईद

रायपुर मदरसा के शहर ए काजी मोहम्द अली फारूकी ने बताया कि ईद-उल-अज़हा या बकरीद के नाम से यह त्योहार मनाया जाता है. इस दिन कुर्बानी देने की प्रथा है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी. उन्होंने बताया कि अल्लाह ने एक बार हजरत इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए अपनी सबसे अच्छी और प्यारी चीज की कुर्बानी करें.

SPECIAL: फीकी पड़ी त्योहारों में मिठाई की मिठास

कुर्बानी की प्रथा

हजरत इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया और जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे उसी समय अल्लाह के दूत आकर उनके बेटे की जगह एक दुम्बा रख दिया. जिससे हजरत इब्राहिम के बेटे की जान बच गई. तभी से बकरीद मनाया जा रहा है.

घर में अदा की गई नमाज

मोहम्मद फारूकी ने बताया कि जिस तरह से इस साल कोरोना संकट का दौर चल रहा है, ऐसे में पहले ही सभी लोगों को घरों में रहकर नमाज अदा करने की बात कही गई थी. इस साल ईदगाहों पर भी नमाज नहीं पढ़ी गई. जिन मस्जिदों में नमाज अदा की गई वहां सोशल डिस्टेंसिंग और सरकार की ओर से जारी निर्देश के के मुताबिक ही त्योहार मनाया गया.

रायपुर: शहर में शनिवार को ईद-उल-अज़हा (बकीरद) का त्योहार सादगी के साथ मनाया गया. राज्य सरकार की ओर से जारी निर्देश के मुताबिक ईदगाहों में नमाज अदा नहीं की गई. वहीं मस्जिदों में बहुत कम लोगों ने सोशल डिस्टेंसिग का ध्यान रखते हुए नमाज अदा की. बाकी लोगों ने घरों में रहकर ही नमाज अदा की.

सादगी से मनाई गई ईद

रायपुर मदरसा के शहर ए काजी मोहम्द अली फारूकी ने बताया कि ईद-उल-अज़हा या बकरीद के नाम से यह त्योहार मनाया जाता है. इस दिन कुर्बानी देने की प्रथा है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी. उन्होंने बताया कि अल्लाह ने एक बार हजरत इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए अपनी सबसे अच्छी और प्यारी चीज की कुर्बानी करें.

SPECIAL: फीकी पड़ी त्योहारों में मिठाई की मिठास

कुर्बानी की प्रथा

हजरत इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया और जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे उसी समय अल्लाह के दूत आकर उनके बेटे की जगह एक दुम्बा रख दिया. जिससे हजरत इब्राहिम के बेटे की जान बच गई. तभी से बकरीद मनाया जा रहा है.

घर में अदा की गई नमाज

मोहम्मद फारूकी ने बताया कि जिस तरह से इस साल कोरोना संकट का दौर चल रहा है, ऐसे में पहले ही सभी लोगों को घरों में रहकर नमाज अदा करने की बात कही गई थी. इस साल ईदगाहों पर भी नमाज नहीं पढ़ी गई. जिन मस्जिदों में नमाज अदा की गई वहां सोशल डिस्टेंसिंग और सरकार की ओर से जारी निर्देश के के मुताबिक ही त्योहार मनाया गया.

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