रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित दूधाधारी मठ काफी प्राचीन माना जाता है. इस मठ को लेकर यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान इस मठ में विश्राम किया था. इतना ही नहीं इस मठ में रामसेतु का एक पत्थर भी होने का दावा किया जाता है. इस मठ में एक ऐसा पत्थर भी है, जो पानी में तैरता है. इस पत्थर को देखने दूर-दराज से लोग मठ पहुंचते हैं. खासकर राम नवमी के दिन मठ में भगवान राम और इस पत्थर के दर्शन के लिए लोगों का भारी जमावड़ा लगा रहता है. आज भी यह पत्थर लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है.
दूधाधारी मठ का इतिहास: दूधाधारी मठ का इतिहास लगभग 468 साल पुराना बताया जाता है. इस मठ की स्थापना 1554 में हुई थी. राजा रघुराव भोसले ने महंत बलभद्र दासजी के लिए मठ का निर्माण कराया था. यहां कई देवी-देवताओं की मूर्ति है. यहां बालाजी मंदिर, वीर हनुमान मंदिर और राम पंचायत मंदिर प्रमुख है. इन मंदिरों में मराठा कालीन चित्रकारी आज भी देखी जा सकती है.
दूधाधारी मठ के पुजारी नागा राम हृदय दास बताते हैं कि, यहां स्थित बालाजी भगवान का मंदिर लगभग पौने पांच सौ वर्ष पुराना मठ है. उनके सामने जो संकट मोचन हनुमान जी हैं वे स्वयंभू मूर्ति हैं. उसके बारे में कोई नहीं बता सकता कि वह कितने पुराने हैं. नागा राम हृदय दास ने बताया कि सब लोगों के द्वारा कहा जाता है और मैं भी सुनता आ रहा हूं कि यहां पर वनवास के दौरान भगवान राम ने विश्राम किया था. इसलिए लोगों के द्वारा इस तरह की बातें कही जाती रही है.
इस विषय में नागा राम हृदय दास ने बताया कि मठ में एक पत्थर भी कुंड बनाकर रखा गया है, जो पानी में तैरता है. इस पत्थर को रामेश्वरम से लाया गया है. इस पत्थर के बारे में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की थी. उस दौरान समुद्र में पत्थर का पुल बनाया गया था. जो पत्थर पानी में तैरता था. मठ में रखा गया यह पत्थर उस समय का ही बताया जाता है. इस पत्थर की खासियत यह है कि यह पानी में डूबता नहीं है.
वहीं, भक्तों का भी इस मंदिर से अटूट नाता है और उनकी श्रद्धा इस मंदिर को लेकर काफी है. भक्त रोशन पांडे बताते हैं कि वे बचपन से इस मठ में आ रहे हैं. इतना ही नहीं उनकी कई पीढ़ियां यहां पर भगवान राम के दर्शन करने आ चुकी हैं. रोशन ने बताया कि लगभग 500 साल पूर्व बलभद्र दास जी महाराज रहते थे. वह दूधाधारी के नाम से प्रसिद्ध थे. वे दूध का आहार लेते थे, वे अन्न या फल का सेवन नहीं करते थे. यह भी कहा जाता है कि यदि उस दौरान उसका कभी हाथ-पैर कट भी जाता था तो उसमें से खून की जगह दूध निकलता था. रोशन ने बताया कि यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध मंदिर है. इसे पंचायतन मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि छत्तीसगढ़ में इकलौता ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान राम, उनके भाई और माता सहित संकटमोचन एक ही जगह विराजमान हैं.
यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2022: चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन, माता महागौरी की करें आराधना
इस मंदिर से कुछ दूरी पर ही जैतू साव मठ भी है. यहां पर भी रामसेतु के पत्थर मौजूद हैं. जैतू साव मठ के सचिव महेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि इस पत्थर को शिवरीनारायण से लाया गया है. यह पत्थर लगभग 11 किलो का है जो पानी में डूबता नहीं है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान राम लंका पर चढ़ाई करने वाले थे तो इसी पत्थर से समुद्र पर पुल बनाया गया था.
ऐसा भी कहा जाता है कि मठ के संस्थापक महंत बलभद्र दास बहुत बड़े हनुमान भक्त थे. एक पत्थर को हनुमान मानकर श्रद्धाभाव से उसकी पूजा-अर्चना करते थे. वह अपनी गाय सुरही के दूध से हनुमानजी की प्रतिमा को नहलाते थे, फिर उसी दूध का सेवन करते थे. कुछ समय बाद उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और सिर्फ दूध को ही आहार के रूप में लेने लगे. इसी वजह से मठ का नाम दूधाधारी मठ रख दिया गया. एक दिन महंत बलभद्र अचानक अंतरध्यान हो गए. जब उनकी खोजबीन शुरू हुई तो शिष्यों ने बताया कि उन्होंने महंत जी को सुबह टहलते देखा था. लंबे समय तक जब वे कहीं नहीं मिले तो सबने मान लिया कि उन्होंने समाधि ले ली है. उनका समाधि स्थल भी बनवाया गया.
यह भी पढ़ें: बस्तर के कांगेर वैली में देवी बास्ताबुंदिन को भक्त चढ़ाते हैं काला चश्मा, जानिए क्यों
वनवास के दौरान भगवान राम के यहां विश्राम करने की भी है मान्यता: दूधाधारी मठ के प्रांगण में तीन मुख्य मंदिर हैं. राम जानकी मंदिर, श्री बालाजी मंदिर और हनुमान मंदिर. हनुमानजी मठ के इष्टदेव माने जाते हैं. राम जानकी मंदिर का निर्माण पुरानी बस्ती में रहने वाले दाऊ परिवार ने कराया था. वहीं, बालाजी मंदिर का निर्माण नागपुर के भोसले वंश ने कराया था. मान्यता है कि वनवास के दौरान श्रीराम ने यहां विश्राम किया था. मठ में रामसेतु पाषाण भी है. रोजाना सैकड़ों भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं.