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Raipur News : डबल फेस पॉलिटिक्स नुकसान या फायदेमंद !

कांग्रेस ने कर्नाटक में भी डबल फेस पॉलिटिक्स को अपनाया. सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को सामने रखकर चुनाव लड़ा. नतीजे पक्ष में आने के बाद एक को सीएम तो एक को डिप्टी सीएम बनाने की तैयारी है. पार्टी हर राज्यों में दो नेताओं को सामने रखती हैं, एक की ताजपोशी कर दूसरे को किनारे कर देती हैं. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब और अब कर्नाटक में भी यही स्थिति बनी थी. लेकिन अब बड़ा सवाल ये है कि क्या अगली बार छत्तीसगढ़ में कांग्रेस दो चेहरों को सामने रखकर चुनाव लड़ेगी. या फिर भूपेश के चेहरे पर ही दाव खेला जाएगा.

double face politics loss or advantage
डबल फेस पॉलिटिक्स के नुकसान और फायदे
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Published : May 20, 2023, 2:28 PM IST

डबल फेस पॉलिटिक्स के नुकसान और फायदे

रायपुर : कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने डबल फेस पॉलिटिक्स को अपनाया.यहां सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को पार्टी ने जनता के सामने रखा.नतीजा ये निकला कि कर्नाटक में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को पार कर गई.लेकिन चुनाव जीतने के बाद कुर्सी को लेकर घमासान छिड़ा.इस घमासान को रोकने के लिए पार्टी ने डिप्टी सीएम का फॉर्मूला निकालकर अंतर्विरोध काफी हद तक कम कर लिया है.

पहले भी कांग्रेस अपना चुकी है डबल फेस फॉर्मूला : कर्नाटक इकलौता ऐसा राज्य नहीं है. जहां कांग्रेस में 2 चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा गया हो. इसके पहले भी कई राज्यों में कांग्रेस का यह फार्मूला काम आया. लेकिन इस फॉर्मूले के कारण कई राज्यों में अभी भी विवाद की स्थिति है. छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब या हिमाचल इसके उदाहरण हैं. हर जगह कांग्रेस का यही फार्मूला लागू रहा, यहां तक ढाई- ढाई साल के फार्मूले पर भी पार्टी काम कर रही है.लिहाजा एक बार फिर छ्त्तीसगढ़ में कांग्रेस डबल फेस पॉलिटिक्स अपना सकती है.

बीजेपी ने कांग्रेस पर साधा निशाना : बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता संदीप शर्मा ने कांग्रेस में डबल फेस पॉलिटिक्स की दो वजह गिनाई. शर्मा ने कहा कि ''पहली वजह कांग्रेस नेतृत्व का दिन-ब-दिन कमजोर हो रहा है.दूसरा गुटबाजी के कारण मान मनौव्वल का खेल खेला जा रहा है. छत्तीसगढ़ में भी यही फॉर्मूला कांग्रेस ने अपनाया था. बीच में कांग्रेसी इसे नकारती रही. लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद डीके शिवकुमार ने यह बात सामने ला दी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने अपने ही नेता को दिया वादा तोड़ा है. इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस नेतृत्व कमजोर हो चुकी है, कांग्रेस नेतृत्व अपने लोगों से किये वादे पूरे नहीं कर रही है, तो जनता के साथ क्या करेगी. कांग्रेस शासित राज्यों में यही स्थिति है. पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक में यही स्थिति है.''

भूपेश बघेल ने बीजेपी के डबल फेस पर ली चुटकी : वहीं डबल फेस पॉलिटिक्स मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि "उत्तराखंड में 3 मुख्यमंत्री बदले थे. यूपी में एक को राज्यपाल बनाकर भेजे हैं. कश्मीर में 8 दिन मुख्यमंत्री चयन करने में लगे थे. गुजरात में कितने मुख्यमंत्री बदले."

क्या है राजनीति के जानकार का कहना : राजनीति के जानकारी में वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि '' डबल फेस लगभग सभी राज्यों में होते हैं. कांग्रेस जैसी पार्टी जो बहुत पुरानी है. लगातार सत्ता में रही है. वहां चेहरे ज्यादा नजर आएंगे. 1960-1970 के दशक को देखा जाए तो उस दौरान भी दो चेहरे सामने थे. छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो यहां पर भी विद्या चरण शुक्ला, श्यामाचरण शुक्ला ओर अजीत जोगी ऐसे 3 बड़े चेहरे से मौजूद थे. डबल फेस पॉलिटिक्स की वजह से होने वाली दिक्कतों को लेकर शशांक शर्मा ने कहा कि जब पार्टी दो चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ती है तो विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है. उसमें से एक प्रमुख चेहरा अध्यक्ष का होता है ,जो चुनाव के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.उसकी सीएम की कुर्सी के लिए दावेदारी भी ज्यादा होती है.वहीं दूसरा चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री, केंद्रीय मंत्री या अन्य कोई चेहरा होता है, जिसे पार्टी सामने रखती है. यह लोकप्रिय और हाईकमान के काफी करीब का चेहरा होता हैं. वह भी सीएम की कुर्सी पर अपना दावा ठोकता है.''

क्यों होते हैं विवाद उत्पन्न : शशांक शर्मा ने कहा कि ''पहले के समय में पार्टी के नेताओं को लगता था कि आज नहीं तो कल मौका जरूर मिलेगा.लेकिन मौजूदा परिवेश में स्थितियां अलग हैं.क्योंकि एक बार आपकी सरकार बन गई और आप मुख्यमंत्री नहीं बने तो अगली बार सरकार बनेगी या नहीं इस बात की कोई गारंटी नहीं. किसी में धैर्य नहीं. हर कोई अभी सब कुछ पाना चाहता है. इस कारण से संघर्ष की स्थिति पार्टी में बनी रहती है.''

बीजेपी में भी है डबल फेस पॉलिटिक्स : शशांक शर्मा ने कहा कि '' डबल फेस सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं है. बल्कि बीजेपी में भी है. यदि 1970 के दशक के चुनाव देखेंगे.तो जनसंघ के समय या जनता पार्टी के समय से सकलेचा ,कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा यह बड़े चेहरे थे. जिन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा. पहले सकलेचा को मुख्यमंत्री बनाया गया .बाद में सुंदरलाल पटवा को बनाया गया. छत्तीसगढ़ में भी 2003 में जो चुनाव हुए थे उसमें नंदकुमार साय, रमेश बैस, दिलीप सिंह जूदेव ,डॉ रमन सिंह चारों ने मिलकर चुनाव लड़ा था.अध्यक्ष होने के नाते डॉ रमन सिंह को सीएम बनाया गया . क्योंकि उन्होंने मंत्री पद छोड़कर अध्यक्ष पद स्वीकार किया था. तो उन्हें सीएम बनाया गया.राजस्थान की बात की जाए तो वहां पर भारतीय जनता पार्टी की जो समस्या फेस कर रही है, उसके पीछे भी यही वजह है. पहले केवल एक वसुंधरा राजे सिंधिया थी. लेकिन अब वहां भी कई चेहरे नजर आ रहे हैं. जहां पर ताकतवर और कद्दावर नेताओं की फौज ज्यादा हुई उन पार्टियों को उन राज्यों में यह मुसीबत झेलनी पड़ी.''

डबल फेस पॉलिटिक्स फायदा या नुकसान : कुल मिलाकर अब ये बात आती है कि क्या डबल फेस पॉलिटिक्स से नुकसान है या फायदा. यदि मौजूदा परिवेश की बात करें तो पद की चाहत में पार्टी के अंदर टूट की संभावना ज्यादा रहती है. ऐसे में सभी को साधकर पहले चुनाव जीतने का लक्ष्य डबल फेस पॉलिटिक्स से कारगर होता दिखता है.लेकिन दूसरी तरफ चुनाव जीतने के बाद किसी भी दल के लिए सत्ता को संतुलित रख पाना बड़ी चुनौती है.

डबल फेस पॉलिटिक्स के नुकसान और फायदे

रायपुर : कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने डबल फेस पॉलिटिक्स को अपनाया.यहां सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को पार्टी ने जनता के सामने रखा.नतीजा ये निकला कि कर्नाटक में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े को पार कर गई.लेकिन चुनाव जीतने के बाद कुर्सी को लेकर घमासान छिड़ा.इस घमासान को रोकने के लिए पार्टी ने डिप्टी सीएम का फॉर्मूला निकालकर अंतर्विरोध काफी हद तक कम कर लिया है.

पहले भी कांग्रेस अपना चुकी है डबल फेस फॉर्मूला : कर्नाटक इकलौता ऐसा राज्य नहीं है. जहां कांग्रेस में 2 चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा गया हो. इसके पहले भी कई राज्यों में कांग्रेस का यह फार्मूला काम आया. लेकिन इस फॉर्मूले के कारण कई राज्यों में अभी भी विवाद की स्थिति है. छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब या हिमाचल इसके उदाहरण हैं. हर जगह कांग्रेस का यही फार्मूला लागू रहा, यहां तक ढाई- ढाई साल के फार्मूले पर भी पार्टी काम कर रही है.लिहाजा एक बार फिर छ्त्तीसगढ़ में कांग्रेस डबल फेस पॉलिटिक्स अपना सकती है.

बीजेपी ने कांग्रेस पर साधा निशाना : बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता संदीप शर्मा ने कांग्रेस में डबल फेस पॉलिटिक्स की दो वजह गिनाई. शर्मा ने कहा कि ''पहली वजह कांग्रेस नेतृत्व का दिन-ब-दिन कमजोर हो रहा है.दूसरा गुटबाजी के कारण मान मनौव्वल का खेल खेला जा रहा है. छत्तीसगढ़ में भी यही फॉर्मूला कांग्रेस ने अपनाया था. बीच में कांग्रेसी इसे नकारती रही. लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद डीके शिवकुमार ने यह बात सामने ला दी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने अपने ही नेता को दिया वादा तोड़ा है. इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस नेतृत्व कमजोर हो चुकी है, कांग्रेस नेतृत्व अपने लोगों से किये वादे पूरे नहीं कर रही है, तो जनता के साथ क्या करेगी. कांग्रेस शासित राज्यों में यही स्थिति है. पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक में यही स्थिति है.''

भूपेश बघेल ने बीजेपी के डबल फेस पर ली चुटकी : वहीं डबल फेस पॉलिटिक्स मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि "उत्तराखंड में 3 मुख्यमंत्री बदले थे. यूपी में एक को राज्यपाल बनाकर भेजे हैं. कश्मीर में 8 दिन मुख्यमंत्री चयन करने में लगे थे. गुजरात में कितने मुख्यमंत्री बदले."

क्या है राजनीति के जानकार का कहना : राजनीति के जानकारी में वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि '' डबल फेस लगभग सभी राज्यों में होते हैं. कांग्रेस जैसी पार्टी जो बहुत पुरानी है. लगातार सत्ता में रही है. वहां चेहरे ज्यादा नजर आएंगे. 1960-1970 के दशक को देखा जाए तो उस दौरान भी दो चेहरे सामने थे. छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो यहां पर भी विद्या चरण शुक्ला, श्यामाचरण शुक्ला ओर अजीत जोगी ऐसे 3 बड़े चेहरे से मौजूद थे. डबल फेस पॉलिटिक्स की वजह से होने वाली दिक्कतों को लेकर शशांक शर्मा ने कहा कि जब पार्टी दो चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ती है तो विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है. उसमें से एक प्रमुख चेहरा अध्यक्ष का होता है ,जो चुनाव के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.उसकी सीएम की कुर्सी के लिए दावेदारी भी ज्यादा होती है.वहीं दूसरा चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री, केंद्रीय मंत्री या अन्य कोई चेहरा होता है, जिसे पार्टी सामने रखती है. यह लोकप्रिय और हाईकमान के काफी करीब का चेहरा होता हैं. वह भी सीएम की कुर्सी पर अपना दावा ठोकता है.''

क्यों होते हैं विवाद उत्पन्न : शशांक शर्मा ने कहा कि ''पहले के समय में पार्टी के नेताओं को लगता था कि आज नहीं तो कल मौका जरूर मिलेगा.लेकिन मौजूदा परिवेश में स्थितियां अलग हैं.क्योंकि एक बार आपकी सरकार बन गई और आप मुख्यमंत्री नहीं बने तो अगली बार सरकार बनेगी या नहीं इस बात की कोई गारंटी नहीं. किसी में धैर्य नहीं. हर कोई अभी सब कुछ पाना चाहता है. इस कारण से संघर्ष की स्थिति पार्टी में बनी रहती है.''

बीजेपी में भी है डबल फेस पॉलिटिक्स : शशांक शर्मा ने कहा कि '' डबल फेस सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं है. बल्कि बीजेपी में भी है. यदि 1970 के दशक के चुनाव देखेंगे.तो जनसंघ के समय या जनता पार्टी के समय से सकलेचा ,कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा यह बड़े चेहरे थे. जिन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा. पहले सकलेचा को मुख्यमंत्री बनाया गया .बाद में सुंदरलाल पटवा को बनाया गया. छत्तीसगढ़ में भी 2003 में जो चुनाव हुए थे उसमें नंदकुमार साय, रमेश बैस, दिलीप सिंह जूदेव ,डॉ रमन सिंह चारों ने मिलकर चुनाव लड़ा था.अध्यक्ष होने के नाते डॉ रमन सिंह को सीएम बनाया गया . क्योंकि उन्होंने मंत्री पद छोड़कर अध्यक्ष पद स्वीकार किया था. तो उन्हें सीएम बनाया गया.राजस्थान की बात की जाए तो वहां पर भारतीय जनता पार्टी की जो समस्या फेस कर रही है, उसके पीछे भी यही वजह है. पहले केवल एक वसुंधरा राजे सिंधिया थी. लेकिन अब वहां भी कई चेहरे नजर आ रहे हैं. जहां पर ताकतवर और कद्दावर नेताओं की फौज ज्यादा हुई उन पार्टियों को उन राज्यों में यह मुसीबत झेलनी पड़ी.''

डबल फेस पॉलिटिक्स फायदा या नुकसान : कुल मिलाकर अब ये बात आती है कि क्या डबल फेस पॉलिटिक्स से नुकसान है या फायदा. यदि मौजूदा परिवेश की बात करें तो पद की चाहत में पार्टी के अंदर टूट की संभावना ज्यादा रहती है. ऐसे में सभी को साधकर पहले चुनाव जीतने का लक्ष्य डबल फेस पॉलिटिक्स से कारगर होता दिखता है.लेकिन दूसरी तरफ चुनाव जीतने के बाद किसी भी दल के लिए सत्ता को संतुलित रख पाना बड़ी चुनौती है.

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