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छत्तीसगढ़ के नाराज सरकारी कर्मचारी बिगाड़ेंगे चुनावी गणित! - Chhattisgarh election equation 2023

छत्तीसगढ़ में चुनावी साल में अपनी मांगों को लेकर आंदोलन और सरकार पर दबाव बनाने का सिलसिला चल रहा है. सरकारी कर्मचारियों की भी डीए बढ़ाने, नियमितीकरण सहित दूसरी मांगें हैं. सरकारी कर्मचारियों ने चेतावनी भी दी है कि मांग पूरी नहीं हुई तो कांग्रेस को विधानसभा चुनाव 2023 में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है. सियासी जानकारों का भी कहना है कि कर्मचारी और उनके परिवारों के करीब 35 लाख वोट चुनाव में बहुत मायने रखते हैं.

Chhattisgarh Assembly election 2023
कर्मचारियों ने सरकार को चेतावनी दी
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Published : May 9, 2023, 5:16 PM IST

Updated : May 11, 2023, 8:43 PM IST

कर्मचारियों ने सरकार को चेतावनी दी

रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही बचे हैं. चुनाव करीब आते ही कांग्रेस सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही है. सरकारी कर्मचारी सरकार से नाराज हैं. हालांकि कर्मचारियों को खुश करने के लिए स्थानीय तीज त्योहार, शनिवार की छुट्टी सहित कई अन्य ऐलान किए गए हैं लेकिन कर्मचारियों की डीए बढ़ाने और नियमितीकरण समेत दूसरी प्रमुख मांगें पूरी नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ के सरकारी कर्मचारियों की केंद्रीय कर्मचारियों की तरह 41 फीसदी डीए देने की मांग है. वर्तमान में उन्हें 33% डीए मिल रहा है. ऐसे में कर्मचारियों की मांगें पूरी नहीं हुई तो वह चुनावी समीकरण भी बिगाड़ सकते हैं.

कर्मचारियों के कितने वोट: छत्तीसगढ़ में नियमित और अनियमित कर्मचारियों की संख्या लगभग 7 लाख है. एक परिवार में 5 वोट के हिसाब से 7 लाख कर्मचारियों के घर में करीब 35 लाख वोटर हैं. यह 35 लाख वोट जिस दल के पक्ष में पड़ गए तो स्वभाविक है कि समीकरण बिगड़ सकता है.

चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं कर्मचारी: छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष गणेश राम चंद्रा का कहना है कि "इसके पहले की सरकारों ने भी कर्मचारियों की अनदेखी की थी, जिसका खामियाजा उन्हें चुनाव में उठाना पड़ा. चाहे फिर वह साल 2003 अजीत जोगी की सरकार रही हो या फिर साल 2018 में रमन सिंह की सरकार. इन दोनों सरकारों ने कर्मचारियों की अनदेखी की. उनकी मांगों को नहीं सुना. सरकारों को लगा कि महज कुछ लाख कर्मचारी हैं, जिससे चुनाव पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन कर्मचारियों की नाराजगी के कारण इन चुनावों में तत्कालीन सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा."

यह भी पढ़ें: Raipur : सराफा कारोबारी पर ईडी की दबिश, शराब घोटाले से जुड़े हो सकते हैं तार


कर्मचारियों पर होगी चुनाव की जम्मेदारी: कर्मचारी संघ का कहना है कि विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं के संचालन की जवाबदारी भी शासकीय कर्मचारियों के कंधों पर होती है. ऐसे में यदि चुनाव के वक्त कर्मचारी इन योजनाओं का संचालन उचित ढंग से नहीं करेंगे तो उसका प्रभाव भी चुनाव पर पड़ेगा. गणेश राम चंद्रा ने कहा कि "निर्वाचन का काम भी सरकारी कर्मचारियों के द्वारा संपन्न कराया जाता है. वह लोगों के बीच जाते हैं. सरकारी योजनाओं की जानकारी देते हैं. उन्हें योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद करते हैं. मतदान के दौरान भी लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं. ऐसे में इन सभी की सहभागिता भी चुनाव में महत्वपूर्ण हो जाती है. यही वजह है कि शासकीय कर्मचारियों की चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है."

क्या कहती है भाजपा: भाजपा का कहना है कि सरकार जल्द से जल्द कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अन्य मांगों को पूरा करे. भाजपा नेता गौरीशंकर श्रीवास का आरोप है कि "विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने कर्मचारियों के नियमितीकरण की घोषणा की थी, लेकिन उसे अब तक पूरा नहीं किया है. कर्मचारियों का विश्वास कांग्रेस सरकार खो चुकी है. इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार को उठाना पड़ेगा."

यह भी पढ़ें: Coal levy PMLA Case ईडी ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस विधायकों, पीसीसी कोषाध्यक्ष की 221 करोड़ की संपत्ति कुर्क की


कांग्रेस की दलील: कांग्रेस का कहना है कि भूपेश सरकार ने कर्मचारी संघ की किसी भी मांग को खारिज नहीं किया है. प्रदेश प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा के मुताबिक ''डीए की मांग हो या फिर अन्य कोई मांग, उन मांगों पर भूपेश सरकार ने समय समय पर निर्णय लिया है. पुरानी पेंशन योजना बहाल की गई, शनिवार को छुट्टी का प्रावधान किया गया और अनुकंपा नियुक्ति को शिथिल कर 4 हजार से अधिक लोगों को विभिन्न विभागों में नियुक्ति दी गई है. नियमितीकरण को लेकर भी सैद्धांतिक रूप से निर्णय हो चुका है. पूरी तैयारी है. डीए पहले जिस प्रकार से दिया जाता रहा है, समय-समय पर दिया जा रहा है. इस तरह भूपेश सरकार ने कर्मचारियों की किसी मांग को खारिज नहीं किया है."


कर्मचारियों के वोट से जीत का रास्ता होगा आसान: राजनीतिक जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी कहना है कि "छत्तीसगढ़ में शासकीय कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा है. सरकार की बड़ी-बड़ी योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम अधिकारी और कर्मचारी करते हैं. उनको संतुष्ट किया जाना चाहिए. उनकी जायज मांगों को समय सीमा में पूरा करना चाहिए. यदि इनका एकतरफा वोट किसी दल को मिलता है तो उनकी जीत का रास्ता आसान हो जाता है. ऐसे में सरकार को कर्मचारियों की भावनाओं को ध्यान रखना चाहिए. नहीं तो उसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है."

कर्मचारी सरकार को कर सकते हैं ब्लैकमेल: जानकारों का यह भी कहना है कि कर्मचारी आंदोलन पर जाएंगे तो सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित होगा. सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश भी कर्मचारी संगठनों की रहेगी. ऐसे में सरकार को सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय लेना चाहिए.

बहरहाल छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में कुछ ही दिन बचे हैं. आने वाले 2-3 महीनों में चुनाव के ऐलान के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो जाएगी. ऐसे में यह देखना होगा कि राज्य की कांग्रेस सरकार किस तरह कर्मचारियों को संभालती है.

कर्मचारियों ने सरकार को चेतावनी दी

रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही बचे हैं. चुनाव करीब आते ही कांग्रेस सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही है. सरकारी कर्मचारी सरकार से नाराज हैं. हालांकि कर्मचारियों को खुश करने के लिए स्थानीय तीज त्योहार, शनिवार की छुट्टी सहित कई अन्य ऐलान किए गए हैं लेकिन कर्मचारियों की डीए बढ़ाने और नियमितीकरण समेत दूसरी प्रमुख मांगें पूरी नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ के सरकारी कर्मचारियों की केंद्रीय कर्मचारियों की तरह 41 फीसदी डीए देने की मांग है. वर्तमान में उन्हें 33% डीए मिल रहा है. ऐसे में कर्मचारियों की मांगें पूरी नहीं हुई तो वह चुनावी समीकरण भी बिगाड़ सकते हैं.

कर्मचारियों के कितने वोट: छत्तीसगढ़ में नियमित और अनियमित कर्मचारियों की संख्या लगभग 7 लाख है. एक परिवार में 5 वोट के हिसाब से 7 लाख कर्मचारियों के घर में करीब 35 लाख वोटर हैं. यह 35 लाख वोट जिस दल के पक्ष में पड़ गए तो स्वभाविक है कि समीकरण बिगड़ सकता है.

चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं कर्मचारी: छत्तीसगढ़ तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष गणेश राम चंद्रा का कहना है कि "इसके पहले की सरकारों ने भी कर्मचारियों की अनदेखी की थी, जिसका खामियाजा उन्हें चुनाव में उठाना पड़ा. चाहे फिर वह साल 2003 अजीत जोगी की सरकार रही हो या फिर साल 2018 में रमन सिंह की सरकार. इन दोनों सरकारों ने कर्मचारियों की अनदेखी की. उनकी मांगों को नहीं सुना. सरकारों को लगा कि महज कुछ लाख कर्मचारी हैं, जिससे चुनाव पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन कर्मचारियों की नाराजगी के कारण इन चुनावों में तत्कालीन सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा."

यह भी पढ़ें: Raipur : सराफा कारोबारी पर ईडी की दबिश, शराब घोटाले से जुड़े हो सकते हैं तार


कर्मचारियों पर होगी चुनाव की जम्मेदारी: कर्मचारी संघ का कहना है कि विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं के संचालन की जवाबदारी भी शासकीय कर्मचारियों के कंधों पर होती है. ऐसे में यदि चुनाव के वक्त कर्मचारी इन योजनाओं का संचालन उचित ढंग से नहीं करेंगे तो उसका प्रभाव भी चुनाव पर पड़ेगा. गणेश राम चंद्रा ने कहा कि "निर्वाचन का काम भी सरकारी कर्मचारियों के द्वारा संपन्न कराया जाता है. वह लोगों के बीच जाते हैं. सरकारी योजनाओं की जानकारी देते हैं. उन्हें योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद करते हैं. मतदान के दौरान भी लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं. ऐसे में इन सभी की सहभागिता भी चुनाव में महत्वपूर्ण हो जाती है. यही वजह है कि शासकीय कर्मचारियों की चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है."

क्या कहती है भाजपा: भाजपा का कहना है कि सरकार जल्द से जल्द कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अन्य मांगों को पूरा करे. भाजपा नेता गौरीशंकर श्रीवास का आरोप है कि "विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने कर्मचारियों के नियमितीकरण की घोषणा की थी, लेकिन उसे अब तक पूरा नहीं किया है. कर्मचारियों का विश्वास कांग्रेस सरकार खो चुकी है. इसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार को उठाना पड़ेगा."

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कांग्रेस की दलील: कांग्रेस का कहना है कि भूपेश सरकार ने कर्मचारी संघ की किसी भी मांग को खारिज नहीं किया है. प्रदेश प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा के मुताबिक ''डीए की मांग हो या फिर अन्य कोई मांग, उन मांगों पर भूपेश सरकार ने समय समय पर निर्णय लिया है. पुरानी पेंशन योजना बहाल की गई, शनिवार को छुट्टी का प्रावधान किया गया और अनुकंपा नियुक्ति को शिथिल कर 4 हजार से अधिक लोगों को विभिन्न विभागों में नियुक्ति दी गई है. नियमितीकरण को लेकर भी सैद्धांतिक रूप से निर्णय हो चुका है. पूरी तैयारी है. डीए पहले जिस प्रकार से दिया जाता रहा है, समय-समय पर दिया जा रहा है. इस तरह भूपेश सरकार ने कर्मचारियों की किसी मांग को खारिज नहीं किया है."


कर्मचारियों के वोट से जीत का रास्ता होगा आसान: राजनीतिक जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी कहना है कि "छत्तीसगढ़ में शासकीय कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा है. सरकार की बड़ी-बड़ी योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम अधिकारी और कर्मचारी करते हैं. उनको संतुष्ट किया जाना चाहिए. उनकी जायज मांगों को समय सीमा में पूरा करना चाहिए. यदि इनका एकतरफा वोट किसी दल को मिलता है तो उनकी जीत का रास्ता आसान हो जाता है. ऐसे में सरकार को कर्मचारियों की भावनाओं को ध्यान रखना चाहिए. नहीं तो उसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है."

कर्मचारी सरकार को कर सकते हैं ब्लैकमेल: जानकारों का यह भी कहना है कि कर्मचारी आंदोलन पर जाएंगे तो सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित होगा. सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश भी कर्मचारी संगठनों की रहेगी. ऐसे में सरकार को सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय लेना चाहिए.

बहरहाल छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में कुछ ही दिन बचे हैं. आने वाले 2-3 महीनों में चुनाव के ऐलान के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो जाएगी. ऐसे में यह देखना होगा कि राज्य की कांग्रेस सरकार किस तरह कर्मचारियों को संभालती है.

Last Updated : May 11, 2023, 8:43 PM IST
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