रायपुर: दंतेश्वरी माता को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. मान्यता है कि देवी सती का दांत यहीं गिरा था, जिस वजह से इस जगह का नाम दंतेवाड़ा पड़ा. जहां माता दंतेश्वरी की मूर्ति स्थापित है यानी मंदिर का गर्भगृह सैकड़ों साल पहले ग्रेनाइड से बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि जब मंदिर बना तब सिर्फ गर्भगृह ही था. मंदिर का बाकी हिस्सा ओपन था. समय के साथ क्षेत्र के राजाओं ने अपनी आस्था के मुताबिक मंदिर को आकार दिया. हालांकि किसी ने भी गर्भगृह से छेड़छाड़ करने की हिम्मत नहीं की. इसलिए गर्भगृह का स्वरूप जस का तस है.
रानी प्रफुल्ल कुमारी ने बाहरी हिस्से के बनवाया: मंदिर के निर्माण को लेकर माना जाता है कि 14वीं सदी में चालुक्य राजाओं ने इसे दक्षिण भारतीय वास्तुकला के हिसाब से बनवाया था. बाद में गर्भगृह का बाहरी हिस्सा सरई और सागौन जैसी बेशकीमती लकड़ी से बस्तर की रानी प्रफुल्ल कुमारी ने बनवाया.
फागुन मड़ई के अलावा साल में दो बार और होती है विशेष पूजा: दंतेश्वरी माता मंदिर में फागुन मड़ई पर 10 दिनों तक विशेष पूजा की जाती है. इसमें शामिल होने के लिए ओडिशा और तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों के देवी देवता प्रतिनिधि पहुंचते हैं और पूरे विधि विधान के साथ हर पारंपरिक रिवाजों में शामिल होते हैं. इसके अलावा शारदीय और चैत्र नवरात्र पर भी माता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. मंदिर के गर्भगृह के बाहर दोनों ओर बाबा भैरव की दो बड़ी मूर्तियां हैं. कहा जाता है कि बाबा भैरव माता के अंगरक्षक हैं.