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राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव: भारत के वो डांस, जो आपको थिरकने पर मजबूर करेंगे

27 दिसंबर से राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव शुरू होने जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से कलाकार अपनी संस्कृति की छटा बिखेरेंगे.

dance forms to be performed in national tribal dance festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव
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Published : Dec 26, 2019, 11:04 PM IST

Updated : Dec 27, 2019, 1:57 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का साक्षी बनने जा रहा है. 27, 28 और 29 दिसंबर को प्रदेश में विभिन्न राज्यों के आदिवासी कलाकार अलग-अलग नृत्य प्रस्तुतियां देंगे. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कलाकार भी शामिल होंगे. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बांग्लादेश,बेलारूस, मालद्वीव, श्रीलंका, थाईलैंड और युगांडा से कलाकार आएंगे.

डांस फेस्ट में थिरकेगा इंडिया

कई राज्यों के कलाकार लेंगे हिस्सा
इस महोत्सव में देश के कई राज्यों के आदिवासी कलाकार हिस्सा लेंगे. अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, असम, सिक्किम, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, लद्दाख, केरल, अंडमान-निकोबार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, जम्मू कश्मीर शामिल होंगे.

dance forms to be performed in national tribal dance festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

अरुणाचल प्रदेश, असम और पूर्वोत्तर राज्यों की प्रस्तुतियां
इस महोत्सव में अरुणाचल प्रदेश के रेह और पोंग नृत्य, त्रिपुरा के होजगिरि, ममिता और संगराई नृत्य की प्रस्तुत होगी. पोंग नृत्य उत्सव की श्रेणी में आता है, जहां युवतियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर और मंडलियों में नृत्य करती हैं. ये डांस फसल के मौसम का जश्न मनाता है. वहीं होजगिरी नृत्य रियांग समुदाय में छोटी लड़कियों द्वारा किया जाता है और इसमें वे घड़ों पर खड़े होकर अपने सिर पर बोतल या अन्य वस्तु लिये संतुलन बनाए हुए नृत्य करती हैं.

dance forms to be performed in national tribal dance festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव
बागुरुंबा असम और पूर्वोत्तर भारत बोडो जनजाति का एक लोक नृत्य है. यह एक पारंपरिक नृत्य है, जो महिलाएं करती हैं. बागुरुंबा नृत्य बोडो लोगों का मुख्य पारंपरिक नृत्य है. बागुरुंबा डांस प्रकृति से जन्मा है. ये डांस नेचर को ही समर्पित है. मणिपुर से वार डांस की प्रस्तुत होगी.
dance forms to be performed in national tribal dance festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की प्रस्तुति
इसके अलावा उत्तराखंड के भोटिया और जौंनसारी जनजाति भी नृत्य प्रस्तुतियां देंगी. भोटिया जनजाति उत्तराखंड और तिब्बत के सीमावर्ती हिमालय की घाटियों में रहती है. इनके द्वारा झांझी और हारुल नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी.
हिमाचल प्रदेश से गद्दी जनजाति डंडा रास नृत्य की प्रस्तुति देगी. जिसे त्यौहारों पर तथा मेले में किया जाता है. इस नृत्य में प्रयुक्त वाद्यों में शहनाई, ढोल, पौणा, नरसिंगा आदि प्रमुख हैं. नृत्य में स्त्री तथा पुरूष दोनों ही शामिल होते हैं जो भेड़ के ऊन से बने पारंपरिक गद्दी पोषाखों में सजे रहते हैं. किन्नौर की डांस फॉर्म नाटी है, जो शिव भगवान को समर्पित है. इसके अलावा पंगवाला हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की पांगी तहसील में निवास करने वाली एक जनजाति है. बर्फ से ढके मौसम में पंगवाला लोगों द्वारा अपने धार्मिक और पारिवारिक उत्सवों पर घुरई नामक नृत्य किया जाता है. यह नृत्य जुकारू उत्सव पर लगातार 10 दिनों तक चलता है.

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राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

उत्तर प्रदेश बिहार और झारखंड की प्रस्तुतियां
उत्तर प्रदेश से गोंड जनजाति के लोग गरद नृत्य, बिहार से कर्मा नृत्य की प्रस्तुति होगी. वहीं झारखंड से छाऊ, पाइका, डोमकच का प्रदर्शन किया जाएगा.
छऊ लोक नृत्य में मुखौटे का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें केवल पुरूष कलाकार हिस्सा लेते हैं. इसे यूनेस्को ने 2010 में विरासत नृत्यों की सूची में शामिल किया है. इस नृत्य की जन्मभूमि सरायकेला-खरसावां जिला है. पाइका मूल रूप से युद्ध नृत्य है. इस पुरूष प्रधान लोक नृत्य में कलाकार सैनिक की वेशभूषा में युद्धकला का प्रदर्शन करते हैं. कलाकार एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल लेकर नगाड़े और ढोल की थाप पर वीरता और साहस को रोमांचक तरीके से दिखाते हैं. प्राचीन काल में राज्यों की सुरक्षा करने वाले सैनिकों को पाइका कहा जाता था. डोमकच लोक नृत्य स्त्री प्रधान है लेकिन इसमें पुरूष भी शामिल होते हैं. आमतौर पर ये नृत्य विवाह समारोह के दौरान किया जाता है. इसमें महिलाएं और पुरुष एक-दूसरे का हाथ पकड़कर अर्ध गोलाकार कतार में नृत्य करते हैं.

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के नृत्य
इसके अलावा आंध्र प्रदेश से अरकू जनजाति द्वारा धिमसा नृत्य का प्रदर्शन किया जाएगा. तेलंगाना से गुसाड़ी, माथुरी और लंबाड़ी नृत्य का प्रदर्शन होगा. कर्नाटक से सुगाली जनजाति द्वारा बंजारा नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी. तमिलनाडु से टोडा जनजाति के कलाकारों द्वारा टोडा नृत्य की प्रस्तुति होगी.

महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के नृत्य

ओडिशा की जनजातियों द्वारा धुरवा और सिंगारी नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी. महाराष्ट्र से तरपा नृत्य, पश्चिम बंगाल से संथाली नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी.

मध्य प्रदेश से इन नृत्यों की प्रस्तुति
मध्य प्रदेश से बैगा, भील और भारिया जनजाति द्वारा करमा, भोगरिया, परघौनी नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी. करमा नृत्य कई प्रदेशों में किया जाता है. करमा मध्य प्रदेश के गोंड और बैगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है, जो मंडला के आसपास क्षेत्रों में किया जाता है. करमा नृत्य गीत कर्म देवता को प्रशन्न करने के लिए किया जाता है. यह नृत्य कर्म का प्रतीक है. किसी भी शुभ कार्य में इसे करना शुभ माना जाता है. भगोरिया मध्य प्रदेश के मालवा अंचल (धार, झाबुआ, खरगोन आदि) के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. भोंगर्या के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है.

छत्तीसगढ़ से इन नृत्यों का प्रदर्शन
छत्तीसगढ़ की मुरिया जनजाति द्वारा आदिवासी नृत्य का प्रदर्शन होगा. बाइसन डांस खासकर अबूझमाड़ के इलाके में नारायणपुर में आदिवासियों द्वारा किया जाता है. इसके अलावा दक्षिण बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में भी गौर नृत्य काफी फेमस है. गौर नृत्य डांस में आदिवासी गौर का सिंह मुकुट बनाकर उसे सर पर पहनते हैं और एक बड़ी मांदर (तबला) और उसके पीछे आदिवासी महिलाओं का एक झुंड रहता है. आदिवासी महिलाओं के हाथ में एक प्रकार की भाला रहती है जिसे पकड़ कर गौर सिंह पहनने वाले आदिवासी पुरुष के साथ महिलाएं पीछे उस भाला के मांदर के थाप पर नृत्य करती है.

गौर मार नृत्य साल में एक बार ही किया जाता है. नवरात्र के समय दंतेवाड़ा जिले में लगने वाले फागुन मड़ई मेला में आदिवासी गौर मार नृत्य करते हैं. गौर मार नृत्य आदिवासियों द्वारा वन्यजीवों का शिकार करने को दर्शाता है. नवरात्रि के 9 दिन तक होने वाले इस गौर मार नृत्य में हर दिन आदिवासी वन्यजीवों की जिनका शिकार किया जाता है, उसकी वेशभूषा लेते हैं और आदिवासी किस तरह से उस वन्यजीव का शिकार करते हैं उसे नृत्य के माध्यम से दर्शाया जाता है. परंपरा के मुताबिक यह गौर मार नृत्य बस्तर के दंतेवाड़ा में सदियों से चली आ रही है और यह काफी रोमांचक रहती है क्योंकि इसमें आदिवासी वन्यजीवों जैसे कि वनभैंसा, खरगोश चीतल, हिरण और अन्य प्रकार के शिकार किए जाने वाले वन्य जीवों की वेशभूषा में दिखाई पड़ते हैं.

छत्तीसगढ़ के कोंडागांव का हुल्की नृत्य प्रदर्शित किया जाएगा.

इसके अलावा लद्दाखी, केरल के तैय्यम नृत्य और जम्मू कश्मीर के गुजर और बकरवाल की भी प्रस्तुति होगी.

इन सभी जनजातियों के खूबसूरत रंग ETV भारत आप तक पहुंचाएगा.

रायपुर: छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का साक्षी बनने जा रहा है. 27, 28 और 29 दिसंबर को प्रदेश में विभिन्न राज्यों के आदिवासी कलाकार अलग-अलग नृत्य प्रस्तुतियां देंगे. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कलाकार भी शामिल होंगे. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बांग्लादेश,बेलारूस, मालद्वीव, श्रीलंका, थाईलैंड और युगांडा से कलाकार आएंगे.

डांस फेस्ट में थिरकेगा इंडिया

कई राज्यों के कलाकार लेंगे हिस्सा
इस महोत्सव में देश के कई राज्यों के आदिवासी कलाकार हिस्सा लेंगे. अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, असम, सिक्किम, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, लद्दाख, केरल, अंडमान-निकोबार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, जम्मू कश्मीर शामिल होंगे.

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राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

अरुणाचल प्रदेश, असम और पूर्वोत्तर राज्यों की प्रस्तुतियां
इस महोत्सव में अरुणाचल प्रदेश के रेह और पोंग नृत्य, त्रिपुरा के होजगिरि, ममिता और संगराई नृत्य की प्रस्तुत होगी. पोंग नृत्य उत्सव की श्रेणी में आता है, जहां युवतियां एक-दूसरे का हाथ पकड़कर और मंडलियों में नृत्य करती हैं. ये डांस फसल के मौसम का जश्न मनाता है. वहीं होजगिरी नृत्य रियांग समुदाय में छोटी लड़कियों द्वारा किया जाता है और इसमें वे घड़ों पर खड़े होकर अपने सिर पर बोतल या अन्य वस्तु लिये संतुलन बनाए हुए नृत्य करती हैं.

dance forms to be performed in national tribal dance festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव
बागुरुंबा असम और पूर्वोत्तर भारत बोडो जनजाति का एक लोक नृत्य है. यह एक पारंपरिक नृत्य है, जो महिलाएं करती हैं. बागुरुंबा नृत्य बोडो लोगों का मुख्य पारंपरिक नृत्य है. बागुरुंबा डांस प्रकृति से जन्मा है. ये डांस नेचर को ही समर्पित है. मणिपुर से वार डांस की प्रस्तुत होगी.
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राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की प्रस्तुति
इसके अलावा उत्तराखंड के भोटिया और जौंनसारी जनजाति भी नृत्य प्रस्तुतियां देंगी. भोटिया जनजाति उत्तराखंड और तिब्बत के सीमावर्ती हिमालय की घाटियों में रहती है. इनके द्वारा झांझी और हारुल नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी.
हिमाचल प्रदेश से गद्दी जनजाति डंडा रास नृत्य की प्रस्तुति देगी. जिसे त्यौहारों पर तथा मेले में किया जाता है. इस नृत्य में प्रयुक्त वाद्यों में शहनाई, ढोल, पौणा, नरसिंगा आदि प्रमुख हैं. नृत्य में स्त्री तथा पुरूष दोनों ही शामिल होते हैं जो भेड़ के ऊन से बने पारंपरिक गद्दी पोषाखों में सजे रहते हैं. किन्नौर की डांस फॉर्म नाटी है, जो शिव भगवान को समर्पित है. इसके अलावा पंगवाला हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की पांगी तहसील में निवास करने वाली एक जनजाति है. बर्फ से ढके मौसम में पंगवाला लोगों द्वारा अपने धार्मिक और पारिवारिक उत्सवों पर घुरई नामक नृत्य किया जाता है. यह नृत्य जुकारू उत्सव पर लगातार 10 दिनों तक चलता है.

dance forms to be performed in national tribal dance festival
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

उत्तर प्रदेश बिहार और झारखंड की प्रस्तुतियां
उत्तर प्रदेश से गोंड जनजाति के लोग गरद नृत्य, बिहार से कर्मा नृत्य की प्रस्तुति होगी. वहीं झारखंड से छाऊ, पाइका, डोमकच का प्रदर्शन किया जाएगा.
छऊ लोक नृत्य में मुखौटे का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें केवल पुरूष कलाकार हिस्सा लेते हैं. इसे यूनेस्को ने 2010 में विरासत नृत्यों की सूची में शामिल किया है. इस नृत्य की जन्मभूमि सरायकेला-खरसावां जिला है. पाइका मूल रूप से युद्ध नृत्य है. इस पुरूष प्रधान लोक नृत्य में कलाकार सैनिक की वेशभूषा में युद्धकला का प्रदर्शन करते हैं. कलाकार एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल लेकर नगाड़े और ढोल की थाप पर वीरता और साहस को रोमांचक तरीके से दिखाते हैं. प्राचीन काल में राज्यों की सुरक्षा करने वाले सैनिकों को पाइका कहा जाता था. डोमकच लोक नृत्य स्त्री प्रधान है लेकिन इसमें पुरूष भी शामिल होते हैं. आमतौर पर ये नृत्य विवाह समारोह के दौरान किया जाता है. इसमें महिलाएं और पुरुष एक-दूसरे का हाथ पकड़कर अर्ध गोलाकार कतार में नृत्य करते हैं.

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के नृत्य
इसके अलावा आंध्र प्रदेश से अरकू जनजाति द्वारा धिमसा नृत्य का प्रदर्शन किया जाएगा. तेलंगाना से गुसाड़ी, माथुरी और लंबाड़ी नृत्य का प्रदर्शन होगा. कर्नाटक से सुगाली जनजाति द्वारा बंजारा नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी. तमिलनाडु से टोडा जनजाति के कलाकारों द्वारा टोडा नृत्य की प्रस्तुति होगी.

महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के नृत्य

ओडिशा की जनजातियों द्वारा धुरवा और सिंगारी नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी. महाराष्ट्र से तरपा नृत्य, पश्चिम बंगाल से संथाली नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी.

मध्य प्रदेश से इन नृत्यों की प्रस्तुति
मध्य प्रदेश से बैगा, भील और भारिया जनजाति द्वारा करमा, भोगरिया, परघौनी नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी. करमा नृत्य कई प्रदेशों में किया जाता है. करमा मध्य प्रदेश के गोंड और बैगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है, जो मंडला के आसपास क्षेत्रों में किया जाता है. करमा नृत्य गीत कर्म देवता को प्रशन्न करने के लिए किया जाता है. यह नृत्य कर्म का प्रतीक है. किसी भी शुभ कार्य में इसे करना शुभ माना जाता है. भगोरिया मध्य प्रदेश के मालवा अंचल (धार, झाबुआ, खरगोन आदि) के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. भोंगर्या के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है.

छत्तीसगढ़ से इन नृत्यों का प्रदर्शन
छत्तीसगढ़ की मुरिया जनजाति द्वारा आदिवासी नृत्य का प्रदर्शन होगा. बाइसन डांस खासकर अबूझमाड़ के इलाके में नारायणपुर में आदिवासियों द्वारा किया जाता है. इसके अलावा दक्षिण बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में भी गौर नृत्य काफी फेमस है. गौर नृत्य डांस में आदिवासी गौर का सिंह मुकुट बनाकर उसे सर पर पहनते हैं और एक बड़ी मांदर (तबला) और उसके पीछे आदिवासी महिलाओं का एक झुंड रहता है. आदिवासी महिलाओं के हाथ में एक प्रकार की भाला रहती है जिसे पकड़ कर गौर सिंह पहनने वाले आदिवासी पुरुष के साथ महिलाएं पीछे उस भाला के मांदर के थाप पर नृत्य करती है.

गौर मार नृत्य साल में एक बार ही किया जाता है. नवरात्र के समय दंतेवाड़ा जिले में लगने वाले फागुन मड़ई मेला में आदिवासी गौर मार नृत्य करते हैं. गौर मार नृत्य आदिवासियों द्वारा वन्यजीवों का शिकार करने को दर्शाता है. नवरात्रि के 9 दिन तक होने वाले इस गौर मार नृत्य में हर दिन आदिवासी वन्यजीवों की जिनका शिकार किया जाता है, उसकी वेशभूषा लेते हैं और आदिवासी किस तरह से उस वन्यजीव का शिकार करते हैं उसे नृत्य के माध्यम से दर्शाया जाता है. परंपरा के मुताबिक यह गौर मार नृत्य बस्तर के दंतेवाड़ा में सदियों से चली आ रही है और यह काफी रोमांचक रहती है क्योंकि इसमें आदिवासी वन्यजीवों जैसे कि वनभैंसा, खरगोश चीतल, हिरण और अन्य प्रकार के शिकार किए जाने वाले वन्य जीवों की वेशभूषा में दिखाई पड़ते हैं.

छत्तीसगढ़ के कोंडागांव का हुल्की नृत्य प्रदर्शित किया जाएगा.

इसके अलावा लद्दाखी, केरल के तैय्यम नृत्य और जम्मू कश्मीर के गुजर और बकरवाल की भी प्रस्तुति होगी.

इन सभी जनजातियों के खूबसूरत रंग ETV भारत आप तक पहुंचाएगा.

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Last Updated : Dec 27, 2019, 1:57 PM IST
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