रायपुर: छत्तीसगढ़ में कोरोना के पहले दौर में गांव काफी हद तक सुरक्षित थे. लेकिन अब स्थिति इससे उलट हो गई है. कोरोना की रफ्तार शहर के रास्ते गांव-गांव तक पहुंच गई है. गांवों में संक्रमण के काफी ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. जो सरकार के लिए काफी चिंता की बात है. क्योंकि गांव और कस्बों में कोरोना वायरस की पहुंच से कम्युनिटी स्प्रेड जैसे हालात बनते जा रहे हैं.
गांवों तक पहुंचा कोरोना !
पहले दौर में दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को शहरों में ही क्वॉरेंटाइन सेंटर में रखा गया. जहां उनका कोरोना टेस्ट हुआ. जांच रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही उन्हें गांव भेजा गया. जिसका असर ये हुआ कि गांवों तक कोरोना पहुंच ही नहीं पाया. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. नवंबर से फरवरी के बीच कोरोना के आंकड़े कम होने के बाद कई शहरों में क्वॉरेंटाइन सेंटर बंद कर दिए गए. जिससे दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी श्रमिक सीधे अपने गांव पहुंचे और गांव में कोरोना के एक बड़े वाहक बने. यही वजह है कि अब राजधानी और दुर्ग में कोरोना मरीज कम होकर छोटे जिलों और कस्बों में बढ़ गए हैं. अब जांजगीर, कोरबा, रायगढ़, मुंगेली और अन्य छोटे शहरों में कोरोना के काफी ज्यादा केस सामने आ रहे हैं.
गुरुवार को प्रदेश में कोरोना के आंकड़ों पर नजर डाले तो. बड़े शहरों की जगह अब छोटे शहरों में कोरोना के मामले ज्यादा आ रहे हैं.
- जांजगीर में सबसे ज्यादा मामले सामने आए. यहां 1324 नए कोरोना संक्रमित केस सामने आए. 11 लोगों की मौत हुई. जबकि राजधानी में 987 संक्रमण के केस मिले.
- कोरबा में 921 कोरोना संक्रमितों की पहचान हुई. दुर्ग जिले में 729 पॉजिटिव मरीजों की पहचान हुई.
- कोरिया जिले में 610 नए संक्रमितों की पहचान हुई जबकि सरगुजा में 564 नए कोरोना संक्रमित लोग मिले.
- जशपुर में 595 कोरोना केस, जबकि राजनांदगांव में 620 नए कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले.
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गांव में कोरोना फैलने का प्रमुख कारण
- सबसे अहम कारण जागरूकता की कमी. गांव के लोगों का मानना है कि कोरोना जैसी कोई चीज नहीं है. गांव में रहने के कारण उन्हें कभी कोरोना नहीं होगा.
- गांव में पानी सार्वजनिक हैंड पंप से भरा जाता है. यहां दिनभर महिला, पुरुषों, बच्चों की भीड़ रहती है.
- गांव में चौपाल पर बैठने का चलन है. देर शाम से लेकर रात तक बुजुर्ग व युवा चौपाल पर बैठक लगाते हैं. इस दौरान ना तो युवा और ना ही बुजुर्ग मास्क लगाते हैं. चौपाल में सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजिंग जीरो रहती है.
- गांव में सार्वजनिक या सामुदायिक चीजों पर ही पूरा जीवन आश्रित होता है. एक तालाब, एक दुकान पर आश्रित होते हैं. गांवों में सामूहिक जीवन शैली होती है.
- गांवों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी. किसी की भी तबीयत खराब होने पर गांव के बैगा या झोलाछाप डॉक्टरों पर आश्रित रहते हैं ग्रामीण
बड़े शहरों से छोटे शहरों, कस्बों में ट्रांसफर हुआ कोरोना
आकंड़ों से साफ जाहिर है कि कोरोना अब छोटे शहरों में फैल चुका है. कस्बों, गांवों में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या बढ़ी है. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक संक्रमण के 40 प्रतिशत मामले गांवों में ही आ रहे हैं. जिसे देखते हुए अब हर ग्राम पंचायत में क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाने के निर्देश दिए गए हैं. इसके साथ ही बाहर से आने वाले लोगों की टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव होना अनिवार्य किया गया है. जिसकी जिम्मेदारी गांव के सरपंच और कोटवारों को दी गई है. वी द पीपुल्स के डायरेक्टर संदीप कुमार ने बताया कि क्वॉरेंटाइन सेंटर नहीं होने से गांवों तक कोरोना सीधे पहुंच गया है. शहर के लोगों को अवेयर करना आसान है. लेकिन गांव के लोगों से प्रोटोकॉल का पालन करवाना काफी चुनौती भरा काम है.
गांव के लोगों को अब भी कोरोना टेस्ट का इंतजार
संदीप कुमार ने बताया कि राजधानी से 40 किलोमीटर दूर जौंडी-जौंडा गांव के पूरे लोग कोरोना संक्रमित हैं. उन्होंने बताया कि उनकी टीम जब उस गांव पहुंची तो गांव के लोग कोरोना टेस्ट होने का इंतजार कर रहे थे. गांव के लोग इतने जागरूक भी नहीं है कि उन्हें लक्षण होने पर तुरंत टेस्ट कराना है. गांव के चौक-चौराहों पर आज भी लोग बैठे रहते हैं. जिससे संक्रमण ज्यादा फैल रहा है. कई लोग कोरोना संक्रमित होने के बाद भी इस बात को छिपा रहे हैं.
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'कोरोना जैसी कोई चीज नहीं'
सामाजिक कार्यकर्ता दिव्या सागर ने बताया कि गांव के कल्चर में एक-दूसरे से जुड़ाव है. जिससे वे एक ही चबूतरे पर बैठते हैं. एक ही तालाब में नहाते हैं. कई गांवों में सिर्फ एक ही दुकान होती है. जहां सभी लोग पहुंचते हैं. इसके अलावा मास्क भी नहीं पहनते हैं. दिव्या सागर का कहना है कि गांव के लोगों में अब भी ये मानसिकता है कि कोरोना जैसी कोई चीज नहीं है, उन्हें कोई कोरोना नहीं होगा.
गांवों में कोरोना फैलना काफी घातक
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश केशरवानी ने ETV भारत से बताया कि गांव में जागरूकता की कमी है. उनका मानना है कि कोरोना को गांव के लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. इसे सामान्य सर्दी, फ्लू की तरह ही ले रहे हैं. गांव में झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करवा रहे हैं. गांवों में सोशल डिस्टेंसिंग जैसी कोई चीज नहीं है. गांव में यह व्यवस्था भी नहीं होती कि सबके लिए अलग-अलग कमरे हो या नहाने की व्यवस्था हो. उन्होंने कहा कि गांव में कोरोना के बढ़ते मामले काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं.
पिछली बार जैसी सावधानी नहीं दिख रही
पिछली बार करीब 5 लाख लोग विभिन्न राज्यों से लौटे थे. इनमें करीब 4 लाख लोग ग्रामीण थे. सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए करीब 21 हजार से ज्यादा क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाया था. दूसरे राज्यों से आने वाले श्रमिकों को भी क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाकर तमाम व्यवस्थाएं की गई थी. लेकिन इस बार इस तरह की सावधानी नहीं दिखी.
छत्तीसगढ़ सरकार पूरी तरह फेल
विपक्ष ने भी ग्रामीण इलाकों में करोना फैलने को लेकर चिंता जाहिर की है. पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ की सरकार अपने जिम्मेदारी, अपने कर्तव्यों में पूरी तरह फेल हो चुकी है. छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है. रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग में भी रोजाना जो आंकड़े जारी किए जा रहे हैं वो पूरी तरह गलत है. वास्तविकता कुछ और ही है. बृजमोहन ने कहा कि छोटे जिलों में बस्तर और सरगुजा जैसे इलाके में कोरोना का संक्रमण बढ़ना यह सरकार की नाकामी को साबित करता है. ऐसे में गांव में कोरोना बढ़ने से आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह हो सकती है.
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पिछले 15 दिनों के प्रदेश के बड़े शहरों और छोटे शहरों में कोरोना केस की संख्या पर नजर डालिए-
23 अप्रैल को रायपुर में कुल 14514 कोरोना संक्रमित एक्टिव मरीज थे. दुर्ग में 8956, राजनांदगांव में 7358 और महासमुंद में 4456 एक्टिव केस थे. लेकिन 6 मई के हालात देखें तो रायपुर में 11250 मरीज एक्टिव हैं. दुर्ग में अभी 5311 मरीज एक्टिव हैं, इसके उलट छोटे जिलों में संख्या बढ़ गई है. रायगढ़ में 11212 एक्टिव केस हैं. जांजगीर-चांपा में 10395, कोरबा में 9019 एक्टिव केस है. मुंगेली में 5794 एक्टिव केस, बलौदाबाजार में 5582, धमतरी में 4725, बालोद में 3813 एक्टिव केस हैं.